योगी का कद घटाने से यू.पी. की सीटें घटीं
punjabkesari.in Sunday, Jun 30, 2024 - 05:39 AM (IST)
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सीटें कम मिलने के कारण भाजपा बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई। इसके बारे में कई तरह की बातें कही जा रही हैं। दरअसल प्रदेश और देश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता से उनके मंत्रिमंडल के ही कुछ लोग काफी परेशान हैं। इन मंत्रियों की मुख्यमंत्री बनने की लालसा भी हिलोरें मार रही है। जाने-अनजाने में कुछ केन्द्रीय नेताओं का भी इन्हें संरक्षण मिल रहा था। ये लोग नहीं चाहते थे कि योगी की लोकप्रियता बढ़े। इसलिए लोकसभा के चुनाव में भाजपा को जिताने और बढ़ाने में इनकी कोई विशेष सक्रियता भी दिखाई नहीं पड़ी।
अब पार्टी संगठन एक टास्क फोर्स बनाकर इसके कारणों की छानबीन कर रहा है। प्रदेश में भाजपा की सीटें घटने के कई कारण बताए जा रहे हैंं। पहला कारण दो बार लगातार चुनाव जीतने वाले सांसदों का अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा के कार्यकत्र्ताओं के साथ-साथ जनता से सम्पर्क टूट गया था। यदि आप सांसद या विधायक हैं तो आपको अपने क्षेत्र का बराबर दौरा करना चाहिए। लोगों के दु:ख दर्द में शामिल होना चाहिए। उनकी समस्याएं जाननी चाहिएं। जनता ‘आप’ से यही अपेक्षा करती है। ये लोग मोदी और योगी के सहारे चुनाव जीतने की उम्मीदें लगाए बैठे थे, इसलिए अपने क्षेत्रों मेें जनता से सम्पर्क साधने की जरूरत नहीं समझी। ये लोग अपने घर पर ही ठेका-पट्टा पाने वालों का दरबार लगाते रहे। ऐसे लोगों को दोबारा टिकट देने वाले नेता भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। दूसरा बड़ा कारण भाजपा प्रदेश और जिला संगठन भी जनता से दूर हो गया है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कितने जिलों में संगठन को मजबूत करने के लिए कितनी बार दौरा किया, इसका कोई ब्यौरा पार्टी संगठन के पास नहीं है। प्रदेश पार्टी का आई.टी. सैल पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। ब्राह्मणों-ठाकुरों को लड़ाया गया, दलितों और पिछड़ों को भरमाया गया। इनके जरिए आरक्षण खत्म करने से लेकर संविधान बदलते तक की बातें तक कही गईं। जिसका प्रदेश भाजपा का आई.टी. सैल कोई जवाब नहीं दे पाया। हर लोकसभा और विधानसभा चुनावों से 6 महीने पहले ही मतदाता सूची का पोङ्क्षलग, बूथ स्तर पर संशोधन और परिवर्धन होता है। यदि भाजपा संगठन के कार्यकत्र्ता अपने-अपने पोलिंग बूथों पर सक्रिय रहते तो हजारों भाजपा समर्थकों के नाम मतदाता सूची से नहीं कटते। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी का गारंटी कार्ड का फार्म खासतौर अल्पसंख्यक, अशिक्षित और निर्धन महिलाओं से भरवाया गया। उन्हें डर था कि 3 तलाक के मामले खत्म करने के कारण ये महिलाएं भाजपा को वोट दे सकती हैं। काट के लिए पार्टी स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया गया। प्रमुखों की तमाम जिलों में फर्जी सूची बनाई गई जो वास्तव में कहीं थे ही नहीं।
बहरहाल पार्टी संगठन इस हार की समीक्षा के लिए बनाई गई टास्क फोर्स की सूचनाओं का इंतजार कर रही है। पर यहां सवाल यह उठता है कि क्या कोई संगठन खुद अपनी कमियों को स्वीकार करेगा? इस टास्क फोर्स के काम के लिए दूसरे राज्यों के लोगों को लगाया गया होता तो शायद सही जानकारी सामने आती। लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2019 में उसे जहां 62 सीटें मिली थीं, वहीं 2024 के आम चुनाव में 33 पर संतोष करना पड़ा है। भाजपा उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 29 सीटें कम मिलने की पूरे देश में चर्चा है। अब पार्टी भी इस पर मंथन में जुटी है और पूरा फीडबैक लेने के बाद कुछ एक्शन हो सकता है। भाजपा को सबसे ज्यादा हैरानी अमेठी, फैजाबाद (अयोध्या वाली सीट), बलिया और सुल्तानपुर जैसी सीटों पर हार से है। इन सीटों को भाजपा के लिए मजबूत माना जाता था। अमेठी में स्मृति ईरानी की कांग्रेस के एक आम कार्यकत्र्ता से हार ने पूरे नरेटिव को चोट पहुंचाई है।
इसके अलावा अयोध्या की हार भी कान खड़े करने वाली है। सुल्तानपुर से मेनका गांधी भी चुनाव हार गईं जो लगातार जीतती रही हैं। फिर अयोध्या की हार ने तो पूरे नरेटिव को ही चोट पहुंचाई है। भाजपा को उस सीट पर हारना पड़ गया, जहां ऐतिहासिक राम मन्दिर बना है। 500 सालों के इतिहास का चक्र जिस अयोध्या में घूमा, वहां ऐसी हार ने भाजपा को हैरान कर दिया है। अब पार्टी पूरे नरेटिव को कैसे सैट करे और अपनी हार को कैसे पचाया जाए, इसकी तैयारी में जुटी है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा को आर.एस.एस. और उसके अनुषांगिक संगठनों से भी फीडबैक मिलेगा। संघ के लोगों से भी कहा गया है कि वे समीक्षा करके बताएं कि हार के क्या कारण रहे। उत्तर प्रदेश ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। ये चुनाव नतीजे प्रदेश सरकार के मंत्रियों के लिए सबक है। मंत्रियों को भाजपा के कार्यकत्र्ताओं और जनता के सम्पर्क में रहना चाहिए और उनकी जनहित की समस्याओं का समाधान करते रहना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो आगामी विधानसभा के चुनाव में उनका और पार्टी का चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा।-निरंकार सिंह