हमें हिन्दू राष्ट्र की जरूरत है या वर्तमान कानूनों में बदलाव की

punjabkesari.in Monday, Apr 25, 2022 - 04:30 AM (IST)

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई थी तथा तीन वर्षों में यह 100 का हो जाएगा। कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि विशेषकर 2019 से लेकर अब तक के घटनाक्रमों के बाद, 2025 तक भारत एक हिंदू राष्ट्र के तौर पर बदलाव का अग्रदूत बनेगा। मैंने एक पूर्ववर्ती पुस्तक में इस बात का खुलासा किया था कि इसका संभावित अर्थ क्या हो सकता है और अब कुछ पहलू यहां ले रहा हूं। एक राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष, हिंदू राष्ट्र, इस्लामिक राष्ट्र या कुछ भी अन्य कानून के आधार पर हो सकता है। ये कानून ही हैं जो राज्य की प्रकृति को परिभाषित करते हैं। 

आज भारत एक संविधान के माध्यम से चलता है जिसे स्वतंत्रता के बाद अपनाया गया था तथा 19वीं शताब्दी में कुछ आपराधिक कानून संहिताबद्ध किए गए थे। ये कानून यानी भारतीय दंड संहिता, 1860 में आई तथा दक्षिण एशिया भर में न्यूनाधिक वैसी ही बनी रही। यह समझने के लिए कि कैसे बदलाव आ सकते हैं, यहां हम पहले यह समझने का प्रयास करेंगे कि शब्द हिंदू राष्ट्र का क्या अर्थ है? 

मेरे मन में यह 2 चीजों में से एक हो सकती है। पहली है हिंदू ग्रंथों की व्याख्या तथा इन ग्रंथों के आधार पर एक देश तथा कानूनों का निर्माण। यहां समस्या, जैसे कि अम्बेडकर ने अपने लेख ‘जाति प्रथा का विनाश’ में समीक्षा की थी, इन ग्रंथों का लागू होना नहीं है। हमारे समय में कानून में जाति के सिद्धांत को जबरन लागू करना संभव नहीं है, इस तथ्य के बिना कोई अन्य कारण से नहीं कि अधिकांश ङ्क्षहदुओं को इससे नुक्सान होगा। 

इसी कारण से नेपाल एक अपूर्ण हिंदू राष्ट्र था जो 2008 तक रहा। नेपाल राजशाही में कार्यकारी शक्ति क्षत्रिय राजा से प्राप्त होती है, जिसका उल्लेख मनु स्मृति में किया गया है तथा उसे एक ब्राह्मण सलाह देता था जिसे अदालत में मूल पुरोहित या बड़ा गुरुज्यु कहा जाता था। मगर जातिगत ढांचे का कोई भी अन्य हिस्सा लागू नहीं किया गया था क्योंकि ऐसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए भारत में हम एक हिंदू राष्ट्र को खारिज कर सकते हैं जहां केवल वे जन्म लेने वाले क्षत्रिय हम पर शासन करेंगे जैसा कि ब्राह्मणों ने सलाह दी थी और हम बाकियों के पास बहुत कम अथवा कोई अधिकार नहीं है। 

हिंदू राष्ट्र जो एक अन्य किस्म अपना सकता है वह बहिष्करण होगी। यह वह किस्म है जिसे पाकिस्तान सहित कई धार्मिक देशों ने अपनाया है। पाकिस्तान में कोई भी गैर-मुसलमान कानून के द्वारा (अनुच्छेद 91) प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। यही राष्ट्रपति के मामले में भी था (अनुच्छेद 41), यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पास संसद को भंग करने की शक्ति है, जो भारत के राष्ट्रपति के पास नहीं है। इसलिए इस तरह के एक हिंदू राष्ट्र में कानून द्वारा यह व्यवस्था की जा सकती है कि कोई भी गैर-हिंदू प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री नहीं बन सकता और केवल हिंदू ही कुछ पदों पर बैठाए जा सकते हैं।

हमें यहां यह विचार करना चाहिए कि हालांकि हमारे पास ऐसा कोई कानून नहीं है, इस देश में कोई भी मुसलमान मुख्यमंत्री नहीं है, तथा किसी भी मुसलमान ने कश्मीर के अतिरिक्त मुख्यमंत्री के तौर पर अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं किया और निश्चित तौर पर भारत में कभी भी एक मुसलमान प्रधानमंत्री नहीं रहा। इस तरह का हिंदू राष्ट्र अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कुछ अन्य भेदभावपूर्ण पहलू भी अपना सकता है जैसे कि पाकिस्तान ने चुना।

उदाहरण के लिए गैर-मुसलमान अलग निर्वाचन क्षेत्रों में वोट डालते हैं तथा अहमदिया समुदाय खुद को मुसलमान नहीं कह सकता और उन्हें कोई धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी ने प्रस्ताव दिया है कि मुसलमानों को उनके वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। 

जर्मनी ने 1930 के दशक में कुछ ऐसे कानून अपनाए जो समुदायों के बीच अंतर्राज्यीय विवाह को रोकते थे। 2018 के बाद भारत में 7 भाजपा शासित राज्यों ने भी ऐसे कानून पारित किए जो मुसलमानों तथा हिंदुओं के बीच विवाह को अपराध ठहराते हैं। जर्मन कानूनों में यहूदियों को नागरिकता से बाहर रखा गया तथा भारत ने भी निश्चित तौर पर सी.ए.ए. अपनाया जो मुसलमानों को बाहर रखता है तथा गृहमंत्री ने एन.आर.सी. का वायदा किया है जो उन लोगों को निशाना बनाता है जिन्हें वह ‘दीमक’ कहते हैं। बहुत-सी चीजें जो भारत ने विशेष तौर पर 2019 के बाद से लक्षित कानूनों तथा नमाज, हिजाब, बीफ, बुल्डोजर, तलाक आदि की नीति के माध्यम से की हैं, ऐसी चीज होगी जिसे हम बहिष्करण वाले हिंदू राष्ट्र में देख सकते हैं। 

तो प्रश्र यह है कि यदि हमने पहले ही मुसलमानों को राजनीतिक पदों से बाहर कर दिया है और हम उन्हें कानूनों  के माध्यम से पहले ही रोज प्रताडि़त कर रहे हैं जैसे कि नाजी जर्मनों तथा पाकिस्तान ने किया, तो हमें क्यों एक हिंदू राष्ट्र की जरूरत है या वर्तमान कानूनों में बदलाव करने की? वर्तमान संविधान तथा कानून हिंदुओं को कानूनी तौर पर गैर-हिंदुओं के खिलाफ भेदभाव करने की पर्याप्त स्वतंत्रता देते हैं जबकि इसके बावजूद बहुलतावादी, लोकतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष का ढोंग किया जा रहा है। निश्चित तौर पर हम अभी भी ऐसा कर सकते हैं क्योंकि यह हमें गौरवान्वित करता है तथा हम मुसलमानों को और भी प्रताडि़त कर और उन्हें कह सकते हैं कि भारत में उनका कोई हक नहीं है। 

हम जो भी निर्णय लेते हैं उसमें दुनिया की रुचि होगी। धार्मिक देशों का युग समाप्त हो चुका है तथा 21वीं शताब्दी में कोई भी नया महत्व हासिल नहीं किया गया। धर्म के आधार पर बने कई देशों ने अपने भेदभावपूर्ण कानूनों को बदल दिया है क्योंकि व्यक्तियों को देखने के लिए जन्म तथा मत बहुत संकीर्ण विचार हैं।-आकार पटेल


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