भाजपा क्या भारतीय संविधान को बदलना चाहती है

Thursday, Feb 22, 2018 - 03:33 AM (IST)

हिंदू राष्ट्रवाद पर श्रद्धा रखने वाली भाजपा को भारतीय संविधान के संबंध में दुविधा का सामना करना पड़ रहा है। सत्ता में होने के कारण इसे आवश्यक रूप में चुनावी उद्देश्यों के लिए भारतीय संविधान के आगे नतमस्तक होना पड़ता है। इसे दलितों एवं हाशिए पर जीने वाले लोगों सहित समाज के सभी वर्गों से वोट मांगने होते हैं। वर्तमान में भाजपा के पास इतना संसदीय संख्या बल नहीं कि वह संविधान में बदलाव कर सके। 

इस पृष्ठभूमि में केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े का यह बयान कि ‘भाजपा के पास संविधान को बदलने की ताकत है’ शायद भाजपा की समूची रणनीति से मेल नहीं खाता। यह राजनीति इस प्रकार के बदलाव से पहले संसद में दो-तिहाई बहुमत हासिल करने पर लक्षित है। हेगड़े ने ब्राह्मण युवा परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए कहा: ‘‘यदि कोई खुद को मुस्लिम, ईसाई, ब्राह्मण,लिंगायत या हिंदू के रूप में प्रस्तुत करता है तो मुझे इससे खुशी होती है लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब कोई कहता है कि वह ‘सैकुलर’ है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा इस संविधान को बदलने वाली है। बाद में जब लोकसभा में इस बयान की आलोचना हुई तो उन्होंने घुमा-फिरा कर अपने बयान को इस तरह पेश किया: ‘‘यदि संविधान को बदलने तथा सैकुलरवाद के बारे में इन टिप्पणियों से किसी को कष्ट पहुंचा है तो मुझे क्षमा याचना करने में कोई झिझक नहीं।’’ 

निश्चय ही भाजपा के इरादों को भांपा जाना चाहिए और हेगड़े की क्षमा याचना पूरी तरह एक दाव-पेंच मात्र है। एक पार्टी के रूप में भाजपा को संविधान की सीमाओं के अंदर ही काम करना पड़ेगा क्योंकि इसे वैधानिक रूप में यह शपथ लेनी होगी। फिर भी जब 1998 में भाजपा नीत राजग सरकार सत्ता में आई थी तो इसने संविधान की समीक्षा के लिए वैंकटचलैया आयोग की स्थापना की थी जोकि संभवत: भाजपा की ओर से अपने इरादों का प्रथम खुला और सूक्ष्म बयान था। यह अलग बात है कि संविधान की समीक्षा के प्रति समाज के बहुत बड़े वर्गों के विरोध को देखते हुए इसने आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 

2014 में मोदी नीत राजग सरकार के सत्तासीन होने के बाद 2015 के गणतंत्र दिवस के मौके पर इसने संविधान की प्रस्तावना से युक्त एक ऐसा विज्ञापन जारी किया था जिसमें से ‘सैकुलर एवं समाजवादी’ शब्द ही गायब थे। नवम्बर 2017 में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि भारत में यदि कोई ‘सबसे बड़ा झूठ’ है तो वह है सैकुलरवाद। भाजपा वर्तमान में अपना छिपा हुआ एजैंडा इतनी जल्दी जाहिर नहीं करेगी, फिर भी यह स्पष्ट तौर पर माना जा रहा है कि भाजपा वर्तमान संविधान और कानूनों के बारे में सहज महसूस नहीं करती-खासतौर पर कश्मीर से संबंधित धारा 370, मजहब की स्वतंत्रता से संबंधित धारा 25 तथा अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए जाने से संबंधित धारा 30 के मामले में।

भाजपा चूंकि विशाल संघ परिवार का हिस्सा है इसलिए हमें यह भी देखना होगा कि आर.एस.एस. के विचारक, इसके विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे तथा अन्य घटकों द्वारा इस विषय में क्या बोला जाता है? इन संगठनों ने बार-बार भारतीय संविधान के प्रति अपने विरोध तथा हिंदू धर्म ग्रंथों पर आधारित संविधान निर्माण के अपने लक्ष्य को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक संगठनों के सब प्रयास वर्तमान संविधान द्वारा प्रदत्त जनतांत्रिक सैकुलर स्वतंत्रताओं को प्रयुक्त करते हुए हिंदू राष्ट्रवाद का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में लक्षित हैं। आर.एस.एस. के द्वितीय सरसंघ चालक एवं प्रमुख विचारक गुरु गोलवल्कर ने ‘विचार नवनीत’ (बंच आफ थाट्स) जैसी अपनी पुस्तकों में यह दलील दी है कि भारतीय संविधान की बुनियाद भू-क्षेत्रीय राष्ट्रवाद पर आधारित है जोकि निरोल बर्बरता है। उनके अनुसार लोकतंत्र हिंदू संस्कृति के लिए बेगाना है। जब भारत की संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान पास किया तो आर.एस.एस. को बिल्कुल ही प्रसन्नता नहीं हुई। 

संघ परिवार के एक अन्य प्रमुख वैचारिक दीन दयाल उपाध्याय हैं। वह भारतीय जनसंघ का अंग थे जोकि भाजपा का पुराना रूप था। उपाध्याय का कहना है कि भारत ने एक ऐसा संविधान तैयार किया है जो पश्चिम की नकल मात्र है, जो हमारी जीवन शैली की वास्तविकताओं से तथा हमारी मौलिक चिंतन परम्परा से टूटा हुआ है और समाज व व्यक्ति के रिश्तों की भारतीय अवधारणाओं से पूरी तरह बेमेल है। अपने पूर्ववर्ती विचारकों की तरह उपाध्याय भी यह महसूस करते थे कि भारत का संविधान हिंदू राजनीतिक दर्शन का साकार रूप होना चाहिए और यही भारत जैसे एक प्राचीन राष्ट्र के लिए शोभनीय होगा। 

उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्र की परिकल्पना को केवल एक भूखंड तक और किसी एक समुदाय तक सीमित करना गलत एवं झूठ है। संविधान की धारा 25, 30 और 370 इत्यादि के संबंध में भाजपा का असहजपन मुख्य तौर पर इसलिए है कि ये धाराएं विभिन्नतावादी समाज का समर्थन करती हैं। भारतीय संविधान में निहित समानता का अधिकार भी इन धाराओं की आधारशिला है।-राम पुनियाणी

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