ई-सिगरेट भी उतनी ही घातक, जितने अन्य नशीले पदार्थ

punjabkesari.in Tuesday, Nov 23, 2021 - 04:29 AM (IST)

जब मनुष्य किसी अवसाद से पीड़ित होता है तो वह नशे की राह पर चलना ज्यादा मुनासिब समझता है। कुछ साल पहले जब धूम्रपान और खासतौर पर सिगरेट के कश से होने वाले नुक्सानों की फिक्र काफी बढ़ गई तब इस लत से छुटकारा पाने और विकल्प के तौर पर इलैक्ट्रॉनिक-सिगरेट यानी ई-सिगरेट का चलन बढ़ा। यह माना गया है कि ई-सिगरेट के सेवन से कोई बड़ा नुक्सान नहीं होता और यह धूम्रपान की सामान्य आदत से आजादी का एक कारगर जरिया है। वैसे तो ई-सिगरेट नशे का ही एक प्रकार है, जो एक बैटरी संचालित यंत्र है जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्रण को गर्म करके एक एरोसोल बनाता है जो असली सिगरेट का अनुभव प्रदान करने का कार्य करता है। 

हालांकि जो व्यक्ति नशे की लत से छुटकारा पाना चाहते हैं, वे एक दूसरे प्रकार के नशे में संलिप्त हो जाते हैं और उनको इसका आभास भी नहीं हो पाता। एक ताजा शोध में यह बात सामने आई है कि ई-सिगरेट की लत के शिकार लोग आम सिगरेट पीने वालों से ज्यादा सिगरेट पीते हैं, जिससे कार्डियक सिम्पथैटिक एक्टिविटी एंडरलीन का स्तर और ऑक्सीडैंटिव तनाव बढ़ जाता है। ई-सिगरेट से कैंसर होने का खतरा एक पैकेट सिगरेट पीने की तुलना में 5 से 15 गुना होता है। धुआं रहित कुछ तंबाकू में 2 से 3 गुना ज्यादा निकोटीन होता है, जो दिल के ढांचे में विषैलापन पैदा करने में सक्षम होता है। ऐसी सिगरेट का आदान-प्रदान करने से टी.बी., हेरप्स और हैपेटाइटिस जैसे वायरस वाले रोग फैल सकते हैं। 

सामान्य सिगरेट सेहत के लिहाज से बहुत नुक्सानदेह होती है और अगर इसकी लत लग जाए तो डाक्टरों का मानना है कि उम्र भी कम हो जाती है साथ ही सांस संबंधी बीमारियों के साथ दूसरी बीमारियां भी होने लगती हैं। ऐसे में इस लत को छुड़ाने के लिए ई-सिगरेट का सहारा लिया जाता है। लेकिन लोगों को यह नहीं पता होता कि इसके सेवन से न केवल फेफड़े प्रभावित होते हैं बल्कि श्वसन क्रियाएं भी अवरुद्ध हो जाती हैं। साथ ही ई-सिगरेट से निकलने वाले धुएं में मौजूद विभिन्न रासायनिक पदार्थ व यौगिकों का फेफड़ों पर पडऩे वाले प्रभाव से लोग अमूमन अनजान होते हैं कि ई-सिगरेट, सिगरेट से भी ज्यादा खतरनाक होती है। 

यह जानना आवश्यक है क्योंकि कुछ ब्रांड्स इसमें फॉर्मलडिहाइड का इस्तेमाल करते हैं। यह तत्व कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल बिल्डिंग मैटीरियल्स में भी किया जाता है। इसके अलावा इनमें एंटीफ्रीज तत्व का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कैंसर का खतरा होता है। ई-सिगरेट्स में फ्लेवर्स के लिए जिन कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है वे भी शरीर के लिए घातक होते हैं। 

बता दें कि ई-सिगरेट डिवाइस पहली बार 2004 में चीनी बाजारों में ‘तंबाकू के स्वस्थ विकल्प’ के रूप में बेची गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2005 से ही ई-सिगरेट उद्योग एक वैश्विक व्यवसाय बन चुका है और आज इसका बाजार लगभग 3 अरब डॉलर का हो गया है। देश-विदेश में ई-सिगरेट के 460 तरह के ब्रांड मौजूद हैं और धड़ल्ले से बिक भी रहे हैं, जो निकोटीन की अलग-अलग मात्रा देने के हिसाब से डिजाइन किए गए हैं। आई.सी.एम.आर. ने बताया है कि ई-सिगरेट शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करती है और गर्भ से लेकर मौत तक व्यक्ति के शरीर पर असर छोड़ती है। यह सांस की नली, दिल की धमनियों, नसों, भ्रूण व शिशु के मस्तिष्क के विकास को भी बाधित करती है। 

भारत में बिकने वाली कुल ई-सिगरेट में से करीब 50 फीसदी की बिक्री ऑनलाइन होती है। इसकी आपूर्ति में चीन सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। ऑनलाइन उपलब्धता के चलते बच्चों से लेकर किशोरों तक इसकी पहुंच बहुत आसान हो गई है। ई-सिगरेट के साथ-साथ वैसे निकोटीन युक्त उत्पादों, जो ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया द्वारा अनुमोदित नहीं हैं, को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसकी रोकथाम की कवायद तभी से प्रारंभ हो गई थी जब पिछले साल अगस्त में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इलैक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम के विनिर्माण, बिक्री एवं आयात रोकने के लिए एक परामर्श जारी किया गया था। 

ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत पहला देश नहीं है। दुनियाभर में अब तक 22 देश इसे प्रतिबंधित कर चुके हैं। सान फ्रांसिस्को ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला अमरीका का पहला शहर बना था। फिनलैंड में तो जुलाई 2008 से ही निकोटीन युक्त कार्टेज की बिक्री या बिक्री के इरादे से खरीद गैर-कानूनी है। लेकिन भारत में प्रतिबंध के बावजूद भी बिक्री और तस्करी पर रोक नहीं लग सकी। 

ई-सिगरेट स्मोकिंग को अब सीधा कोरोना वायरस से जोड़कर देखा जा रहा है। अमरीकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन का कहना है कि ई-सिगरेट पीने से न केवल कोरोना वायरस का खतरा अधिक बढ़ जाता है बल्कि यह सेहत के लिए भी बहुत खतरनाक है। समय के साथ आपकी सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर आपके फेफड़े पहले से ही कमजोर हैं तो कोरोना वायरस जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम सब अपनी युवा पीढ़ी को इस नशे की लत से बचाने हेतु सामाजिक स्तर पर प्रयास करें। इसके लिए आवश्यक है कि ई-सिगरेट पर बने कानून का कठोरता के साथ अनुपालन हो। साथ ही सभी को जागरूक किया जाए कि ई-सिगरेट भी उतनी ही घातक है जितने कि अन्य नशीले पदार्थ।-लालजी जायसवाल
 


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