देश के विभाजन के लिए नेहरू व पटेल को दोष नहीं देना चाहिए

Wednesday, Mar 14, 2018 - 03:27 AM (IST)

कश्मीर के नेता फारूक अब्दुल्ला की इस बात में थोड़ी सच्चाई है कि मोहम्मद अली जिन्ना बंटवारे के लिए जिम्मेदार नहीं थे लेकिन फारूक गलत हैं जब वह जवाहर लाल नेहरू या सरदार पटेल को इसका दोषी बताते हैं। मैं इस काल का गवाह हूं और इस तरह की घटनाओं को समझता हूं। 

जिन्ना हिंदू और मुसलमानों की एकता के ‘राजदूत’ थे, जैसा कांग्रेस की शीर्ष नेता सरोजिनी नायडू कहती हैं लेकिन उन्हें बंटवारे की ओर धकेला गया। यह स्पष्ट है कि 40 के दशक की शुरूआत के आते-आते हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद इतने बढ़़ गए थे कि बंटवारे जैसा कुछ जरूरी हो गया था। बंटवारे पर अफसोस जताने वालों को मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि अंग्रेज इस उपमहाद्वीप को एक रख सकते थे, अगर वे उस समय थोड़ा और अधिकार दे देते जब 1942 में स्टैफर्ड क्रिप्स ने अपनी सीमित जिम्मेदारी के तहत भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास किया था। 

कांग्रेस भी ऐसा कर सकती थी, अगर उसने 1946 में कैबिनेट मिशन के केन्द्र को सीमित अधिकार देने के प्रस्ताव को मान लिया होता। केन्द्र को दिए गए अधिकारों को छोड़ कर राज्यों को सारे अधिकार होते। जिन्ना ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया था लेकिन ‘अगर’ ज्यादा से ज्यादा काल्पनिक होता है और बुरे सेे बुरे रूप में अपने मन का होता है। क्या बंटवारे ने मुसलमानों का उद्देश्य पूरा किया? मैं नहीं जानता। 

पाकिस्तान में लोग ‘बंटवारा’ शब्द को टालते हैं। वे 14 अगस्त को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के रूप में उतना नहीं, जितना हिंदुओं के शासन के भय से मुक्ति के रूप में मनाते हैं। मैंने अपनी यात्राओं के दौरान लोगों को कहते पाया है कि उनके लिए कम से कम ‘कोई जगह’ है जहां वे ‘हिंदू वर्चस्व’ और ‘हिंदू आक्रामकता’ से सुरक्षित महसूूस कर सकते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि मुसलमानों को सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ है। वे तीन देशों-भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में बंट गए। कल्पना करें कि उनकी संख्या, उनके वोट का संयुक्त उपमहाद्वीप में कितना असर होता। वे कुल आबादी का एक-तिहाई हिस्सा होते। 

इसका बुरा पक्ष यह है कि विभाजन की रेखा धर्म के आधार पर खींची गई। दोनों तरफ दुश्मनी तथा हथियार मौजूद ही रहने वाले हैं। दोनों देशों में 1965 तथा 1971 में दो युद्ध लड़े जा चुके हैं और हर समय गुर्राते रहते हैं, लोगों को चैन से रहने नहीं देते। मुझे नहीं लगता कि दोनों देशों के एक होने की संभावना है। लेकिन मुझे भरोसा है कि भय और अविश्वास के कारण सीमा पर बन गई दीवारें एक दिन गिर जाएंगी और उपमहाद्वीप के लोग बिना अपनी पहचान खोए, अपने सांझा हितों के लिए साथ मिल कर काम करेंगे। मैं यह विश्वास अपने साथ उस समय से लिए हुए हूं जब 70 साल पहले मैंने अपना शहर सियालकोट छोड़ा था। और, मैंने इसे नफरत और दुश्मनी के उस समंदर में तिनके की तरह पकड़ रखा है जिसने उपमहाद्वीप को लम्बे समय से निगल रखा है। 

कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना लॉ कालेज आए थे जहां मैं अंतिम वर्ष का छात्र था। उन्होंने अपनी हर बार की थीम को छुआ कि हिंदू और मुसलमान अलग राष्ट्र हैं और अलग देशों में रह कर दोनों खुशहाल तथा सुरक्षित रहेंगे। एक देश में हिंदू और दूसरे में मुसलमान बहुमत में होंगे। मुझे नहीं मालूम कि उन्हें क्यों लगा कि धर्म के आधार पर बने दो राज्य खुशी से रहेंगे। मैंने सवाल भी किया था कि उन्हें कैसे यह विश्वास है कि जब अंग्रेज चले जाएंगे तो दो समुदाय एक-दूसरे से नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि जर्मनी और फ्रांस ने कई लड़ाइयां लड़ीं लेकिन आज वे दोनों अच्छे दोस्त हैं। यही भारत और पाकिस्तान के साथ होगा लेकिन वह गलत साबित हुए। दो समुदायों के बीच अविश्वास के कारण हुए जबरिया विस्थापन ने लोगों को घर-बार और चूल्हा-चक्की छोडऩे को मजबूर किया लेकिन उन्होंने इस संकल्प के साथ अपना घर छोड़ा था कि बंटवारे के बाद के नतीजों के स्थिर होने के बाद वे वापस आएंगे। 

हिंदुओं और सिखों ने पश्चिम पंजाब छोड़ा और मुसलमानों ने पूर्वी पंजाब। इस प्रक्रिया में 10 लाख लोगों ने अपनी जानें गंवाईं। मैंने लंदन में लार्ड रैडक्लिफ, जिन्होंने सीमा रेखा खींची, से इस बारे में जानने की कोशिश की थी। वह विभाजन के बारे में बात नहीं करना चाहते थे। मुझे बताया गया कि उन्होंने इस काम के लिए तय की हुई फीस 40 हजार रुपए लेने से मना कर दिया था। उन्होंने सोचा कि जो कुछ हुआ वह उनकी आत्मा पर बोझ था और हत्याओं के लिए वह खुद को माफ नहीं कर सकते। 

सदियों से साथ रहने के बावजूद लोगों ने एक-दूसरे को क्यों मारा? इससे निरर्थक कुछ हो नहीं सकता कि यह निश्चित किया जाए कि बंटवारेे के लिए कौन जिम्मेदार है। 70 साल पहले हुए घटनाक्रम को लेकर ऐसा करना महज एक कठिन अकादमिक कार्य होगा। पाकिस्तान के संस्थापक लगातार दोहराते रहे कि ङ्क्षहदू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं और यह दोनों को दूर करता गया। महात्मा गांधी ने इसका जवाब जरूर दिया कि वह इस्लाम को अपना लेते हैं तो उनका अलग राष्ट्र हो जाएगा और वह हिंदू धर्म में वापस आ जाएं तो फिर क्या होगा। सबसे खराब बात यह हुई कि पाकिस्तान को मुस्लिम देश के रूप में जाना जाने लगा। 

भारत ने सैकुलरिज्म अपना लिया लेकिन हिंदुत्व को काबू में नहीं किया गया। दुर्भाग्य से, हिंदुओं में यह भावना बढ़ रही है, खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से, कि वे बहुमत में हैं इसलिए देश में ऐसी व्यवस्था हो जिसमें हिंदुत्व की झलक हो। लोग आजादी के आंदोलन के सैकुलर चरित्र और आजादी के बाद के 5 दशकों के शासन को याद कर सकते हैं। लेकिन आज आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत चीजें तय करते हैं। यह सैकुलर संविधान और इसके तहत बने कानूनों के बाद भी हो रहा है। फारूक अब्दुल्ला को नेहरू और पटेल को दोष नहीं देना चाहिए जिन्होंने देश चलाने का काम नई पीढ़ी को सौंप दिया जो वे और हम, मुसलमान और ङ्क्षहदू के माहौल में बड़े हो रहे हैं।-कुलदीप नैय्यर

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