लोकतंत्र के पूरक न बनें अपराधी
punjabkesari.in Friday, Jun 21, 2024 - 05:16 AM (IST)
एक ताजा-तरीन रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार इस बार के लोकसभा चुनावों में जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। लोकतंत्र में सुधार के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (ए.डी.आर.) ने इन लोकसभा चुनावों में जीतने वाले सभी प्रत्याशियों के हलफनामों का अध्ययन कर यह जानकारी निकाली है। ए.डी.आर. की रिपोर्ट के मुताबिक 543 जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत (251) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके अलावा सभी जीतने वाले प्रत्याशियों में 31 प्रतिशत (170) ऐसे हैं जिनके खिलाफ बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
27 जीतने वाले प्रत्याशी ऐसे हैं जो दोषी भी पाए जा चुके हैं और या तो जेल में हैं या जमानत पर बाहर हैं। 4 जीतने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या के मामले, 27 के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले, 2 के खिलाफ बलात्कार, 15 के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध, 4 के खिलाफ अपहरण और 43 के खिलाफ नफरती भाषण देने के मामले दर्ज हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी साफ पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी की जीतने की संभावना सिर्फ 4.4 प्रतिशत है, जबकि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे प्रत्याशी की जीतने की संभावना 15.3 प्रतिशत है। भाजपा के 240 विजयी प्रत्याशियों में से 39 प्रतिशत (94), कांग्रेस के 99 विजयी प्रत्याशियों में से 49 प्रतिशत (49), सपा के 37 में से 57 प्रतिशत (21), तृणमूल कांग्रेस के 29 में से 45 प्रतिशत (13), डीएमके के 22 में से 59 प्रतिशत (13), तेदेपा के 16 में से 50 प्रतिशत (8) और शिवसेना (शिंदे) के सात में से 71 प्रतिशत (पांच) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
आरजेडी के 100 प्रतिशत (चारों) प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। स्थिति को राज्यवार देखें तो केरल सबसे आगे है, जहां विजयी प्रत्याशियों में से 95 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। उसके बाद तेलंगाना (82 प्रतिशत), ओडिशा (76 प्रतिशत), झारखंड (71 प्रतिशत) और तमिलनाडु (67 प्रतिशत) जैसे राज्यों का स्थान है। इनके अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, गोवा, कर्नाटक और दिल्ली में 40 प्रतिशत से ज्यादा विजयी प्रत्याशी आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
ए.डी.आर. की रिपोर्ट दिखा रही है कि चुनाव दर चुनाव ऐसे सांसदों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आपराधिक और गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2009 में लोकसभा में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 30 प्रतिशत थी। 2014 में यह संख्या बढ़ कर 34 प्रतिशत, 2019 में 43 प्रतिशत और 2024 में 46 प्रतिशत हो गई। गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या देखें तो 2009 में उनकी संख्या 14 प्रतिशत थी, 2014 में बढ़कर 21 प्रतिशत, 2019 में 29 प्रतिशत और 2024 में 31 प्रतिशत हो गई। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि राजनीतिक दल यह मान नहीं रहे हैं कि जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हों ऐसे लोगों को चुनाव लड़ाना देश के लिए अच्छा नहीं हैं। सभी जगह अकुशल शासन राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस बिन्दू पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपनी चिंता जताई है। सजायाफ्ता नेताओं की सदस्यता रद्द करने का-4 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि 2 साल या उससे अधिक की सजा पाए नेताओं की सदस्यता रद्द हो जाएगी। सदस्यता रद्द होने के अलावा दागी नेता 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। कोर्ट ने फैसले में आगे कहा था कि जेल में रहते हुए किसी नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं होगा और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक फैसले में कहा कि राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि दागी उम्मीदवारों को क्यों टिकट दिया और उनपर कितने केस दर्ज हैं। कोर्ट ने कहा सभी माध्यमों में विज्ञापन देकर राजनीतिक दल जनता को दागी छवि वाले उम्मीदवारों के बारे में बताएं।
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि देश में कितने सांसद और विधायक दागी हैं? इनके केसों की सुनवाई के लिए कितने स्पैशल कोर्ट बनाए गए हैं? इसकी जानकारी दीजिए। सुनते हैं कि केंद्र ने हलफनामा जमा नहीं किया, जिस पर कोर्ट और केंद्र में ठन गई। 2018 में दागी नेताओं को टिकट नहीं देने की याचिका पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बैंच में सुनवाई चल रही थी। इस पर केंद्र सरकार भड़क गई। तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संसद का काम भी आप ही कर दीजिए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा- जब तक आप नहीं करेंगे तब तक हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते हैं। चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवारों और पाॢटयों को जितने पैसे की जरूरत होती है, जो साधारण लोगों के बस में नहीं है। साथ ही इलाके में अपराध की वजह से अपराधियों की नैटवर्किंग काफी मजबूत रहती है। इन दोनों वजहों से राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देती है। इनमें कई अपराधी चुनाव जीत कर रॉबिनहुड की छवि बना लेते हैं।
वर्तमान में ऐसी स्थिति बन गई है कि राजनीतिक दलों के मध्य इस बात की प्रतिस्पर्धा है कि किस दल में कितने उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं क्योंकि इससे उनके चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाती है आज राजनीति और अपराध की दुनिया का आपस में अटूट इश्किया बंधन है जो कभी भी जुड़ा नहीं होगा यह एक बार फिर इस बार के लोक सभा चुनावों मे कड़वा सच बन कर सामने आया है हमें सुनिश्चित करना होगा कि अपराधी लोकतंत्र के पूरक न बन सकें।-डा. वरिन्द्र भाटिया