मिलावटखोरी भी एक कारण है गौवंश की दुर्दशा का

Friday, Feb 23, 2018 - 01:36 AM (IST)

आज गौवंश, खासकर देसी, क्यों भटक रहा है? क्योंकि गौवंश के रखवाले किसानों ने इनका पालन-पोषण करना बंद कर दिया है। इसका कारण है गौवंश से पैदा होने वाले दूध का लागत मूल्य भी न मिलना। मिसाल के तौर पर एक क्षेत्र से देसी गाय 5-6 किलो दूध देती है तो उसके पालक को भैंस या विदेशी गाय द्वारा पैदा किए गए 8-10 किलो दूध के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं। 

ऐसी बात नहीं कि बाजार में गाय के महंगे दूध के खरीदार न हों लेकिन महंगा दाम देकर भी ग्राहकों को खालिस दूध की बजाय अन्य कई प्रकार से हेराफेरियां करके तैयार किया गया मिलावटी या कृत्रिम दूध-घी ही दिया जा रहा है। देसी गाय के नाम पर देसी घी आम घी की तुलना में 100 रुपए लीटर तक महंगा बिक रहा है। वास्तविकता यह है कि आज पूरे देश में दूध और दूध निर्मित पदार्थों जैसे कि खोया, पनीर, मक्खन इत्यादि के नाम पर जो कुछ तैयार हो रहा है और बिक रहा है उतना तो दूध का उत्पादन भी नहीं होता। उपभोक्ता इसी भ्रम में रहता है कि वह शुद्ध देसी घी प्रयुक्त कर रहा है और अपनी सेहत बना रहा है। 

इन दिलचस्प सच्चाइयों का खुलासा गत दिनों भारत सरकार के पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं पूर्व आयुक्त मनमोहन सिंह आहलूवालिया से मिलकर बातचीत करने पर हुआ। दिसम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट में स्वामी अच्युतानंद एवं श्री आहलूवालिया द्वारा एक मुकद्दमा दायर किया गया था। इस मुकद्दमे का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में केन्द्र सरकार को फटकार लगाई थी कि वह मिलावट के विरुद्ध कड़ी नीति तैयार करे। लेकिन मिलावट करने वाली लॉबी के आगे प्रत्येक सरकार और हर राजनीतिक पार्टी बेबस है। ऐसे लोग वास्तव में एक माफिया का रूप ग्रहण कर चुके हैं। भारत की सबसे बड़ी फूड ग्रेडिंग संस्था ‘एफ.एस.एस.ए.आई.’ ने स्वयं इस मुकद्दमे के दौरान माना था कि देश में दूध से तैयार होने वाले खाद्य पदार्थों का 68.7 प्रतिशत जहरीले अंशों से भरा होता है। 

यदि हम देसी घी के परीक्षण की बात करें तो केवल साधारण डाक्टरी टैस्ट से यह स्पष्ट हो जाएगा कि घी में पाए जाने वाले तत्व और रंग प्राकृतिक नहीं हैं। इन्हें बाजार से खरीदे गए रासायनिक पदार्थों से तैयार किया जाता है लेकिन ऐसी बातों का खुलासा ‘एफ.एस.एस.ए.आई.’ के टैस्टों से नहीं होता। यदि घी में वसा की मात्रा कम है तो कृत्रिम रंग मिलाकर या किसी बाहरी ढंग से मिलावट करके घी और फैट की रंगत दिखाकर टैस्ट पास करवाया जा सकता है। केवल चिकित्सीय परीक्षण ही यह साबित कर सकते हैं कि रंग प्राकृतिक है या कृत्रिम। 

बाजार में देसी गाय के उत्पादों की भरपूर मांग होने के बावजूद इसका लाभ देसी गाय के पालकों तक नहीं पहुंचता। मिलावट व जहर इंसान के शरीर को खोखला कर रहे हैं। मधुमेह, गुर्दा रोग, कैंसर, घुटनों और जोड़ों का दर्द, डिप्रैशन, मोटापा आदि बीमारियां बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक एडवाइजरी जारी करके आगाह किया गया है कि चंद सालों में मानवीय शरीर में ये बीमारियां खतरनाक हद तक बढ़ जाएंगी। इनके लिए मुख्य तौर पर मिलावटी खान-पान ही जिम्मेदार है। शुद्ध शहद, दूध, अनाज पैदा करने वाला व्यक्तिपिछड़े इलाकों में रहने के कारण अपने उत्पाद का वास्तविक मूल्य हासिल करने में असमर्थ होता है और इसीलिए औने-पौने दामों पर इन्हें बिचौलियों के हाथों बेचने को मजबूर होता है। ऐसा निराशा का वातावरण ही उसे आत्महत्या की ओर धकेल रहा है। 

यही कारण है कि किसान वर्ग गौवंश से मुंह मोड़ रहा है और इसी दुर्दशा के कारण गौवंश सड़कों पर धक्के खा रहा है या फिर बूचडख़ानों में पहुंच रहा है। बीच-बीच में यह हमारी राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट बैंक जुटाने के भी काम आता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा हुआ है। इसमें गौवंश से मिलने वाले उत्पादों से होने वाली आय भी शामिल है। वैसे यदि 10 वर्षों की अवधि वाला एक पायलट प्रोजैक्ट शुरू किया जाए तो देसी गाय दूसरी या तीसरी पीढ़ी तक 15 लीटर तक दूध देने की क्षमता हासिल कर लेगी।-रतन अग्रवाल

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