करनी ऐसी कर चलो, तुम हंसो जग रोए-अलविदा अटल जी

Monday, Aug 20, 2018 - 05:08 AM (IST)

अटल जी को जो पूरे देश और दुनिया का प्यार मिला, वह उनके पद के कारण नहीं है। मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति अपने पद, यश, ज्ञान या वैभव से बड़ा नहीं होता बल्कि उसके संस्कार उसे बड़ा और सम्माननीय बनाते हैं। अटल जी में ऐसे संस्कार थे। पत्रकारिता, साहित्य और राजनीति से जुड़े हर उस व्यक्ति के साथ अटल जी का आत्मीय संबंध होता था, जो उन्हें जानता था। 

मेरे परिवार का एक नाता और भी था। अटल जी की बेटी नमिता, जिसने उन्हें मुखाग्नि दी, वह हमेशा बड़े स्नेह से मुझे विनीत भैया कहती है। उसकी बेटी निहारिका, हमारे छोटे बेटे ईशित नारायण के साथ सरदार पटेल विद्यालय, दिल्ली में सहपाठी थी और अभिभावकों की बैठकों में हम अक्सर मिलते थे। अटल जी के दामाद रंजन भट्टाचार्य भी हमारे प्रिय रहे हैं क्योंकि इन तीनों से हमारा तीन दशकों का संबंध रहा है। 

अटल जी से जुड़े इतने संस्मरण हैं कि सबको याद करूं तो एक पुस्तक लिख जाएगी। 1989 में जब मैंने भारत की पहली हिंदी टी.वी. पत्रिका ‘कालचक्र’ जारी की तो पूरे मीडिया जगत में हलचल मच गई। सरकारी नियंत्रण वाले दूरदर्शन के मुकाबले स्वतंत्र टी.वी. समाचार के मेरे प्रयास से विपक्ष के नेता बहुत उत्साहित थे, जिनमें से रामविलास पासवान, अजीत सिंह, जार्ज फर्नांडीज और अटल बिहारी वाजपेयी ने हृदय से प्रयास किया कि मुझे आर्थिक मदद दिलवाई जाए, पर अपनी सम्पादकीय स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए मैंने उनके प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए। हालांकि उनका यह भाव बहुत अच्छा लगा। 

1995 में जिन दिनों हवाला कांड में राजनेताओं के घर सी.बी.आई. के छापे पडऩे शुरू हुए, उन्हीं दिनों एक दिन अखबार में खबर छपी कि अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी जैन डायरी में है। उस दिन वाजपेयी जी के कई फोन मुझे आए। मैं जब मिलने पहुंचा, तो कुछ चिंतित थे, बोले, ‘‘क्या तुम मेरे घर भी छापा डलवाओगे?’’ मैंने हंसकर पूछा, क्या आपने जैन बंधुओं से पैसे लिए थे, चिंता मत कीजिए, आपका नाम जैन डायरी में नहीं है। तब वह मुस्कुराए और गर्म-गर्म जलेबी और पकौड़ी के साथ नाश्ता करवाया। अटल जी अपने विरोधी विचारधारा के राजनेताओं और लोगों का पूरा सम्मान करते थे और उनके सुझावों को गंभीरता से लेते थे। विनम्रता इतनी कि हम जैसे युवा पत्रकारों को भी वह हमारी कार तक छोडऩे के लिए चलकर आते थे। जो राजनीतिक कार्यकत्र्ता आज अटल जी के गुणगान में एक-दूसरे को पीछे छोडऩे में जुटे हैं, क्या वे अटल जी के व्यक्तित्व से अपने विरोधियों का भी सम्मान करना और सबके प्रति सद्भाव रखने का गुण सीखेंगे या आत्मश्लाघा और अहंकार में डूबे रहकर लोकतंत्र को रसातल में ले जाएंगे? 

अटल जी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए, देश के लिए कई बड़े काम किए। उनका चलाया सर्वशिक्षा अभियान एक ऐसी ही पहल थी, जिसे 2001 में लांच किया गया था। इस योजना में 6 से 14 वर्ष उम्र के बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था। इस योजना की बदौलत 4 साल में ही स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आई। आज भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश के करोड़ों बच्चों को मुफ्त में प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनकी ऐसी ही दूसरी पहल थी। इस योजना में देश के दूर-दराज के गांवों को सड़कों से जोडऩे का काम किया गया। इसके अलावा अटल जी द्वारा शुरू की गई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुम्बई को हाइवेज के नैटवर्क से जोडऩे में मदद की। संचार क्रांति के क्षेत्र में भी उन्होंने क्रांति की। वही टैलीकॉम फम्र्स के लिए फिक्स्ड लाइसैंस फीस को हटा कर रेवेन्यू-शेयरिंग की व्यवस्था लाए थे जिसके बाद भारत संचार निगम लिमिटेड (बी.एस.एन.एल.) का गठन किया गया था। 

अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार का दखल कम करने के लिए निजीकरण को अहमियत दी, जिसके बाद सरकार ने एक अलग विनिवेश मंत्रालय का गठन किया था। इसी के तहत भारत एल्युमीनियम कम्पनी (बाल्को), हिंदुस्तान जिंक, इंडिया पैट्रोकैमिकल्स कार्पोरेशन लिमिटेड और वी.एस.एन.एल. का विनिवेश किया गया था। वाजपेयी सरकार वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम भी लेकर आई थी। इस अधिनियम में देश का राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा गया था। इस कदम के जरिए ही पब्लिक सैक्टर में सेविंग्स को बढ़ावा दिया गया। 

कविता और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। कहते हैं कि ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान’। कवि भावुक हृदय होता है। ऐसे अच्छे इंसान को भी डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने धोखा दिया, जब भाजपा सरकार को उन्होंने गिरवा दिया, जिससे वाजपेयी जी को बहुत धक्का लगा। अपनी लिखी पुस्तक में डा. स्वामी ने वाजपेयी जी को खूब गरियाया है। दुश्मन की भी मौत पर संवेदना प्रकट करने वाली हिंदू संस्कृति के रक्षक होने का दावा करने वाले डा. स्वामी के मुंह से अटल जी के निधन पर श्रद्धांजलि का एक भी शब्द नहीं निकला। ऐसे व्यक्ति को भाजपा क्यों ढो रही है? अगले चुनावों में जब वाजपेयी जी भाजपा का ब्रांड बनकर मतदाता को दिखाए जाएंगे, तब मतदाता और विपक्षी दल यह सवाल करेंगे कि अगर वाजपेयी जी को भाजपा और संघ इतना मान देता है तो उन्हें धोखा देने वाले और उनसे घृणा करने वाले डा. स्वामी को अपने साथ कैसे खड़ा रख सकता है?-विनीत नारायण
 

Pardeep

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