‘राफेल’ मामले की जांच का आदेश न देने का कारण ‘भोली’ रक्षा मंत्री ही बताएं

Sunday, Oct 07, 2018 - 04:24 AM (IST)

रक्षा मंत्री एक भोली महिला हैं। उन्हें बहुत-सी बातें नहीं पता जो 3 सितम्बर 2017 को उनके द्वारा पद सम्भालने से पहले राफेल सौदे के संबंध में हुईं। ऐसा दिखाई देता है कि उन्होंने अपने खुद के रोजमर्रा के कार्यों को नजरअंदाज कर दिया है। 

भारत तथा फ्रांस की सरकारों के बीच राफेल विमान सौदे की घोषणा 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा पैरिस में की गई थी और इस संबंध में एक समझौते पर 23 सितम्बर 2016 को हस्ताक्षर किए गए थे। इससे एक विवाद पैदा हो गया और जांच के लिए मांग की जाने लगी। हाल ही में रक्षा मंत्री ने कहा था कि क्यों वह जांच का आदेश दें? उन्हें संदेह का लाभ देते हुए, जो हम हमेशा भोले-भाले लोगों को देते हैं, मैं समझता हूं कि इस संबंध में तर्क देना उचित होगा। इसके 10 कारण हैं :

1. भारत तथा फ्रांस की सरकारों के बीच एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए जिसके तहत भारत ने 2 इंजनों वाले मल्टी-रोल 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने थे। 12 दिसम्बर 2012 को खोली गई एक अंतर्राष्ट्रीय निविदा के माध्यम से प्रति विमान की कीमत 526.10 करोड़ रुपए तय की गई। निर्माता डसाल्ट ने 18 विमानों की ‘उडऩे की स्थिति’ में आपूर्ति करनी थी। बाकी 108 विमानों का निर्माण भारत में डसाल्ट तकनीक का इस्तेमाल करके हिंदोस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (एच.ए.एल.) की बेंगलुरू स्थित इकाई में किया जाना था। यह तकनीक एक ट्रांसफर आफ टैक्नोलाजी समझौते के तहत एच.ए.एल. को उपलब्ध करवाई जानी थी। समझौते को रद्द कर दिया गया और प्रधानमंत्री ने 10 अप्रैल 2015 को एक नए ‘सौदे’ की घोषणा कर दी। क्या रक्षा मंत्री हमें बताएंगी कि क्यों पहले समझौते को रद्द करने तथा एक नया समझौता करने का निर्णय लिया गया? 

2. नए समझौते के अंतर्गत भारत एक गोपनीय कीमत पर 36 विमान खरीदेगा। भारतीय वायुसेना ने कहा था कि इसे लड़ाकू जैट्स के 42 स्क्वाड्रनों की जरूरत है, अभी इसके पास 31 स्क्वाड्रन हैं। क्यों सरकार ने केवल 36 विमान (2 स्क्वाड्रन) खरीदने का निर्णय लिया जबकि जरूरत 126 विमानों (7 स्क्वाड्रन) या अधिक की थी? 

3. हर दृष्टि से, सरकार वही विमान उसी निर्माता से ‘उन्हीं मापदंडों’ के मुताबिक खरीद रही है। ये अंतिम शब्द 10 अप्रैल 2015 के संयुक्त वक्तव्य  के हैं। क्या यह सच है कि नए समझौते के अंतर्गत प्रति विमान की कीमत 1660 करोड़ रुपए (डसाल्ट के खुलासे के अनुसार) है और यदि सच है तो कीमत में 3 गुणा वृद्धि का क्या स्पष्टीकरण है? 

4. यदि नए समझौते के अनुसार विमान की कीमत वास्तव में 9 प्रतिशत ‘कम’ है, जैसा कि सरकार ने दावा किया है तो क्यों सरकार केवल 36 विमान खरीद रही है न कि डसाल्ट द्वारा आफर किए गए सभी 126 विमान? 

5. नए समझौते को एक ‘आपातकालीन खरीद’ के तौर पर पेश किया गया था। यदि पहला विमान सितम्बर 2019 में ही सौंपा जाना है (समझौते के चार वर्ष बाद) और अंतिम  2022 में, तो कैसे यह एक आपातकालीन खरीद हुई? 

6. एच.ए.एल. को 77 वर्षों का अनुभव है और इसने विभिन्न निर्माताओं से लाइसैंस के अंतर्गत कई तरह के विमान बनाए हैं। नया समझौता करते समय डसाल्ट से एच.ए.एल. को तकनीक के हस्तांतरण का कोई जिक्र नहीं था। क्यों एच.ए.एल. को तकनीक  के हस्तांतरण का समझौता रद्द कर दिया गया? 

7. भारत द्वारा प्रत्येक रक्षा खरीद विक्रेता पर ‘ऑफसैट’ की बाध्यता लागू करती है। डसाल्ट ने स्वीकार किया है कि 36 विमानों की खरीद के खिलाफ इस पर 30 हजार करोड़ रुपए की ऑफसैट बाध्यता होगी। एच.ए.एल. एक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी है। इसका 3 मार्च 2014 को डसाल्ट के साथ एक ‘कार्य सांझेदारी’ समझौता हुआ और यह ऑफसैट पार्टनर के तौर पर क्वालीफाई हुई। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति होलांदे ने खुलासा किया है कि भारत सरकार ने ऑफसैट पार्टनर के तौर पर निजी क्षेत्र की एक कम्पनी  का नाम सुझाया था और फ्रांस व डसाल्ट के पास इस मामले में ‘कोई विकल्प नहीं था’। भारत सरकार ने इंकार किया है कि इसने नाम सुझाया था। क्या सरकार ने कोई नाम सुझाया था, यदि नहीं तो क्यों इसने एच.ए.एल. का नाम नहीं सुझाया? 

8. फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरैंस पार्ली ने 27 अक्तूबर 2017 को नई दिल्ली में भारत की रक्षा मंत्री से भेंट की थी। उसी दिन पार्ली नागपुर चली गईं। एक समारोह, जिसमें केन्द्रीय मंत्री  नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडऩवीस तथा भारत में फ्रांस के राजदूत शामिल थे, में पार्ली ने नागपुर के नजदीक मिहान में निजी क्षेत्र की एक कम्पनी के कारखाने की आधारशिला रखी, जहां ऑफसैट आपूॢत का निर्माण किया जाना है। क्या रक्षा मंत्री को पार्ली के इस कार्यक्रम बारे जानकारी नहीं थी, जब दोनों की मुलाकात हुई थी, यदि नहीं तो क्या उन्होंने अगले दिन के समाचार पत्रों में इसके बारे में नहीं पढ़ा? 

9. डसाल्ट तथा उसके निजी क्षेत्र के ऑफसैट सांझीदार ने अक्तूबर 2016 में एक प्रैस रिलीज में खुलासा किया कि उनका सांझा उपक्रम ‘ऑफसैट बाध्यताओं के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी होगा।’ क्या रक्षा मंत्री सच बोल रही थीं जब उन्होंने यह कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि डसाल्ट ने ऑफसैट सांझीदार के तौर पर निजी क्षेत्र की एक कम्पनी को चुना है? 

10. एच.ए.एल. का लाइसैंस के अंतर्गत मिग, मिराज तथा सुखोई तथा अपना खुद का तेजस विमान बनाने का रिकार्ड है। इसकी पूंजी 64,000 करोड़ रुपए है। 2017-18 में इसकी टर्नओवर 18,283 करोड़ रुपए और लाभ 3322 करोड़ रुपए था। एक हालिया वक्तव्य में रक्षा मंत्री ने एच.ए.एल. के पूर्व सी.एम.डी. टी.एस. राजू के वक्तव्य का खंडन किया और एच.ए.एल. के खिलाफ उपेक्षापूर्ण टिप्पणियां कीं। क्या सरकार का इरादा एच.ए.एल. के निजीकरण अथवा उसे बंद करने का है? मैंने 10 कारण (और भी हैं) दिए हैं कि क्यों सरकार को इस मामले में जांच के आदेश देने चाहिएं। अब इस बारे में भोली रक्षा मंत्री ही बताएंगी।-पी. चिदम्बरम

Pardeep

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