न पड़े महंगे स्टील की मार, एक्सपोर्ट ड्यूटी में खामी दूर करे सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Jun 22, 2022 - 04:30 AM (IST)

कारोबारियों की आवाज, प्रतिष्ठित ‘पंजाब केसरी’ के 8 जून के अंक में मैंने स्टील सैक्टर में जरूरी सुधारों पर प्रकाशित अपने लेख को इस कड़ी में भी जारी रखना इसलिए जरूरी समझा कि केंद्र सरकार द्वारा एक्सपोर्ट-इंपोर्ट शुल्क में बदलाव से 22 प्रतिशत तक घटे स्टील के दाम ज्यादा दिन तक टिकने के आसार नहीं हैं। समय रहते सरकार ने सही कदम नहीं उठाया तो देश की 5-7 बड़ी स्टील कंपनियों के मनमाने दाम फिर से करोड़ों छोटे-बड़े कारोबारियों से लेकर आम उपभोक्ताओं को प्रभावित करेंगे। 

एक्सपोर्ट में कमी लाकर देश के मैन्युफैक्चरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर सैक्टर को सस्ते दाम पर स्टील की सप्लाई बढ़ाने के लिए केंद्र ने मई में कई सारे तैयार स्टील उत्पादों पर 15 फीसदी एक्सपोर्ट शुल्क लगाया। दूसरी ओर स्टील निर्माता बड़ी कंपनियों को भी राहत के लिए लौह अयस्क (ऑयरन ओर) पर 30 प्रतिशत एक्सपोर्ट शुल्क बढ़ा कर 50 प्रतिशत किया। कोयला, कोकिंग कोल पर भी ढाई से 5 फीसदी इंपोर्ट शुल्क शून्य करने के सरकार के यह राहत भरे कदम पहली नजर में सराहनीय हैं। स्टील सैक्टर में यह राहत लंबे समय तक जारी रहना मुश्किल है क्योंकि राहत उपायों में सरकार ने सैमी-फिनिश्ड स्टील को एक्सपोर्ट शुल्क के दायरे से बाहर रखा है। 

वैश्विक स्टील बाजार में मंदी के छंटते ही बड़ी कंपनियां एक्सपोर्ट शुल्क मुक्त सैमी-फिनिश्ड स्टील, जैसे इंगट, बिल्लेट और स्लैब का एक्सपोर्ट बढ़ानेे की तैयारी में हैं। तैयार माल पर एक्सपोर्ट शुल्क शून्य से 15 फीसदी होने पर देश से तैयार स्टील माल का एक्सपोर्ट (पहले 95 प्रतिशत योगदान) करीब 20 प्रतिशत घटा है। घटे एक्सपोर्ट की भरपाई के लिए भारत की इन स्टील निर्माता कंपनियों द्वारा लौह अयस्क पर मामूली लागत से तैयार सैमी-फिनिश्ड स्टील का एक्सपोर्ट मार्च 2023 तक एक करोड़ टन के पार जा सकता है। स्टील सैक्टर की एक रेटिंग एजैंसी ने आशंका जताई है कि देश से साल दर साल घटते हुए 2021 में 26 प्रतिशत घटकर 49 लाख टन रहा सैमी-फिनिश्ड स्टील का एक्सपोर्ट इस साल तेजी से बढ़ सकता है। 

एक्सपोर्ट शुल्क मुक्त सैमी-फिनिश्ड स्टील जैसी बड़ी खामी देश के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर पर पहले जैसा संकट गहरा सकती हैं। सरकार को सैमी-फिनिश्ड स्टील उत्पादों पर भी एक्सपोर्ट शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए। दूसरा, सस्ते सैकेंडरी स्टील का इंपोर्ट भी बहाल हो। साल 2011 से सैकेंडरी स्टील के इंपोर्ट पर प्रतिबंध इस तर्क के आधार पर लगाया गया था कि हल्की क्वालिटी के इम्पोर्टेड स्टील से तैयार माल सही नहीं होगा। हालांकि बीते 11 साल में सरकार इंपोर्टेड सैकेंडरी स्टील की क्वालिटी के मापदंड तय नहीं कर पाई। एक लचीली अर्थव्यवस्था में खरीदारों का विशेषाधिकार है कि वे कौन से उत्पाद खरीदना चाहते हैं। थोपे गए सरकारी फैसले कई बार बाजार की जरूरत और हकीकत से परे होते हैं। 

एक्सपोर्ट शुल्क में बदलाव का असर : 50 प्रतिशत एक्सपोर्ट शुल्क लगाने के बाद देश से लौह अयस्क का एक्सपोर्ट अचानक 20 प्रतिशत पर सिमट गया। घटे एक्सपोर्ट के कारण देश के सबसे बड़े लौह अयस्क खनिक और विक्रेता राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एन.एम.डी.सी.) द्वारा कीमतों में लगभग 1100 रुपए प्रति टन की कमी से अयस्क के दाम मई के 6600 रुपए प्रति टन की तुलना में जून में 5500 रुपए प्रति टन रह गए। घरेलू बाजार में लौह अयस्क की कीमतों में गिरावट से भी एक्सपोर्ट शुल्क मुक्त सैमी-फिनिश्ड स्टील के एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलना तय है। 

बड़ी स्टील निर्माता कंपनियों के लिए प्रमुख कच्चे माल ‘कोल’ का इंपोर्ट सस्ता होने से भी उत्पादन लागत घटी है। मार्केट इंटैलीजैंस एजैंसी ‘कोलमिंट’ के लागत विश्लेषण के मुताबिक ‘कोकिंग कोल’ पर 2.5 प्रतिशत इंपोर्ट शुल्क हटाने से स्टील उत्पादन पर लगभग 1100 रुपए प्रति टन की बचत हुई और ‘मेट कोक’ पर 5 प्रतिशत इंपोर्ट शुल्क हटने से करीब 2400 रुपए प्रति टन बचे हैं। टैक्स दरों में बदलाव का सीधा असर लौह अयस्क से तैयार सैमी-फिनिश्ड स्टील के उत्पादन पर प्रति टन करीब 3500 रुपए की कमी आई है। सैमी-फिनिश्ड स्टील में इंगट, बिल्लेट और स्लैब की उत्पादन लागत 10 से 15 प्रतिशत घट कर लगभग 43000 रुपए प्रति टन या 550 अमरीकी डॉलर प्रति टन रह गई है, जबकि चीन और जापान में 625 डॉलर प्रति टन उत्पादन लागत की तुलना में वैश्विक स्तर पर प्रति टन स्टील की औसत लागत 575 डॉलर है। 

स्वतंत्र नियामक संस्था जरूरी : एक पैसे की मोबाइल फोन कॉल पर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए ट्राई (टैलीकॉम रैगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) जैसी नियामक संस्था है, जबकि कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे सबसे बड़े रोजगारदाता मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के प्रमुख कच्चे माल स्टील पर किसी का नियंत्रण नहीं है। स्टील सैक्टर में बड़े सुधारों की दिशा में एक स्वतंत्र रैगुलेटरी संस्था के गठन के साथ नई स्टील पॉलिसी की भी जरूरत है। स्टील के मनमाने दाम का सही पता लगाने के लिए लौह अयस्क से लेकर तैयार माल की उत्पादन लागत की पूरी कड़ी पर नजर रखने की जरूरत है। 1300 प्रतिशत से अधिक शुद्ध लाभ कमाने वाली बड़ी स्टील कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए एक ऐसा माहौल बने कि सबसे निचले पायदान तक के छोटे उद्यमी की भी कम दाम के रूप में बड़ी कंपनियों के लाभ में हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। 

रैगुलेटर की जरूरत इसलिए है कि 5-6 बड़ी स्टील कंपनियां मनमाना लाभ कमाने की बजाय दाम जायज रखें। इसके लिए देशभर के मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर एवं कंस्ट्रक्शन सैक्टर को सीधे सरकारी दखल या स्वतंत्र रैगुलेटरी संस्था के जरिए अपने हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। 

आगे की राह : एक्सपोर्ट टैक्स में बदलाव सरकार द्वारा घरेलू बाजार में सस्ते स्टील की सप्लाई बढ़ाने के लिए उठाया गया सही कदम है। लेकिन सैमी-फिनिश्ड स्टील को एक्सपोर्ट शुल्क के दायरे से बाहर रखने पर सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ मकसद अधूरा रह सकता है। ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि देश की जी.डी.पी. में 25 प्रतिशत, एक्सपोर्ट में 45 प्रतिशत योगदान के साथ देश की 12 करोड़ आबादी को रोजगार देने वाले 6.4 करोड़ एम.एस.एम.ई. के हितों को ताक पर रखकर सरकार 5-7 बड़ी स्टील निर्माता कंपनियों को भाव नहीं देगी। सैमी-फिनिश्ड स्टील पर एक्सपोर्ट शुल्क के अलावा सैकेंडरी स्टील की इंपोर्ट बहाली से देश के आर्थिक विकास को रफ्तार के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने में सरकार जल्द दखल दे।-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)


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