मुफ्त में ‘सच्ची शिक्षा’ बांटिए

Tuesday, Jan 25, 2022 - 07:15 AM (IST)

चुनाव के इस माहौल में मुफ्त बांटने के वायदे करने की होड़ मची हुई है। कोई साड़ी बांटता है, कोई साइकिल, कोई लैपटॉप और कोई मुफ्त में बस यात्रा। यहां तक कि कहीं तो शराब भी मुफ्त बांटने की बात की जा रही है। शराब छोड़ कर इस मुफ्त बांटने का मैं स्वागत करता हूं, क्योंकि कम से कम जनता को 5 साल में एक बार ही सही, कुछ तो हासिल हो। सरकार ने नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसी नीतियां लागू कर जनता के रोजगार-धंधे पस्त कर दिए हैं, इसलिए मुफ्त में जो मिल जाए उसी का स्वागत है। 

लेकिन विचारणीय यह है कि मुफ्त क्या बांटा जाए? मेरा सुझाव है कि सच्ची अंग्रेजी शिक्षा को ही मुफ्त बांट दीजिए तो जनता भी सुखी हो जाएगी और पार्टी को संभवत: जीत भी हासिल हो जाए। कहावत है कि किसी व्यक्ति को मछली देने के स्थान पर मछली पकडऩा सिखाना ज्यादा उत्तम है, क्योंकि यदि वह मछली पकडऩा सीख लेगा तो आजीवन अपनी आय अर्जित कर सकता है। इसी प्रकार यदि हम युवाओं को मु त साइकिल और लैपटॉप वितरित करने के स्थान पर यदि मुफ्त अंग्रेजी शिक्षा वितरित कर दें तो साइकिल और लैपटॉप वे स्वयं खरीद लेंगे और आजीवन अपनी जीविका भी चला सकेंगे। 

जनता में अंग्रेजी शिक्षा की गहरी मांग है। शहरों में घरों में काम करने वाली सहायिकाओं द्वारा भी अपने बच्चों को 1,500 से 2,000 रुपए प्रतिमाह की फीस देकर अच्छी अंग्रेजी के लिए प्राइवेट स्कूल में भेजने का प्रयास किया जाता है। वे अपनी आय का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बच्चों की फीस देने में व्यय कर देती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि शिक्षा की मांग है लेकिन अच्छी शिक्षा खरीदने की उनकी क्षमता नहीं है। 

दिल्ली की ‘आप’ सरकार ने सरकारी शिक्षा में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं लेकिन इसके बावजूद सरकारी विद्यालयों के हाई स्कूल में 72 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए जबकि प्राइवेट स्कूलों में 93 प्रतिशत। अन्य राज्यों में सरकारी विद्यालयों की स्थिति बहुत अधिक दूरूह है, जबकि इन पर सरकार द्वारा भारी खर्च किया जा रहा है। इस विषय पर उत्तर प्रदेश का उदाहरण आपके सामने रखना चाहूंगा। वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में प्रति छात्र 25,000 रुपए प्रतिवर्ष खर्च किए जा रहे थे। 

वर्तमान वर्ष 2021-22 में यह रकम लगभग 30,000 रुपए हो गई होगी। इसमें भी सरकारी विद्यालयों में तमाम दाखिले फर्जी किए जा रहे हैं। बिहार के एक अध्ययन में 9 जिलों में 4.3 लाख फर्जी विद्यार्थी सरकारी विद्यालयों में पाए गए। ये फर्जी दाखिले दिखा कर स्कूल के कर्मचारी मध्यान्ह भोजन और यूनिफॉर्म इत्यादि की रकम को हड़प जाते हैं। किसी अन्य आकलन के अभाव में हम मान सकते हैं कि 20 प्रतिशत विद्यार्थी फर्जी दाखिले के माध्यम से दिखाए जाते होंगे। इन्हें काट दें तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रति सच्चे विद्यार्थी पर 37,000 रुपए प्रति वर्ष खर्च किया जा रहा है। 

नैशनल सैंपल सर्वे के अनुसार लगभग 60 प्रतिशत बच्चे वर्तमान में सरकारी विद्यालयों में जा रहे हैं। अत: यदि इस 37,000 रुपए प्रति सच्चे छात्र की रकम को प्रदेश के सभी छात्रों, यानी सरकारी एवं प्राइवेट स्कूल दोनों में पढऩे वाले छात्रों में वितरित किया जाए तो प्रत्येक छात्र पर उत्तर प्रदेश सरकार लगभग 20,000 रुपए प्रति वर्ष खर्च कर रही है। 

सुझाव है कि चुनाव के इस समय पार्टियां वायदा कर सकती हैं कि इस 20,000 रुपए की रकम में से 12,000 रुपए प्रदेश के सभी छात्रों को मुफ्त वाऊचर के रूप में दे दिए जाएंगे। इस वाऊचर के माध्यम से वे अपने मनचाहे विद्यालय में फीस अदा कर सकेंगे। जैसे वर्तमान में तमाम विश्वविद्यालयों में सैल्फ फाइनांसिंग कोर्स चलाए जा रहे हैं। इन कोर्सों में छात्रों द्वारा भारी फीस दी जाती है, जिससे पढ़ाने वाले अध्यापकों के वेतन का पेमैंट किया जाता है। इसी तर्ज पर सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक छात्रों को आकर्षित कर उनके वाऊचर हासिल कर अपने वेतन की भरपाई कर सकते हैं। 

ऐसा करने से सरकारी तथा निजी दोनों प्रकार के विद्यालयों को लाभ होगा। सरकारी विद्यालयों के लिए अनिवार्य हो जाएगा कि वे अपनी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएं,ताकि वे पर्याप्त संख्या में छात्रों को आकर्षित कर सकें, उनके वाऊचर हासिल कर सकें और अपने वेतन में हुई कटौती की भरपाई कर सकें। 

प्राइवेट विद्यालयों के लिए भी यह लाभप्रद हो जाएगा क्योंकि उनमें दाखिला लेने वाले छात्र 1,000 रुपए प्रति माह की फीस इन वाऊचरों के माध्यम से दे सकते हैं और शेष फीस वे अपनी आय से दे सकते हैं। जो सहायिका अपने 6,000 रुपए के मासिक वेतन में से वर्तमान में 1,500 रुपए अंग्रेजी स्कूल में बच्चे की फीस अदा करने के लिए खर्च कर रही है, उसे अपनी कमाई में से केवल 500 रुपए ही देने होंगे। जिस प्राइवेट विद्यालय द्वारा आज 600 रुपए प्रति माह फीस के रूप में लिए जा रहे हैं, उसे वाऊचर के माध्यम से 1,000 रुपए मिल जाएंगे और कुल 1,600 रुपए की रकम से वे अच्छे अध्यापक की नियुक्ति कर सकेंगे। प्राइवेट विद्यालयों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। 

हमें समझना चाहिए कि वर्तमान समय में रोबोट और बड़ी कंपनियों द्वारा सस्ते माल का उत्पादन किए जाने से आम आदमी के रोजगार का भारी हनन हो रहा है और इसके सतत् जारी रहने का अनुमान है। इसलिए आम आदमी की जीविका को आगे आने वाले समय में बनाए रखने के लिए जरूरी है कि वह अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करे, जिससे इंटरनैट आदि के माध्यम से वह सॉ टवेयर, संगीत, अनुवाद इत्यादि सेवाओं की बिक्री कर सके और अपनी जीविका चला सके।-भरत झुनझुनवाला


 

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