लद्दाख और श्रीनगर घाटी में अंतर

punjabkesari.in Monday, Oct 08, 2018 - 04:27 AM (IST)

भारत का मुकुटमणि राज्य 3 हिस्सों में बंटा है- लेह लद्दाख, श्रीनगर की घाटी व आसपास का क्षेत्र और जम्मू। तीनों की संस्कृति और लोक-व्यवहार में भारी अंतर है जबकि तीनों क्षेत्रों में एक-सा ही नागरिक प्रशासन और सेना की मौजूदगी है। तीनों ही क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का विकास, आपातकालीन स्थितियों से निपटना और दुर्गम पहाड़़ों के बीच क्षेत्र की सुरक्षा और नागरिक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना, इन सब चुनौती भरे कार्यों में सेना की भूमिका रहती है। 

जहां एक ओर कश्मीर की घाटी के लोग भारतीय सेना के साथ बहुत रूखा और आक्रामक रवैया अपनाते हैं, वहीं दूसरी ओर जम्मू में सेना और नागरिक आपसी सद्भाव के साथ रहते हैं लेकिन सबसे बढिय़ा सेना की स्थिति लेह लद्दाख क्षेत्र में ही है, जहां के लोग सेना का आभार मानते हैं कि उसके आने से सड़कों व पुलों का जाल बिछ गया और अनेक सुविधाओं का विस्तार हुआ। लेह लद्दाख की 80 फीसदी आबादी बौद्ध लोगों की है, शेष मुसलमान, थोड़े से ईसाई और ङ्क्षहदू हैं। मूलत: लेह लद्दाख का इलाका शांतिप्रिय रहा है। किंतु समय-समय पर पश्चिम से मुसलमान आक्रांताओं ने यहां की शांति भंग की है और अपने अधिकार जमाए हैं। 

लेह लद्दाख के लोग भारतीय सेना से बेहद प्रेम करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। उसका कारण यह है कि दुनिया के सबसे ऊंचे पठार और रेगिस्तान से भरा यह क्षेत्र इतना दुर्गम है कि यहां कुछ भी विकास करना ‘लोहे के चने चबाने’ जैसा है। ऊंचे-ऊंचे पर्वत जिन पर हरियाली के  नाम पर पेड़ तो क्या घास भी नहीं उगती, सूखे और खतरनाक हैं। इन पर जाड़ों में जमने वाली बर्फ  कभी भी कहर बरपा सकती है, जोकि बड़े हिमखंडों के सरकने से और पहाड़ टूटकर गिरने से यातायात के लिए खतरा बन जाते हैं। तेज हवाओं के चलने के कारण यहां हैलीकॉप्टर भी हमेशा बहुत सफल नहीं रहता। 

ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की शृंखला एक तरफ प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करती है, वहीं दूसरी तरफ आम पर्यटक को रोमांचित भी करती है। लद्दाख के लोग बहुत सरल स्वभाव के हैं, संतोषी हैं और कर्मठ भी। फिर भी यहां ज्यादा आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। कारण यह है कि उन दुर्गम परिस्थितियों में उद्योग-व्यापार करना बहुत खर्चीला और जोखिम भरा होता है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर राज्य में बाहरी प्रांत के लोगों को जमीन-जायदाद खरीदने की अनुमति नहीं है। लोग सामान्यत: अपने काम से काम रखते हैं, पर उन्हें एक शिकायत हम मैदान वालों से है। 

आजकल भारी मात्रा में पर्यटक उत्तर भारत से लेह लद्दाख जा रहे हैं। इनमें काफी बड़ी तादाद ऐसे उत्साही लोगों की है, जो ये पूरी यात्रा मोटरसाइकिल पर ही करते हैं। हम मैदान के लोग उस साफ-सुथरे राज्य में अपना कूड़ा-कर्कट फैंककर चले आते हैं और इस तरह उस इलाके के पर्यावरण को नष्ट करने का काम करते हैं। अगर यही हाल रहा, तो आने वाले वर्षों में लेह लद्दाख के सुंदर पर्यटक स्थल कचरे के ढेर में बदल जाएंगे। इसके लिए केन्द्र सरकार को अधिक सक्रिय होकर कुछ कदम उठाने चाहिएं, जिससे इस सुंदर क्षेत्र का नैसर्गिक सौंदर्य नष्ट न हो। 

लेह जाकर पता चला कि इस इलाके के पर्वतों में दुनियाभर की खनिज सम्पदा भरी पड़ी है, जिसका अभी तक कोई दोहन नहीं किया गया है। यहां मिलने वाले खनिज में ग्रेनाइट जैसे उपयोगी पत्थरों के अलावा भारी मात्रा में सोना, पन्ना, हीरा और यूरेनियम भरा पड़ा है। इसीलिए चीन हमेशा लेह लद्दाख पर अपनी गिद्ध दृष्टि बनाए रखता है। बताया गया कि जापान सरकार ने भारत सरकार को प्रस्ताव दिया था कि अगर उसे लेह लद्दाख में खनिज खोजने की अनुमति मिल जाए तो वह पूरे लेह लद्दाख का आधारभूत ढांचा अपने खर्च पर विकसित करने को तैयार है, पर भारत सरकार ने ऐसी अनुमति नहीं दी। भारत सरकार को ङ्क्षचता है कि लेह लद्दाख के खनिज पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले चीन से इस क्षेत्र की सीमाओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए क्योंकि आए दिन चीन की तरफ से घुसपैठिए इस क्षेत्र में घुसने की कोशिश करते रहते हैं, जिससे दोनों पक्षों के बीच झड़पें भी होती रहती हैं। 

जम्मू-कश्मीर की सरकार तमाम तरह के कर तो पर्यटकों से ले लेती है, पर उसकी तरफ  से पूरे लेह लद्दाख में पर्यटकों की सुविधा के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया जाता है। जबसे आमिर खान की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ की शूटिंग यहां हुई है, तबसे पर्यटकों के यहां आने की तादाद बहुत बढ़ गई है, पर उस हिसाब से आधारभूत ढांचे का विस्तार नहीं हुआ। एक चीज जो चौंकाने वाली है, वह यह कि पूरे लेह लद्दाख में पर्यटन की दृष्टि से हजारों गाडिय़ां और सामान ढोने वाले ट्रक रात-दिन दौड़ते हैं। इसके साथ ही होटल व्यवसाय द्वारा भारी मात्रा में जैनरेटरों का प्रयोग किया जाता है, पर पूरे इलाके में दूर-दूर तक कहीं भी कोई पैट्रोल-डीजल का स्टेशन दिखाई नहीं देता। 

स्थानीय लोगों ने बताया कि फौज के डिपो से करोड़ों रुपए का पैट्रोल और डीजल चोरी होकर खुलेआम कालाबाजार में बिकता है। क्या रक्षामंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण इस पर ध्यान देंगी? लेह लद्दाख का युवा अब जागने लगा है और अपने हक की मांग कर रहा है, पर अभी हमारा ध्यान उधर नहीं है। अगर भारत सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया, तो कश्मीर का आतंकवाद लेह लद्दाख को भी अपनी चपेट में ले सकता है।-विनीत नारायण     
    


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