पार्टियों में वंशवाद, दल-बदल और लोकतांत्रिक व्यवस्था का भविष्य

punjabkesari.in Sunday, Aug 07, 2022 - 05:19 AM (IST)

महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए लेकिन मंत्रिमंडल के गठन पर पांच हफ्ते से गाड़ी अटकी हुई है। दूसरी तरफ विधायकों की अयोग्यता, नए स्पीकर का चुनाव, फ्लोर टैस्ट, पार्टी व्हिप की मान्यता जैसे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तलवार लटक रही है। 

अंतरिम आदेश के बगैर यह मामला अगर संविधान पीठ के पास गया तो फिर उद्धव ठाकरे गुट को कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसके बावजूद इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फाइनल फैसला दल-बदल कानून के साथ राजनीतिक दलों में लोकतंत्र की किस्मत को तय कर सकता है। झगड़ा शुरू होने से उद्धव पार्टी के अध्यक्ष और शिंदे विधायक दल के नेता थे। बागी विधायक जब गुजरात और असम में बाड़े में बंद थे उस समय भी उद्धव ने शिंदे को विधायक दल के नेता पद से नहीं हटाया। 

दूसरी तरफ शिंदे गुट ने खुद को शिवसेना का हिस्सा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने उद्धव ठाकरे को ही पार्टी का अध्यक्ष माना था। शिवसेना के संविधान के तहत नियुक्त किए गए पार्टी के पदाधिकारी उद्धव के समर्थन में हैं। लेकिन उनके पास विधायकों और सांसदों का समर्थन नहीं है। जब उद्धव ठाकरे सियासत के मैदान में परास्त हो गए तो उसके बाद उन्होंने विधायक और संसदीय दल के नेता और व्हिप के पदों पर फेरबदल किया, जिसका उन्हें फायदा नहीं मिला। शिंदे गुट के अनुसार उनके विधायकों ने किसी व्हिप का उल्लघंन नहीं किया और उन्होंने पार्टी को भी नहीं छोड़ा है इसलिए उनकी अयोग्यता का मामला नहीं बनता। 

विधायकों की अयोग्यता और पार्टी पर कब्जे का मामला संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दो तिहाई विधायक या सांसदों का गुट अन्य पार्टी में शामिल हों तभी उन्हें दल-बदल कानून से राहत मिलेगी। लेकिन महाराष्ट्र में शिंदे गुट का दावा है कि उनके विधायकों ने शिवसेना से इस्तीफा नहीं दिया और उन्होंने किसी व्हिप का उल्लंघन भी नहीं किया। शिंदे गुट किसी भी अन्य राजनीतिक दल का टेक ओवर करके विधायकों की सदस्यता को सुरक्षित कर सकता है लेकिन शिवसेना पर उनके उत्तराधिकार का दावा खारिज होने से बी.एम.सी. और दूसरे चुनावों में नुक्सान हो सकता है। इसलिए 40 विधायकों और 12 सांसदों के समर्थन से शिंदे गुट खुद को असली शिवसेना बताकर पूरे संगठन पर आधिपत्य की योजना बना रहा है। उद्धव गुट की दलील है कि विधायकों की अयोग्यता का फैसला हुए बगैर बहुमत परीक्षण, नए स्पीकर और मुख्यमंत्री का चुनाव आदि की प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध है। 

जबकि दूसरे गुट का कहना है कि उद्धव ने बहुमत खो दिया था जिसके बाद विधायक दल के नेता के तौर पर शिंदे का मुख्यमंत्री बनना संविधान सम्मत है। उनके वकीलों के अनुसार अयोग्यता का मामला पैंङ्क्षडग होने के बावजूद विधायक अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करके मुख्यमंत्री और स्पीकर का चुनाव कर सकते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने विधायकों का बहुमत खो दिया है। 

चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन और उन्हें चुनाव चिन्ह आबंटित करने का काम चुनाव आयोग करता है। लेकिन राजनीतिक दलों के संगठन, कार्य पद्धति और चुनाव आज के बारे में जवाबदेही के लिए ठोस कानूनी व्यवस्था नहीं है। उद्धव गुट का कहना है कि विधायकों की अयोग्यता निर्धारित होने के बाद ही पार्टी के चुनाव चिन्ह के बारे में चुनाव आयोग को निर्णय लेना चाहिए। लेकिन शिंदे गुट के वकीलों के अनुसार प्रतिद्वंद्वी गुटों के दावों पर जन-प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव आयोग को स्वतंत्र फैसला करना चाहिए। उद्धव गुट संविधान और कानून की तो शिंदे गुट लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है। लेकिन उद्धव गुट परिवार और वंशवाद के मर्ज से ग्रस्त है। तो दूसरी तरफ शिंदे गुट सत्ता की मलाई हासिल करने के लिए कानूनी सुरंगों का सफल इस्तेमाल कर रहा है। इस मामले की सुनवाई कर रही पीठ के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमन्ना 3 हफ्ते बाद रिटायर हो रहे हैं। 

सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बजाय हाईकोर्ट जाना चाहिए था। शुरूआती दौर में 10 दिनों की राहत के अंतरिम आदेश से शिंदे गुट ने स्पीकर और मुख्यमंत्री पद पर कब्जा कर लिया और उसके बाद अब सुप्रीमकोर्ट के क्षेत्राधिकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं? कई साल पहले उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन के खेल में अदालत के आदेश के बाद घड़ी की सुई उलट गई थी। लेकिन महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश जमीनी हकीकत को कैसे बदल सकता है? 

अगर पूरा मामला संविधान पीठ के पास भेज दिया गया तो फिर उद्धव गुट की सारी अर्जियां और याचिकाएं संवैधानिक तौर पर अति महत्वपूर्ण होने के बावजूद व्यावहारिक तौर पर निरर्थक हो जाएंगी। सन् 1969 में इंदिरा गांधी की वजह से कांग्रेस में दो गुट बन गए थे, जिसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकीलों ने किया। उसी तरीके से शिवसेना मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पार्टियों में वंशवाद, दल-बदल और लोकतांत्रिक व्यवस्था का भविष्य निर्धारित हो सकता है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News