क्या भारत के परमाणु सिद्धांत में बदलाव की जरूरत है

punjabkesari.in Tuesday, Mar 15, 2022 - 04:44 AM (IST)

एक ब्रिटिश दार्शनिक बर्टरैंड रसल ने 1960 के दशक में अनुमान लगाते हुए कहा था कि यदि परमाणु शक्ति सम्पन्न देश अपने शस्त्रागारों में कमी करने के लिए कड़ा रुख नहीं अपनाते तो आने वाले 10 वर्षों में परमाणु युद्ध होगा। मगर रसल तथा एक अन्य ब्रिटिश उपन्यासकार सी.पी. स्ने की भविष्यवाणी तथा विचारधारा के विपरीत पांच दशकों के बाद भी ऐसा नहीं हुआ। अब जबकि रूस-यूक्रेन में जारी युद्ध गंभीर रुख अपनाता जा रहा है और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल करने जैसी धमकियां दी जा रही हैं, तो फिर इसका अर्थ क्या हुआ? 

परमात्मा न करें कि यदि रूस-यूक्रेन के जारी युद्ध के दौरान या किसी भी कोने में परमाणु शक्ति का गलत इस्तेमाल किसी भी मुद्दे को लेकर किसी भी देश या किसी संगठनों द्वारा किया गया तो मानवता का विनाश संभव है। इस पृष्ठभूमि में क्या भारत के लिए परमाणु हथियारों  के इस्तेमाल संबंधी वर्ष 1998 में तय की गई रणनीति में किसी बदलाव की जरूरत है? 

बदलाव की जरूरत : जब 1998 में पोखरण टैस्ट-2 के उपरांत भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के तौर पर उभरा तो पूरे विश्व में हलचल मच गई। उस समय की वाजपेयी सरकार के एक दिलेरी, हिम्मत तथा दूरंदेशी वाले निर्णय के बाद कई प्रगतिशील/प्रभावशाली देशों द्वारा भारत के लिए आर्थिक सहायता पर या सहयोग न देने संबंधी प्रतिबंध लगाए गए और देश को अस्थाई तौर पर कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसका लाभ तब प्राप्त हुआ जब डा. मनमोहन सिंह सरकार को अमरीका तथा बाकी एजैंसियों/संस्थाओं के साथ गैर-सैन्य परमाणु समझौता करते समय भारत को एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के तौर पर मान्यता प्राप्त हुई। उस समय की एन.डी.ए. सरकार ने परमाणु परीक्षणों पर स्वैच्छिक रोक लगानेे के साथ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने में पहलकदमी न करने अर्थात ‘नो फस्र्ट यूज’ (एन.एफ.यू.) करने वाला भी फैसला लिया। 

प्रश्न उत्पन्न होता है कि विश्व भर में विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत तेजी से बदलते हालात के कारण क्या भारत की परमाणु हथियारों संबंधी नीति में बदलाव की जरूरत है? जरूरत इस बात की भी है कि आने वाले समय में संभावित युद्ध बारे कल्पना करते समय पाकिस्तान को पड़ोसी देशों से अलग रख कर अनुमान नहीं लगाने चाहिएं। 

विचारणीय बात यह भी है कि क्या भारत-चीन के बीच परमाणु स्थिरता के संकेत हैं? विशेष तौर पर अब जब भारत-चीन की सीमा पर तनाव वाली स्थिति बनी हुई है और चीन ने अपने रक्षा बजट को 7.1 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की है, अर्थात वर्ष 2022-23 का 17.57 लाख करोड़ का अनुमान, जबकि भारत का रक्षा बजट केवल 5.25 लाख करोड़ है। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि म्यांमार बड़ी तेजी से परमाणु बम बनाने में जुटा हुआ है। जब पाकिस्तान के वैज्ञानिक ए.क्यू. खान को गिरफ्तार किया गया तो उसके 2 अन्य साथियों ने म्यांमार में शरण ले ली थी, जो अब म्यांमार को परमाणु शक्ति के तौर पर उभरने में अत्यंत सहायक हो रहे हैं। 

यह भी सिद्ध हो गया है कि चीन, उत्तरी कोरिया तथा पाकिस्तान म्यांमार को परमाणु शक्ति के तौर पर उभारने के लिए तकनीक, परमाणु ईंधन तथा अन्य हर किस्म की सहायता उपलब्ध करवाने में सहायक हो रहे हैं। भारत की सीमा से लगभग 850 किलोमीटर की दूरी पर म्यांमार में ‘कछुआ का कवच’ (कोड वर्ड) के नाम से 800 सुरंगें भी खोदी जा रही हैं। 

पाकिस्तान की स्थिति : इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान स्वाभाविक तौर पर ऐसा देश है जिस बारे पक्की तरह से कुछ नहीं कहा जा सकता। परमाणु हथियारों की दौड़ में ऐसा देश कहीं अधिक खतरनाक साबित हो सकता है। यदि पाकिस्तान के शासक गीदड़ भभकियां ही देते हों तो क्या हो सकता है कि जेहादी आवाम जरूरत पडऩे पर पाकिस्तान सरकारों को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर दे या आतंकवादी संगठन 9/11 तथा 26/11 की तरह खुद कोई अनोखी कार्रवाई शुरू करें जिससे भारत की एकता तथा अखंडता को ठेस पहुंचे। वैसे तो परमाणु बमों का इस्तेमाल करने के अधिकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पास हैं, मगर परमाणु शस्त्रागारों की असली चाबी तो वहां की सेना के पास ही है। 

कोई भी परमाणु सक्षम महाशक्ति परमाणु हथियारों तथा रासायनिक स्रोतों का इस्तेमाल करने की अवस्था में पहलकदमी करने की प्रतिज्ञा तभी करती है जब उसकी आॢथक स्थिति मजबूत हो और उसे यह अहसास हो कि उसके पास पारंपरिक शक्ति इतनी है कि उसे युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा। क्या भारत की परम्परागत श्रेष्ठता इतनी है कि हम चीन की पारंपरिक शक्तियों पर नियंत्रण पा सकें तथा पाकिस्तान को भय द्वारा सबक सिखाने की हमारे पास शक्ति हो? 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पोखरण में 16 अगस्त, 2019 में कहा था कि ‘भारत ने अभी तक परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पहले के आधार पर न करने (एन.एफ.यू.) वाली नीति अपनाई है मगर आगे हालात पर निर्भर करेगा।’ इसमें विशाल भारत के पड़ोसी मुल्कों द्वारा अपनी पारंपरिक तथा परमाणु शक्ति को ठोस बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। समय की पुकार है कि ‘परमाणु’ ‘स्व:रक्षक’ वाले सिद्धांत को प्रमुख रखते हुए रक्षा हथियारों के नवनिर्माण, परमाणु हथियारों की देखरेख तथा जरूरत पडऩे पर परमाणु शक्ति का इस्तेमाल करने संबंधी एक विशाल, दिलेराना तथा दृढ़ता भरी रचनात्मक रणनीति तैयार करने के लिए एन.एफ.यू. पर पुनॢवचार किया जाए, इसी में सारे देश की भलाई होगी।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.) 
 


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