आर्थिक मंदी : खर्चों पर अंकुश अत्यंत जरूरी

punjabkesari.in Wednesday, Jul 06, 2022 - 04:58 AM (IST)

इस समय पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी की आशंका जोर पकड़ रही है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक आने वाले एक साल में दुनियाभर की कई अर्थव्यवस्थाएं सरकारी नीतियों और बढ़ती जीवन लागत के बीच आर्थिक मंदी में प्रवेश करने वाली हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन के देश, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकती हैं। एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। ग्लोबल ग्रोथ की परवाह किए बिना केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों को काफी सख्त किए जा रहे हैं। 

एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अगर रूस ने यूरोप को गैस सप्लाई पूरी तरह से रोक दी तो यूरोपीय देशों में मंदी की मार और गहरी हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार यूरोप की इकोनॉमी में 1 फीसदी का नुक्सान हो सकता है। वहीं, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हाऊसिंग सैक्टर टूटा तो यहां मंदी की मार और खतरनाक हो सकती है। इस मंदी में सबसे अधिक नुक्सान दक्षिण कोरिया को हो सकता है। 

एशिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी जापान के ऊपर भी मंदी का खतरा है। हालांकि यहां पर मंदी की मार तुलनात्मक रूप से कम रह सकती है। जापान को पॉलिसी सपोर्ट और इकोनॉमिक री-ओपङ्क्षनग में देरी से मदद मिल सकती है। वहीं एशिया की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन को लेकर अनुमान है कि अनुकूल नीतियों के कारण यह देश मंदी की मार से बच सकता है। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज ग्रोथ रेट वाला देश भारत भी मंदी की मार से अछूता रह सकता है। हालांकि देश पर ग्लोबल इकोनॉमी की मंदी के सीमित असर की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। 

आर्थिक मंदी का दुनिया के धनकुबेरों पर पिछले कुछ दिनों से असर देखने को मिल रहा है। इस समय  दुनियाभर के रईसों की दौलत काफी तेजी से गिर रही है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022 की पहली छमाही यानी जनवरी से जून तक के वक्त में दुनिया के 500 शीर्ष अमीरों को 14 खरब डॉलर का नुक्सान झेलना पड़ा है। यह अब तक की सबसे बड़ी छमाही गिरावट है।

एक जानकारी के मुताबिक, दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति की दौलत करीब 62 अरब डॉलर कम हुई है, तो वहीं एमेजॉन के सी.ई.ओ. की संपत्ति में लगभग 63 अरब डॉलर की गिरावट हुई है। फेसबुक के सह-संस्थापक की कुल संपत्ति में आधे से ज्यादा की गिरावट देखी गई है। इस समय टैक कंपनियों से लेकर क्रिप्टोकरंसी तक हर जगह घाटा देखने को मिल रहा है। इसके अलावा बाजार और स्टॉक्स में भी तेज गिरावट का दौर जारी है। कोमोडिटी और क्रूड मार्कीट में भी कीमतें तेजी से ऊपर जा रही हैं। 

महंगाई के आंकड़े दुनियाभर को डरा रहे हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में 40 साल के बाद महंगाई दर 8 प्रतिशत से ज्यादा है। यूरोप में भी महंगार्ई का यही हाल है। ब्रिटेन में महंगार्ई दर 40 साल बाद 9 प्रतिशत को पार कर चुकी है। ब्राजील में इस वक्त महंगाई 11.7 प्रतिशत, पाकिस्तान में 14 प्रतिशत और यूक्रेन से युद्ध कर रहे रूस में महंगाई का आंकड़ा 17 प्रतिशत है। भारत में भी यह लगभग 7 प्रतिशत है। हमारे यहां थोक महंगाई दर  इस वक्त 30 साल में सबसे ज्यादा है। आॢथक जानकार  बताते हैं कि भारत में महंगाई की मार लंबी रहेगी, साल 2024 तक। यानी अगले डेढ़ साल महंगाई के मोर्चे पर राहत नहीं है। 

जानकारों के मुताबिक मौजूदा वक्त में अमरीका के मुकाबले भारत की मुश्किलें कहीं ज्यादा हैं। एक बड़ी वजह एनर्जी के मोर्चे पर भारत की आयात पर निर्भरता और रुपए का कमजोर होना भी है! पूरी दुनिया की करंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही है। पौंड 11 फीसदी कमजोर हुआ है तो यूरो 7.6 फीसदी, येन में 17.2 फीसदी की गिरावट है तो युआन में 5.6 फीसदी की। भारतीय रुपया भी पहली बार रिकार्ड 4.7 फीसदी गिरा है। यानी कारोबार करना मुश्किल होगा। इस बीच दुनियाभर की एजैंसियां भारत की विकास दर का अनुमान घटा चुकी हैं। विश्व बैंक 8.7 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी और आर.बी.आई. 7.8 से घटाकर 7.2 फीसदी कर चुका है, फिचरेटिंग्स का ताजा अनुमान 7.8 फीसदी है, जो पहले 10.3 फीसदी था। 

वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में कुछ तर्क भी हैं। मसलन, जी.एस.टी. कलैक्शन, जो सालाना 44 फीसदी इजाफे के साथ लगातार तीसरे महीने 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। मई महीने में निर्यात के मोर्च पर 24 फीसदी की बढ़ौतरी उम्मीदें बंधाती है। हमारी उम्मीदें खेती-किसानी से भी हैं, जिसने कोरोना के संकटकाल में भी अर्थव्यवस्था को बचाया था। हालांकि सवाल मंदी की अवधि को लेकर भी होते हैं। एन.बी.ई.आर. के मुताबिक साल 1945 से 2009 तक दुनियाभर में आई मंदी औसतन 11 महीने चली, हालांकि फरवरी 2020 में शुरू हुई मंदी सिर्फ 2 महीने चली। सबसे अहम सवाल यह है कि मौजूदा वक्त भारत के लिए आपदा है या अवसर? मसलन क्या मैन्युफैक्चरिंग के मोर्चे पर भारत चीन की मुश्किलें बढ़ा सकता है? यह आने वाले वक्त में साफ हो सकेगा। 

अभी इतना तो तय है कि दुनियाभर में आॢथक मोर्चे पर हालात सामान्य नहीं हैं। आम व्यक्ति और व्यवस्था को गैर जरूरी खर्चों पर अंकुश और बचत ही बचा सकेगी। दिखावे के प्रशासनिक और अनुत्पादक सरकारी खर्चे नियंत्रित करने नितांत आवश्यक हैं।-डा. वरिन्द्र भाटिया 
 


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