दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं डा. माधव साठे

Friday, Feb 02, 2024 - 02:10 AM (IST)

माधव नाम का एक व्यक्ति है और उसका उपनाम साठे है। मैंने इस आदमी के बारे में अपने इस लेख में बात करने का फैसला किया है क्योंकि हमारे देश को माधव साठे जैसे अधिक पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है। माधव एक डॉक्टर, एक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट हैं, जो अपने जीवन-यापन के लिए ऑप्रेशन थिएटरों में सर्जनों की सहायता करते हैं लेकिन वह जरूरतमंद दूसरे इंसानों की भी चिंता करते हैं और यही बात उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। 

उनकी वर्तमान रुचि ग्रामीण स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में है। उन्होंने अकेले ही महाराष्ट्र के पुणे जिले के खेड़ तालुका के राजगुरुनगर क्षेत्र के 90 गांवों में मुख्य रूप से आदिवासी छात्रों, उनके शिक्षकों और उनके माता-पिता के जीवन को बदल दिया है। राजगुरुनगर और उसके आसपास जिला परिषद द्वारा संचालित 49 आदिवासी स्कूलों, 73 हाई स्कूलों और 468 प्राथमिक स्कूलों में 43,000 से अधिक छात्र और 1,200 शिक्षक इस एक व्यक्ति के अथक प्रयासों से लाभान्वित हुए हैं। 

माधव साठे अपनी पत्नी, जो एक डाक्टर हैं, और अपनी बेटी के साथ मुंबई शहर में रहते हैं। हफ्ते में 5 दिन वह अपनी सर्जरी में व्यस्त रहते हैं। सप्ताहांत में वह कार से 3 घंटे की ड्राइव पर राजगुरुनगर में होते हैं। राजगुरुनगर में वह जो काम करते हैं वह उन्हें एक मिशन वाले व्यक्ति के रूप में चिह्नित करता है। ग्रामीण लोग और उनके बच्चे शनिवार को उनके आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। ऐसे ही शिक्षक भी हैं जिन्हें उन्होंने नि:स्वार्थ सेवा के लिए अपने समर्पण से प्रेरित किया है। 

जब उन्होंने राजगुरुनगर में अपना काम शुरू किया, तो मैं और मेरी पत्नी हर साल 2 बार नहीं तो कम से कम एक बार राजगुरुनगर जाते थे। मुझे बॉम्बे मदर्स एंड चिल्ड्रन वैल्फेयर सोसायटी का अध्यक्ष बने हुए 25 साल हो गए हैं, जिसके माधव मैडीकल कॉलेज से स्नातक होने के बाद से 40 साल या उससे अधिक समय तक सचिव रहे हैं। मेरी सरकारी नौकरी खत्म हो चुकी थी और मैं सेवानिवृत्ति के लिए मुंबई में बस गया था, जिस शहर में मेरा जन्म हुआ था। भारतीय पुलिस सेवा का एक युवा सहकर्मी माधव को मुझसे मिलवाने लाया। माधव ने मुझसे सोसायटी की अध्यक्षता संभालने के लिए कहा, जो मैंने किया। 

उस समय बी.एम.सी.डब्ल्यू.एस. मुंबई शहर में कम भाग्यशाली लोगों के लिए 2 अस्पताल और कामकाजी माताओं वाले बच्चों के लिए 3 क्रैच भी चला रही थी। माधव उनके दैनिक कामकाज की निगरानी करते थे। मुंबई के बाहर 2 गतिविधियां राजगुरुनगर और भीलवाड़ी में थीं जहां सोसायटी ने छोटे ग्रामीण अस्पताल स्थापित किए थे। 

माधव मुख्य रूप से क्षेत्र के लड़कों और लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके, राजगुरुनगर के 90 गांवों के उत्थान में पूरी तरह से डूब गए हैं। उन्होंने टाटा कंसल्टैंसी सॢवसेज द्वारा इसके अध्यक्ष और उनकी पत्नी माला रामदुरई के अच्छे कार्यालयों के माध्यम से दान किए गए कम्प्यूटर प्रदान करके शुरूआत की। इसके साथ ही, 10 वर्षों की अवधि में 600 जिला परिषद स्कूलों को ई-लॄनग भी प्रदान की गई। यह शिक्षकों और छात्रों के लिए एक वरदान है। इस क्षेत्र में वाई-फाई कनैक्टिविटी नहीं थी। बिजली आपूॢत रुक-रुक कर हो रही थी, लेकिन माधव विचलित नहीं हुए। उन्होंने कम्प्यूटर के निरंतर उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए 425 स्कूलों में सौर पैनलों की स्थापना के लिए वित्तपोषण करके अपने दोस्तों को अपने प्रोजैक्ट का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। 

बच्चों को कम्प्यूटर के उपयोग में प्रशिक्षित करने के लिए, माधव ने पहले स्थानीय भील समुदाय के एक आदिवासी लड़के को कम्प्यूटर में प्रशिक्षित किया और फिर उसे मोबाइल वैन के चालक के रूप में नियुक्त किया (जिसे दान भी दिया गया) जो गांवों में घूमती थी और आदिवासी युवाओं को कम्प्यूटर के उपयोग के बारे में शिक्षित करती थी। इस परियोजना में 102 स्कूलों में छात्रों के 355 बैच, कुल 2285 लड़के और लड़कियां, जिनमें से 1393 आदिवासी थे, को शामिल किया गया था। 

धनराशि उपलब्ध होने पर युवाओं के लिए खेल के मैदान तैयार किए जा रहे हैं। नियमित अंतराल पर चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया गया है। स्कूल आने वाले बच्चों को नाश्ता देकर नियमित रूप से उनकी लम्बाई और उनका वजन दर्ज किया जा रहा है। कुपोषण और एनीमिया सबसे आम तौर पर पाई जाने वाली प्रतिकूलताएं हैं। 1600 आदिवासी बच्चों के लिए नाश्ते की खुराक और विटामिन की गोलियों का वित्तपोषण माधव के दोस्तों द्वारा किया जा रहा है। मिड-डे-मील सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। 

यदि कम भाग्यशाली लोगों के लिए एक व्यक्ति के समर्पण और नि:स्वार्थ कार्य को पूरे देश में अन्य समान रूप से प्रेरित व्यक्तियों द्वारा दोहराया जा सकता है, तो भारत रहने के लिए एक अलग जगह होगी। मेरे शहर मुंबई में ऐसे कई व्यक्ति हैं। महाराष्ट्र के एक सेवानिवृत्त डी.जी.पी., डी. शिवानंदन, ‘रोटी बैंक’ चलाते हैं जो हर दिन मुंबई शहर में 12,000 भूखे लोगों को खाना खिलाता है। 

डा. माधव साठे के प्रयासों से उनके द्वारा कवर किए गए गांवों में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। छात्र आश्वस्त हो गए हैं, शिक्षक नई शिक्षण अवधारणाओं को विकसित करने के इच्छुक हैं और माता-पिता ने शिक्षा में नई रुचि दिखाई है। यदि आगे वे अपने बच्चे के भविष्य पर शिक्षा का प्रभाव देखते हैं, तो अधिक माता-पिता और शिक्षक ग्रामीण युवाओं की शिक्षा में शामिल करेंगे। इससे निश्चित रूप से ‘सबका विकास और ‘सबका विश्वास’ सुनिश्चित होगा, लेकिन ‘प्रयास’ प्रदान करने वालों की संख्या बढऩी होगी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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