अमरनाथ यात्रा पर अलगाववादियों का दोहरा चरित्र

Thursday, Jun 22, 2017 - 10:59 PM (IST)

कश्मीर घाटी की अर्थव्यवस्था मुख्यत: पर्यटन पर आधारित है और पवित्र श्री अमरनाथ गुफा में प्राकृतिक चमत्कार के तौर पर हर वर्ष हिम शिवलिंग के रूप में विराजमान होने वाले बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए उमडऩे वाला शिवभक्तों का हुजूम कश्मीर के पर्यटन उद्योग को जबरदस्त बढ़ावा देता है। इस प्रकार श्री अमरनाथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा भर नहीं है, बल्कि कश्मीर घाटी की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा भी है। श्री अमरनाथ  यात्रा के आर्थिक महत्व के तथ्य से अलगाववादी नेता भी भली-भांति परिचित हैं।

यही कारण है कि भारत और भारतीयों के प्रति हमेशा जहर उगलने वाले ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रैंस (जी.) के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी सरीखे अलगाववादी नेता भी कश्मीरियों में अपनी पैठ मजबूत करने के चक्कर में अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी देते हुए उन्हें अपना मेहमान बताते हैं। गिलानी को ऐसा लगता है कि अमरनाथ यात्रियों को कश्मीर आने का आह्वान करके वह पर्यटन व्यवसाय से जुड़े उन तमाम कश्मीरियों के मन में जगह बनाने में कामयाब हो जाएंगे, जिनकी  वर्ष भर की रोटी-रोजी का जुगाड़ डेढ़-दो महीने की अमरनाथ यात्रा की सफलता पर निर्भर करता है, लेकिन श्री अमरनाथ यात्रा को लेकर अलगाववादी नेताओं की कथनी और करनी में हमेशा बहुत बड़ा अंतर रहा है। 

वर्ष 2008 का श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसके बाद भी अलगाववादी नेता हर वर्ष अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का वायदा तो करते हैं लेकिन पत्थरबाजों के रूप में घाटी में फैले उन्हीं के गुर्गे अमरनाथ यात्रियों एवं देश के विभिन्न भागों से आकर यात्रा मार्ग के विभिन्न पड़ावों पर नि:शुल्क लंगर सेवा देने वाली भंडारा संस्थाओं के सेवादारों को निशाना बनाने से नहीं चूकते। अलगाववादियों के इस दोहरे चरित्र का ताजा उदाहरण 19 जून 2017 की रात को सामने आया, जब हुर्रियत के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी द्वारा अमरनाथ यात्रियों को कश्मीर आने का आह्वान करने एवं उनकी सुरक्षा की कथित गारंटी देने के अगले ही दिन अलगाववादियों के इशारे पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाली पत्थरबाजों की फौज ने अनंतनाग-पहलगाम मार्ग पर श्री अमरनाथ यात्रा के शेषनाग पड़ाव के लिए भंडारा सामग्री ले जा रही भटिंडा की संस्था जय शिव शंकर वैल्फेयर ट्रस्ट की गाडिय़ों को निशाना बना डाला। इस हमले में संस्था के चेयरमैन एवं एक गाड़ी के ड्राइवर को गंभीर चोटें आईं। 

इससे पहले, वर्ष 2012 की यात्रा के दौरान शेषनाग पड़ाव में पत्थरबाजों की भीड़ ने कई भंडारों को निशाना बनाया था। इसके बाद 2013 में चंदनवाड़ी में भंडारा संचालकों को परेशान किया गया। वर्ष 2014 की यात्रा के दौरान बालटाल आधार शिविर में शरारती तत्वों ने बड़ा हमला करके 9 भंडारे जला दिए, जबकि कई अन्य भंडारों में जमकर लूटपाट की गई। 2015 की यात्रा के दौरान भी ऐसी ही तनावपूर्ण परिस्थितियां बनी रहीं, जबकि 2016 में अनंतनाग जिले के गणेशपुरा में पत्थरबाजों की भीड़ के आगे बेबस भंडारा संचालक एवं सेवादार केवल अपनी जान बचाकर ही भाग पाए और भीड़ ने तमाम भंडारों को तहस-नहस कर दिया।

पत्थरबाजों एवं राष्ट्रविरोधी तत्वों का गुस्सा केवल भंडारा संचालकों एवं सेवादारों पर ही नहीं उतरता, बल्कि अमरनाथ यात्रियों को भी जगह-जगह परेशान किया जाता रहा है, लेकिन दूर-दराज से आए होने के कारण यात्री अपनी आवाज उठाने के बजाय हर उत्पीडऩ सह कर भी चुपचाप अपने घर लौट जाने को ही तरजीह देते हैं। उत्पीडऩ के शिकार यात्रियों को लगता है कि यदि वे पुलिस में शिकायत दर्ज करवाएंगे तो अपने मामले की पैरवी के लिए उन्हें बार-बार कश्मीर आकर थाने और अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे। 

यही कारण है कि भंडारा संचालकों की संस्थाएं श्री अमरनाथ जी बर्फानी लंगर आर्गेनाइजेशन (सबलो) और श्री अमरनाथ यात्रा भंडारा आर्गेनाइजेशन (सायबो) कश्मीर के तनावपूर्ण हालात एवं पिछले वर्षों के दौरान हुई घटनाओं को देखते हुए श्री अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा का जिम्मा सेना अथवा किसी अन्य केंद्रीय सुरक्षा बल को सौंपने की मांग करती रही हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अलगाववादियों के उकसावे में आई पत्थरबाजों की फौज से अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा करना जम्मू-कश्मीर राज्य पुलिस के बूते की बात नहीं है। ऐसे में, 29 जून से शुरू हो रही श्री अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को समय रहते ठोस रणनीति बनाने की जरूरत है, ताकि कोई असामाजिक अथवा राष्ट्रविरोधी तत्व यात्रा में खलल डालने की हिम्मत न कर सकें।        

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