किसके भरोसे आयोजित हुआ कुंभ मेला

Monday, Apr 19, 2021 - 04:04 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर हरिद्वार कुंभ समाप्त हो गया है। अब कुंभ प्रतीकात्मक रहेगा। साधु-संतों ने यह आश्वासन दिया है कि 27 अप्रैल को होने वाले स्नान के दिन वे सीमित संख्या में स्नान करेंगे। अब कोरोना के कारण पूरे देश में हालात बदतर होते जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि एेसे समय में हरिद्वार कुंभ में लाखों की भीड़ गंगा में डुबकी लगा रही थी। 

इसे कोरोना पर आस्था की जीत बताया जा रहा था। यह तथाकथित जीत हमारे समाज को किस तरह हरा सकती है, इसका अंदाजा शायद हमें नहीं था। सवाल यह है कि आस्था के नाम पर अपने दिमाग की सभी खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लेना कहां तक उचित है? इस मामले में सरकार की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। कोरोना को रोकने के लिए क्या सरकार का काम सिर्फ निर्देश जारी करना और लॉकडाऊन लगाना ही है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि एेसे समय में सरकार ने इतने बड़े आयोजन की अनुमति कैसे दे दी? 

कहा यह जा रहा है कि कोविड रिपोर्ट नैगेटिव आने पर ही कुंभ मेले में जाने की इजाजत दी जा रही थी। यह व्यावहारिक रूप से कैसे संभव हो पाया, यह भी जांच का विषय है। अगर यह मान भी लें कि लाखों लोगों की नैगेटिव कोविड रिपोर्ट देखकर ही कुंभ मेले में जाने दिया जा रहा था तो इस कोविड काल में इतने लोगों की भीड़ को क्या किसी भी लिहाज से सही ठहराया जा सकता है? अगर कोविड रिपोर्ट नैगेटिव है तो क्या दो गज की दूरी कोई मायने नहीं रखती? कुंभ में एक-दूसरे से सटे लाखों लोगों की तस्वीरें विचलित कर रही थीं। 

शायद राज्य सरकार और प्रशासन यह मानकर चल रहे थे कि स्थानीय लोग कोरोना का संक्रमण नहीं फैलाएंगे। तभी वे बाहर से आने वाले लोगों की नैगेटिव रिपोर्ट पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे थे। अगर यह मान लें कि बाहर से आने वाले सभी लोग नैगेटिव थे तो भी स्थानीय लोग कोरोना के संक्रमण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे और स्थानीय लोगों ने यह भूमिका निभाई भी होगी। इसलिए सवाल बाहरी लोगों के नैगेटिव होने का नहीं है, सवाल है कि एेसे समय में इतनी भीड़ को एकत्रित क्यों होने दिया गया? एेसे नाजुक समय में कुंभ का प्रतीकात्मक रूप से आयोजन कर भीड़ को रोका जा सकता था। अब कुंभ भी समाप्त हो गया है लेकिन यहां से संक्रमित भीड़ जब पूरे देश में फैलेगी तो बदतर स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। 

पिछले साल तबलीगी जमात और मरकज को कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। कई दिनों तक तबलीगी जमात को लेकर टी.वी. पर बहस भी चलाई गई थी। बहस का मुख्य मुद्दा यही था कि तबलीगी जमात की लापरवाही के चलते पूरे देश में कोरोना का संक्रमण फैला। इस मुद्दे पर तबलीगी जमात को देशद्रोही सिद्ध करने के लिए पूरा जोर लगा दिया गया था। उस समय मस्जिदों में पुलिस द्वारा नमाजियों को पीटने की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं। इस साल भी एेसी खबरें आ रही हैं कि मस्जिदों में एक साथ ज्यादा लोगों के नमाज पढऩे पर पाबंदी लगाई जा सकती है। जब आप मस्जिद में एक साथ ज्यादा लोगों के नमाज पढऩे पर पाबंदी लगाएंगे तो कुंभ में लाखों की भीड़ पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई जा सकती? दुर्र्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार ने आस्था के सामने घुटने टेक दिए थे। 

सवाल यह है कि कोरोना संक्रमण को लेकर मरकज और कुंभ के लिए अलग-अलग मापंदड कैसे हो सकते हैं? हालांकि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता कह रहे हैं कि मरकज और कुंभ के लिए अलग-अलग मापदंड नहीं हैं। मरकज में एकत्रित लोगों का टैस्ट नहीं हुआ था लेकिन कुंभ में टैस्ट करके ही लोगों को भेजा जा रहा था। सवाल यह है कि क्या इसी आधार पर कोविड की नैगेटिव रिपोर्ट लाने पर शादियों में भी भीड़ की इजाजत दी जा सकती है? क्या कोई भी सभ्य देश आस्था के आधार पर चलता है या फिर परिस्थिति और नियम-कानूनों के आधार पर ? इस समय एेसी परिस्थिति नहीं है कि कहीं भी लाखों की भीड़ एकत्रित होने दी जाए। भले ही वह कुंभ ही क्यों न हो। एेसा लगता है कि जैसे सरकार ने जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है। 

एक तरफ कई जगहों पर लॉकडाऊन लगाने पर विचार किया जा रहा है तो दूसरी तरफ कुंभ में सरकार खुद ही भीड़ के माध्यम से कोरोना विस्फोट की तैयारी कर रही थी। क्या सरकार को यह दिखाई नहीं दे रहा था कि इस साल गत वर्ष की अपेक्षा ज्यादा तीव्रता के साथ कोरोना लोगों को अपने शिकंजे में ले रहा है। अब सरकार और साधु-संत कुंभ को प्रतीकात्मक रूप से आयोजित करने की बात कह रहे हैं। अगर सरकार को कुंभ का आयोजन करना ही था तो यह पहले भी प्रतीकात्मक रूप से ही संभव हो सकता था। इस माध्यम से कुंभ की परम्परा भी बनी रहती और हम हजारों लोगों को कोरोना के संक्रमण से भी बचा सकते थे।-रोहित कौशिक 
 

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