क्या मोदी सरकार के पास ‘निर्णायक कदम’ उठाने के लिए समय या इच्छा है

Sunday, Feb 24, 2019 - 04:46 AM (IST)

पुलवामा में आतंकवादी हमले ने कश्मीर की स्थिति पर तेजी से ध्यान आकर्षित किया है। कुछ समय से व्यापक तौर पर ऐसा माना जा रहा था कि राज्य की स्थिति बिगड़ती जा रही है। क्या इसके भी कारण हैं कि स्थितियां और भी खराब हो सकती हैं? 

शुरूआत आज की स्थिति, जब मोदी सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, की तुलना 2014 की स्थिति के साथ करके करते हैं, जब सरकार 
ने सत्ता सम्भाली थी। दिसम्बर 2018 तक आतंकवादी घटनाओं की संख्या 3 गुणा बढ़कर 222 से 614 हो गई जबकि शहीद हुए सुरक्षा कर्मियों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 47 से 91 हो गई। इस समय के दौरान एक वर्ष में बम धमाकों की संख्या में 330 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई जो 35 से बढ़कर 117 हो गए। 

पिछला वर्ष बदतरीन था
दरअसल पिछला साल कई मायनों में बदतरीन था। मुठभेड़ों तथा झड़पों में मारे गए लोगों की संख्या 586 तक पहुंच गई जो गत एक दशक में सर्वोच्च है। आतंकवाद में शामिल होने वाले स्थानीय कश्मीरियों की संख्या 191 हो गई जो उससे पहले के वर्ष के मुकाबले 50 प्रतिशत की वृद्धि है। वहीं आतंकवादियों की गोलीबारी में मारे गए पुलिस कर्मियों की संख्या 45 थी जो 2017 से लेकर 125 प्रतिशत की वृद्धि है। इसलिए न केवल स्थिति में अत्यंत तेजी से गिरावट आई है बल्कि ऐसा दिखाई देता है कि इसकी रफ्तार बढ़ती जा रही है। दूसरे शब्दों में चीजें बड़ी तेजी से बिगड़ रही हैं। 

इस सामान्य तस्वीर में दो कारण विशेष ध्यान देने वाले हैं। पहला, युवा कश्मीरी तथा अधिक ङ्क्षचताजनक यह कि युवा लड़कियां आतंकवादियों को पकड़े जाने से बचाने के लिए निडर होकर सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी कर रही हैं। यह युवा पीढ़ी अत्यंत अलग-थलग है। अब यह तथ्य कि पुलवामा हमले में एक आत्मघाती बम हमलावर शामिल था, मात्र 20 वर्षीय, उनको कट्टर बनाए जाने की ओर संकेत करता है। कट्टरवादी इस्लाम की पकड़ उल्लेखनीय रूप से मजबूत हुई है। चिंता की एक अन्य बात यह है कि पुलवामा एक दशक से भी अधिक समय के बाद आत्मघाती बम हमलावरों तथा वाहन में आई.ई.डी. लाद कर विस्फोट करने की घोषणा बना है। इसलिए जहां स्थिति बिगड़ती जा रही है और युवा अलग-थलग हो रहे हैं, वहीं आतंकवादी जानलेवा तरीके अपना रहे हैं। 

अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी
यदि यह पर्याप्त रूप से बुरा नहीं है तो यह मानने के पीछे कारण है कि स्थितियां और भी अधिक खराब हो सकती हैं। पहला, अमरीका अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया में है, जबकि तालिबान वापसी करते दिखाई दे रहे हैं। बहुत से लोगों का यह मानना है कि अफगानिस्तान में बदलती परिस्थितियां कश्मीर में आतंकवाद को प्रोत्साहन तथा मजबूती प्रदान करेंगी। यह तथ्य कि पुलवामा के हमलावर ने अपने आत्मघाती वीडियो में तालिबान तथा अफगानिस्तान में स्थिति का हवाला दिया है, इस चिंता का समर्थन करता है। 

दूसरा ङ्क्षचताजनक कारक अफगानिस्तान से अमरीकी सेनाओं की वापसी में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका और यह सुनिश्चित करना है कि तालिबान वार्ता में सहयोग करें। क्या यह आई.एस.आई. को भारत के खिलाफ अधिक जोखिम उठाने तथा आतंकवाद में बढ़ावा करने को प्रोत्साहित करेगा। तार्किक तौर पर हां। तीसरा कारक है मौसम जिसका प्रभाव हो सकता है। फिलहाल सर्दियां हैं तथा रास्ते बर्फ से ढके हैं। आमतौर पर ऐसे समय में सीमा पार से आतंकवादियों का खतरा कम होता है। बसंत तथा गर्मियों में यह शीर्ष पर होता है। पुलवामा हमले के बाद क्या यह वर्ष वास्तव में ‘गर्म’ गर्मियों वाला हो सकता है? 

चुनाव तथा आतंकवादी संगठन
अंतत: लश्कर-ए-तोयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद जानते हैं कि भारत में अप्रैल तथा मई में चुनाव होने हैं। प्रश्र यह है कि वे कैसे प्रतिक्रिया देंगे? यह हमले बढ़ाने का अवसर है क्योंकि इससे मोदी सरकार की परेशानियां बढ़ेंगी या इसे पुन: सोचने का कारण देंगे क्योंकि वे जानते हैं कि मोदी जोरदार पलटवार करेंगे। स्पष्ट कहूं तो मैं चिंतित हूं। न केवल स्थिति गत 5 वर्षों के दौरान बहुत तेजी से खराब हुई है, जिसमें 2017 के मुकाबले 2018 उल्लेखनीय रूप से अधिक खराब रहा, बल्कि यह मानने के पीछे अच्छे कारण हैं कि इसमें और गिरावट आएगी। चूंकि चुनाव सिर पर खड़े हैं, क्या सरकार के पास निर्णायक कदम उठाने के लिए समय अथवा इच्छा है? मैं तो कहूंगा कि हमें इंतजार करना चाहिए।-करण थापर

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