कोरोना से फिर बढ़ी मध्यम वर्ग की मुश्किलें

Saturday, Apr 10, 2021 - 04:18 AM (IST)

यकीनन देश का मध्यम वर्ग एक बार फिर से कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण अपने उद्योग-कारोबार, रोजगार और आमदनी संबंधी चिंताओं से ग्रसित है। कोरोना की पहली लहर बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग की आमदनी घटा चुकी है और मध्यम वर्ग के बैंकों में बचत खातों को बहुत कुछ खाली कर चुकी है। देश में निजी और विभिन्न सरकारी सेवाओं में काम करने वाले लाखों मध्यम वर्गीय लोग कोरोना की दूसरी लहर के बाद निजी क्षेत्र के महंगे स्वास्थ्य संबंधी खर्च की वजह से गरीब वर्ग में शामिल होने से सिर्फ एक कदम दूर हैं। 

गौरतलब है कि देश का सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एम.एस.एम.ई.) फिर हिचकोले खा रहा है। एक बार फिर से जहां देश के कई राज्यों में लॉकडाऊन और नाइट कफ्र्यू का परिदृश्य निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है, लॉकडाऊन के कारण कहीं बड़े शहरों से एक बार फिर प्रवासी मजदूरों का पलायन दिखाई दे रहा हैं। 

उल्लेखनीय है कि अमरीका के प्यू रिसर्च सैंटर के द्वारा प्रकाशित भारत के मध्यम वर्ग की संख्या में कमी आने से संबंधित रिपोर्ट 2020 के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण आए आर्थिक संकट से एक साल के दौरान भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या करीब 9.9 करोड़ से घटकर करीब 6.6 करोड़ रह गई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 10 डॉलर से 20 डॉलर (यानी करीब 700 रुपए से 1500 रुपए प्रतिदिन) के बीच कमाने वाले को मध्यम वर्ग में शामिल किया गया है। जहां कोविड-19 के कारण देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम हुई है, वहीं भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। 

चाहे सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्यम वर्ग के द्वारा हाऊसिंग लोन, ऑटो लोन, कंज्यूमर लोन लिए गए हैं, लेकिन इस समय मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों के चेहरे पर महंगाई, बच्चों की शिक्षा, रोजगार, कर्ज पर बढ़ता ब्याज जैसी कई चिंताएं साफ दिखाई दे रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है और मध्यम वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं। नि:संदेह एक अप्रैल 2021 से लागू हुए वर्ष 2021-22 के बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना के कारण पैदा हुए आॢथक हालात का मुकाबला करने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मध्यम वर्ग को कोई विशेष राहत नहीं मिली है। 

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले एक वर्ष में देश में मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी बचत योजनाओं और बैंकों में स्थाई जमा (एफ.डी.) पर ब्याज दर घटने संबंधी भी रही है। यद्यपि सरकार ने एक अप्रैल 2021 से कई बचत स्कीमों पर ब्याज दर और घटा दी थी, लेकिन फिर शीघ्र ही कुछ ही घंटों में यू-टर्न लेते हुए यह निर्णय वापस ले लिया।

सरकार के द्वारा यह कहा गया था कि बचत स्कीमों पर बैंक अब चार के बजाय 3.5 फीसदी सालाना ब्याज देंगे। सीनियर सिटीजन के लिए बचत स्कीमों पर देय ब्याज 7.4 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है। नैशनल सेविंग सर्टीफिकेट पर देय ब्याज 6.8 फीसदी से घटाकर 5.9 फीसदी तथा पब्लिक प्रॉविडैंट फंड स्कीम पर देय ब्याज 7.1 फीसदी से घटाकर 6.4 फीसदी कर दिया गया है। वास्तव में सरकार के द्वारा इस निर्णय पर यू-टर्न से देश के मध्यम वर्ग के बचत से भविष्य की जीवन संबंधी योजनाओं पर निर्भर करोड़ों मध्यम वर्गीय लोगों को राहत मिली है। 

अब एम.एस.एम.ई. के तहत कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए 45 वर्ष से कम उम्र के उन लोगों का टीकाकरण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जो संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं। उन लोगों की रक्षा करना भी महत्वपूर्ण है जिन्हें काम के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ता है। ऐसे में खुदरा और ट्रेड जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों की कोरोना वायरस से सुरक्षा जरूरी है। हम उम्मीद करें कि मध्यम वर्ग भी कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए दवाई भी और कड़ाई भी के मंत्र का परिपालन करेगा। हम उम्मीद करें कि इस समय स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो सार्वजनिक व्यय जी.डी.पी. का करीब 1 फीसदी है उसे बढ़ाकर करीब अढ़ाई फीसदी तक किया जाए। इससे मध्यम वर्ग को स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में बचत की बड़ी राहत मिलेगी।-डा. जयंतीलाल भंडारी  
 

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