आग लगने की स्थिति में घबराएं नहीं
punjabkesari.in Friday, Dec 08, 2023 - 05:45 AM (IST)

आए दिन हम आगजनी के हादसों के बारे में सुनते रहते हैं। ऐसी दुर्घटनाओं में कई लोग अपनी जान भी गंवा देते हैं। अक्सर जान-माल के नुकसान का कारण अज्ञानता और जागरूकता होती है। अग्निकांड जैसे हादसों में यदि धैर्य और सूझ-बूझ से काम लिया जाए तो बड़े हादसे और जान-माल का नुकसान टाला जा सकता है। परंतु पश्चिमी देशों की तुलना में हमारे देश की आपदा प्रबंधन एजैंसियां उतनी तत्परता से काम नहीं करतीं। यदि स्कूली बच्चों और सभी नागरिकों को आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जानकारी व्यापक रूप से दे दी जाए तो दुर्घटनाओं के समय यह जानकारी जान-माल का अधिक नुकसान होने से बचा सकती है।
पाठकों को याद दिला दें कि 1986 में दिल्ली के पांच सितारा होटल सिद्धार्थ में भीषण आग लगी थी। इस दुर्घटना में 37 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और 40 से अधिक लोग घायल हुए थे। गौरतलब है कि इस हादसे में मरने वाले केवल भारतीय ही थे जबकि उस होटल में अमरीका और जापान के मेहमान भी रह रहे थे। विदेशी मेहमानों को केवल मामूली चोट ही आई थी। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ? सभी विदेशियों ने अपने-अपने कमरों के दरवाजों के नीचे वाली जगह पर गीले तौलिए लगा दिए थे। ऐसा करने से धुएं को कमरे के अंदर आने का मार्ग नहीं मिला। यदि धुआं किसी कारण कमरे में घुसा भी तो काफी कम मात्रा में। इसके साथ ही सभी विदेशियों ने अपनी नाक को एक गीले कपड़े से बांध रखा था जिससे कि धुआं उनके फेफड़ों में न जा सके।
चूंकि इन सभी विदेशियों को आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जानकारी थी, ये सभी अपने-अपने कमरों में जमीन पर लेट गए क्योंकि धुआं हमेशा ऊपर की ओर ही उठता है। ऐसा करने से इन विदेशियों ने, अग्निशमन दल के पहुंचने तक खुद को जीवित रखा जबकि भारतीयों को ऐसी प्राथमिक जानकारी न होने के कारण आग और धुएं का शिकार होना पड़ा। हड़बड़ी में सभी भारतीय यहां-वहां भागने लगे और फेफड़ों में धुआं घुसने के कारण उनका दम घुटा। दिल्ली हो या देश का अन्य कोई भी शहर जब भी किसी इमारत या भवन में आग लगती है तो वहां अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। लोग अज्ञानता और घबराहट के चलते यहां-वहां भागते हैं और अपने शरीर में धुएं को बड़ी आसानी से प्रवेश दे देते हैं। गौरतलब है कि आग लगने की स्थिति में यदि हम इधर-उधर दौड़ते हैं तो हमारी सांस लेने की गति भी बढ़ जाती है और धुआं काफी अधिक मात्रा में हमारे फेफड़ों में घुस जाता है, नतीजतन हम बेहोश होकर गिर जाते हैं और आग की लपटें हमें जला देती हैं। आंकड़ों के अनुसार अग्निकांड में ज्यादा मौतें दम घुटने के कारण होती हैं।
इसलिए यदि आप कभी ऐसी स्थिति में फंस जाएं तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें। सबसे पहली बात बिल्कुल भी घबराएं नहीं। यदि आप होश में रहेंगे और हिम्मत से काम लेंगे तो आप औरों की मदद भी कर पाएंगे। अपने मुंह पर एक गीला रूमाल या कपड़ा बांध लें और जमीन पर लेटे रहें। यदि आप किसी बंद कमरे में फंस जाते हैं तो उस कमरे में जहां से भी धुआं आने की संभावना हो उस रास्ते को किसी गीले कपड़े से जाम कर दें जब तक कि अग्निशमन दल के कर्मी आप तक न पहुंचें। ऐसी ही सलाह अपने आस-पास के लोगों को भी दें। यदि आपका मोबाइल फोन काम कर रहा हो तो आपातकालीन नम्बरों पर कॉल करके अपनी सही लोकेशन बताएं जिससे कि आप तक सहायता पहुंच सके। इसके साथ ही देश में आपदा प्रबंधन की एजैंसियों को भी नागरिकों के बीच जागरूकता को बढ़ाना चाहिए। दमकल विभाग को भी पुलिस कंट्रोल रूम की तर्ज पर छोटी-छोटी अग्निशमन की गाडिय़ों को मुख्य स्थानों पर खड़ा कर देना चाहिए। ऐसा करने से ट्रैफिक जाम के चलते अग्निशमन की गाडिय़ों को पहुंचने में देरी भी नहीं लगेगी।
इन छोटी गाडिय़ों में तैनात कर्मियों को अग्नि हादसों में प्राथमिक कार्रवाई करने की पूरी ट्रेनिंग भी हो। दुर्घटना की स्थिति में ऐसे कर्मियों का नजदीकी अग्निशमन केंद्र से संपर्क हो और वे सही स्थिति का जायजा लेकर उचित मदद मंगवा सकें। आज के सूचना क्रांति के युग में काफी मदद सोशल मीडिया से भी मिल सकती है। जैसे पुलिस की मदद के लिए सिविल डिफैंस के स्वयंसेवी त्यौहारों और अन्य बड़े आयोजनों पर तैनात किए जाते हैं तो आपदा प्रबंधन के लिए भी ऐसा ही कुछ किया जाना चाहिए। ये सब तभी संभव है जब आपदा प्रबंधन विभाग नागरिकों के बीच व्यापक जागरूकता फैलाए और संबंधित सरकारें भी आपदा प्रबंधन को पूरी सहायता प्रदान करें। जब भी कोई दुर्घटना होती है तो उस पर राजनीतिक रोटियां न सेंकी जाएं। जहां तक हो सके दुर्घटना के प्रबंधन की दिशा में काम हो न कि आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाएं। पश्चिम की तुलना में हमें भी आपदा स्थिति से जागरूक हो कर लडऩे की जरूरत है।-रजनीश कपूर