मिस्र की प्राचीन संस्कृति और कट्टरपंथी हमले के नुक्सान

Monday, Jan 30, 2023 - 03:54 AM (IST)

हम भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति पर बहुत गर्व करते हैं। बात-बात पर हम ये बताने की कोशिश करते हैं कि जितनी महान हमारी संस्कृति है, उतनी महान दुनिया में कोई संस्कृति नहीं है। नि:संदेह भारत का जो दार्शनिक पक्ष है, जो वैदिक ज्ञान है वो हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन अगर ऐतिहासिक प्रमाणों की दृष्टि से देखा जाए तो हम पाएंगे कि भारत से कहीं ज्यादा उन्नत संस्कृति दुनिया के कुछ दूसरे देशों में पाई जाती है। 

पिछले तीन दशकों में दुनिया के तमाम देशों में घूमने का मौका मिला है। आजकल मैं मिस्र में हूं। इससे पहले यूनान, इटली व अब मिस्र की प्राचीन धरोहरों को देखकर बहुत अचम्भा हुआ। जब हम जंगलों और गुफाओं में रह रहे थे या हमारा जीवन प्रकृति पर आधारित था उस वक्त इन देशों की सभ्यता हमसे बहुत ज्यादा विकसित थी। हम सबने बचपन में मिस्र के पिरामिडों के बारे में पढ़ा है। पहाड़ के गर्भ में छिपी तूतनखामन की मजार के बारे में सबने पढ़ा था। यहां के देवी-देवता और मंदिरों के बारे में भी पढ़ा। पर पढऩा एक बात होती है और मौके पर जाकर उस जगह को समझना और गहराई से देखना दूसरी बात होती है। 

अभी तक मिस्र में मैंने जो देखा है वह आंखें खोल देने वाला है। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आज से 3,500-4,500 साल पहले, कुतुब मीनार से भी ऊंची इमारतें, वह भी पत्थर पर बारीक नक्काशी करके, मिस्र के रेगिस्तान में बनाई गईं। उनमें देवी-देवताओं की विशाल मूर्तियां स्थापित की गईं। हमारे यहां मंदिरों में भगवान की मूर्ति का आकार अधिक से अधिक 4 से 10 फीट तक ऊंचा रहता है। लेकिन इनके मंदिरों में मूर्तियां 30-40 फीट से भी ऊंची हैं। वह भी एक ही पत्थर से बनाई गई हैं। दीवारों पर तमाम तरह के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी उकेरी गई है। फिर वह चाहे आयुर्वेद की बात हो, महिला का प्रसव कैसे करवाया जाए, शल्य चिकित्सा कैसे हो, भोग के लिए तमाम व्यंजन कैसे बनाए जाएं, फूलों से इत्र कैसे बने, खेती कैसे की जाए, शिकार कैसे किया जाए। हर चीज की जानकारी यहां दीवारों पर अंकित है ताकि आने वाली पीढिय़ां इसे सीख सकें। इतना वैभवशाली इतिहास है मिस्र का कि इसे देख पूरी दुनिया आज भी अचंभित होती है। 

फ्रांस, स्वीडन, अमरीका और इंगलैंड के पुरातत्ववेत्ताओं व इतिहासकारों ने यहां आकर पहाड़ों में खुदाई करके ऐसी तमाम बेशुमार चीजों को इकट्ठा किया है। सोने के बने हुए कलात्मक फर्नीचर, सुंदर बर्तन, बढिय़ा कपड़े, पेंटिंग और एक से एक नक्काशीदार भवन। अगर उस वक्त की तुलना भारत से की जाए तो भारत में हमारे पास अभी तक जो प्राप्त हुआ है वह सिर्फ हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की संस्कृति के अवशेष हैं। हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की संस्कृति में जो हमें मिला है वह केवल मिट्टी के कुछ बर्तन, कुछ सिक्के, कुछ मनके और ईंट से बनी कुछ नींवें हैं, जो भवनों के होने का प्रमाण देती हैं। लेकिन वह तो केवल साधारण ईंट के बने भवन हैं। जबकि मिस्र में विशालकाय पत्थरों पर नक्काशी करके और उन पर आज तक न मिटने वाली रंगीन चित्रकारी करके सजाया गया है। इनको यहां तक ढोकर कैसे लाया गया होगा, जबकि ऐसा पत्थर यहां पर नहीं होता था? 

कैसे उनको जोड़ा गया होगा? कैसे उनको इतना ऊंचा खड़ा किया गया होगा जबकि उस समय कोई क्रेन नहीं होती थी? यह बहुत ही अचंभित करने वाली बात है। जब अरब मिस्र में आए तो उन्होंने सभी मूर्तियों के चेहरों को ध्वस्त करना चाहा क्योंकि इस्लामिक देशों में बुतपरस्ती को बुरा माना जाता है। जहां-जहां वे ऐसा कर सकते थे उन्होंने छैनी हथौड़े से ऐसा किया। लेकिन आज उसी इस्लाम को मानने वाले मिस्र के मुसलमान नागरिक उन्हीं मूर्तियों को, उनके इतिहास को, उनके भगवानों को, उनकी पूजा पद्धति को दिखा-बता कर अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं।

आज मिस्र के लोग उन्हीं पेंटिंग और मूर्तियों के हस्तशिल्प में नमूने बनाकर, किताबें छाप कर, उन्हीं चित्रों की अनुकृति वाले कपड़े बनाकर, उन्हीं की कहानी सुना-सुनाकर उससे कमाई कर रहे हैं। आज नहीं तो कल हम यह समझेंगे कि इन धरोहरों को बनाना और संभालना कितना मुश्किल होता है और उनका विनाश करना कितना आसान। इसलिए ऐसे आत्मघाती कदमों से बचें और अपने इलाके, प्रांत और प्रदेश की सभी धरोहरों की रक्षा करें। इसी में पूरे मानव समाज की भलाई है।-विनीत नारायण   
     

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