क्या वायु प्रदूषण बच्चों पर जन्म के बाद ही असर डालता है या उससे पहले भी
punjabkesari.in Saturday, Nov 29, 2025 - 05:10 AM (IST)
दिल्ली - एन.सी.आर. में एयर क्वालिटी लैवल ‘गंभीर’ रेंज में है, ऐसे में डाक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि नुकसान बच्चे के जन्म से बहुत पहले ही शुरू हो जाता है। इस बारे में नई दिल्ली के एम्स में पीडियाट्रिक्स के प्रौफेसर डा. काना राम जाट से बात की गई। उन्होंने अजन्मे और छोटे बच्चों पर प्रदूषण के छिपे हुए असर के बारे में बताया कि नुकसान गर्भ में ही शुरू हो जाता है। मां की सांस के ज़रिए अंदर जाने वाले प्रदूषकक्षण उसके ब्लडस्ट्रीम में जाते हैं और भ्रूण तक पहुंचते हैं जो ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के लिए पूरी तरह से मां के खून पर निर्भर रहता है। पेश हैं बातचीत के कुछ अंश-
प्र: प्रदूषण के संपर्क में आने से भ्रूण पर लंबे समय तक क्या असर होते हैं?
उ: एयर प्रदूषक सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रैस और भ्रूण को ऑक्सीजन की सप्लाई कम कर देते हैं। इससे अंगों का विकास रुक जाता है, खासकर फेफड़ों में, जिससे नवजात शिशु के रेस्पिरैटरी सिस्टम के खराब होने और उसे नियोनैटल केयर में ज्यादा समय तक रहने की जरूरत पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादा प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों का जन्म के समय वजन कम होने, एलर्जी, घरघराहट और अस्थमा होने की संभावना ज्यादा होती है और उनके विकास में देरी का खतरा भी ज्यादा होता है।
प्र: शिशुओं और छोटे बच्चों को बड़ों के मुकाबले ज्यादा खतरा क्यों होता है?
उ: उनके फेफड़े अभी भी बढ़ रहे होते हैं और उनकी कैपेसिटी बहुत कम होती है। इसलिए, उतनी ही प्रदूषित हवा से ज्यादा जलन होती है- जैसे दही के एक छोटे कटोरे में उतनी ही मात्रा में मिर्च पाऊडर डालना, जितनी एक बड़े कटोरे में।
प्र: क्या छोटे बच्चों में सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं? सबसे आम बीमारियां क्या हैं?
उ: हालांकि इन्फैक्शन की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन शिशुओं और छोटे बच्चों में पतले एयरवे और कम फेफड़ों की कैपेसिटी के कारण ज्यादा गंभीर लक्षण दिखते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में सबसे आम समस्याओं में वायरल इन्फैक्शन के बाद बार-बार सर्दी-जुकाम, निमोनिया और घरघराहट के दौरे शामिल हैं। प्रदूषण से अस्थमा बढ़ता है, इन्फैक्शन बिगड़ता है और नींद में खलल पड़ता है, घरघराहट बढ़ जाती है, स्कूल छूट जाता है और ज्यादा हॉस्पिटल जाना पड़ता है। हॉस्पिटल अक्सर ज्यादा प्रदूषण के समय बच्चों में सांस लेने की इमरजैंसी बढऩे की रिपोर्ट करते हैं।
प्र: बहुत छोटे बच्चों में अस्थमा का पता लगाना मुश्किल क्यों होता है?
उ: क्योंकि कई बीमारियां अस्थमा जैसी ही होती हैं, इसलिए सांस लेने में दिक्कत, सांस लेने में आवाज, होंठ या नाखून नीले पडऩा, ठीक से खाना न खाना, सुस्ती, दौरे पडऩा या रिस्पॉन्स कम होने पर माता-पिता को तुरंत मैडिकल मदद लेनी चाहिए।
प्र: माता-पिता को ब्रोंकियोलाइटिस के बारे में क्या पता होना चाहिए, निमोनिया कितना गंभीर है?
उ: दो साल से कम उम्र के बच्चों में आम ब्रोंकियोलाइटिस सर्दी-जुकाम की तरह शुरू होता है लेकिन कुछ दिनों में सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। ज्यादातर बच्चे ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ को देखभाल की ज़रूरत होती है। निमोनिया की गंभीरता अलग-अलग होती है और किसी भी चिंताजनक लक्षण पर तुरंत मैडिकल मदद लेनी चाहिए।
प्र: क्या बचपन में बार-बार होने वाले फेफड़ों के इन्फैक्शन से लंबे समय तक दिक्कतें हो सकती हैं?
उ: हां, क्योंकि बचपन में फेफड़े लगातार बढ़ते रहते हैं इसलिए बार-बार होने वाले इन्फैक्शन से बाद में जिंदगी में लगातार घरघराहट या अस्थमा का खतरा बढ़ सकता है।
प्र: माता-पिता आम तौर पर किन गलतफहमियों पर यकीन
करते हैं?
उ: कुछ माता-पिता आम गलतफहमियों में शामिल हैं:
-बच्चों को अस्थमा नहीं हो सकता।
-सांस के जरिए लिए जाने वाले स्टेरॉयड नशे की लत वाले होते हैं।
-अस्थमा एक सामाजिक
कलंक है।
- हर इन्फैक्शन के लिए एंटीबायोटिक्स की जरूरत होती है।
-खुद से दवा लेना काफी है।-अनुजा जायसवाल
