प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भारत व अमरीका की प्रतिक्रिया में जमीन-आसमान का फर्क

Wednesday, Sep 06, 2017 - 03:37 AM (IST)

गत सप्ताह अमरीका के टैक्सास प्रांत में ‘हार्वे’ समुद्री तूफान ने 50 इंच बारिश होने और अचानक आई बाढ़ों के कारण दुनिया का ध्यान आकॢषत किया। बताया गया कि उस इलाके में 500 वर्ष बाद इस तरह की तबाही हुई है। इस तूफान के कारण जहां 10 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए, वहीं 50 लोगों के बाढ़ में मारे जाने का खदशा है। 

पूरा राज्य इस तूफान के कारण लकवाग्रस्त हो गया था। इसी दौरान दुनिया के बिल्कुल दूसरे छोर पर भारत में भी बाढ़ का ऐसा ही कोप देखने को मिल रहा है लेकिन इन कुदरती आपदाओं के प्रति भारत और अमरीका की प्रतिक्रिया में जमीन-आसमान का फर्क है। जिस प्रकार अमरीकी प्रशासन ने इस आपदा की स्थिति से निपटने में तत्परता दिखाई उसकी झलक मैंने हाल ही की अपनी टैक्सास यात्रा दौरान खुद अपनी आंखों से देखी। ‘हार्वे’ के प्रति सरकारी प्रतिक्रिया पूरी तरह सक्षम होने का आभास देती थी। उदाहरण के तौर पर अमरीका की संघीय आपदा प्रबंधन एजैंसी (एफ.ई.एम.ए.) समुद्री तूफान के सागर तट पर पहुंचने से 2 दिन पूर्व ही अपने मोर्चे संभाल चुकी थी। 

टैक्सास के गवर्नर ग्रैग एबट ने प्रदेश की सम्पूर्ण नैशनल गार्ड को तैनात कर दिया था, जबकि प्रदेश की राजधानी ह्यूस्टन के मेयर सिलवैस्टर टर्नर ने तेजी से पुलिस और अग्निशमक दलों को सक्रिय किया और नागरिकों को स्पष्ट निर्देश जारी कर दिए। अमरीकी प्रशासन ने फटाफट हैलीकॉप्टरों की सेवाएं लीं और फंसे हुए लोगों को निकाला। टैक्सास के अधिकारियों की सहायता करने के लिए नैशनल गार्ड तथा सेना के लगभग 30,000 जवान तैयार-बर-तैयार थे। ‘हार्वे’ की विनाशलीला शुरू होने से तत्काल पहले प्रदेश के गवर्नर ने स्थिति बहाली की दीर्घकालिक योजनाओं के लिए सहायता की अपील जारी की। टैक्सास नैशनल गार्ड के नागरिक सैनिकों को भी सहायता के लिए बुलाया गया।  तूफान आने के 2 दिन बाद ह्यूस्टन शहर के मेयर सिलवैस्टर टर्नर ने सी.एन.एन. टी.वी. को बताया : ‘‘हमें तत्काल केवल मलबा हटाने के लिए 75 से 100 मिलियन डालर तक सहायता की जरूरत है।’’ 

स्थानीय प्रशासन, प्रदेश सरकार तथा अमरीका की संघीय सरकार की प्रतिक्रिया तो पूरी तरह मुस्तैदी भरी थी लेकिन इससे भी अधिक उल्लेखनीय प्रयास था टैक्सास के उन हजारों नागरिकों का जो अपने साथियों की सहायता करने स्वेच्छा से आगे आए थे। पुराने लोगों का कहना है कि लूसियाना प्रांत में 2005 में आए समुद्री तूफान कैटरीना की तुलना में अब की बार सरकार और जनता की प्रतिक्रिया बहुत बेहतर थी। टैक्सास में भारतीयों की 3.5 लाख आबादी है जिसमें से 1.5 लाख केवल ह्यूस्टन शहर में ही रहते हैं। बेशक भारतीय वाणिज्य दूतावास का कार्यालय बंद था तो भी रात-दिन काम और प्रभावित लोगों तक पहुंचने का प्रयास करता रहा। 

बेशक सभी सड़कों पर बाढ़ का पानी दौड़ रहा था और आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया था तो भी महा वाणिज्य दूत अनुपम रे स्वयं विश्वविद्यालय परिसर में गए जहां 250 से अधिक विद्यार्थी फंसे हुए थे। इन विद्यार्थियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए रे ने मुझे बताया कि बाढ़ में से बचाए जाने के अगले ही दिन यही भारतीय विद्यार्थी शहर में बनाए गए अनेक आश्रालयों में वालंटियर के तौर पर सेवाएं दे रहे थे। इसके अलावा भारतीय अमरीकी समुदाय ने भी बहुत भारी पैमाने पर सहायता की। वर्तमान में अमरीकी प्रशासन विनाशलीला के दुष्प्रभावों का सामना करने के लिए तैयारी कर रहा है। जल प्रदूषण, बिजली व्यवस्था में आई खराबियों, आर्थिक व्यवधानों और सामान्य प्रदूषण के कारण जन स्वास्थ्य को दीर्घकालिक चुनौतियां दरपेश आना स्वाभाविक है। 

सबसे अधिक बुरी तरह प्रभावित समूहों में से कुछ लोग न्यूनतम आय की श्रेणी में आते हैं। उल्लेखनीय है कि टैक्सास में लातिनी अमरीकी मूल के लोगों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या रहती है जोकि 98 लाख है। इसके अलावा ऐसे आप्रवासियों की भी कमी नहीं जो वापस भेजे जाने के डर से चोरी-छिपे काम करते हैं और उनका दस्तावेजी प्रमाण मौजूद नहीं हैं। जहां तक राष्ट्रपति ट्रम्प का संबंध है यह उनके कार्यकाल की प्रथम विराट आपदा थी और इसी में उनके नेतृत्व की प्रतिक्रिया का उल्लेखनीय परीक्षण होना था। गत सप्ताह दौरान उन्होंने टैक्सास का 2 बार दौरा किया और खुलेआम यह प्रदर्शित करने की कोशिश की कि वह लोगों की नजरों में इस प्राकृतिक आपदा के विरुद्ध सफलता से लडऩे वाले व्यक्ति की छवि बनाना चाहते हैं। 

टैक्सास के गवर्नर ग्रैग एबेट ने राहत कार्यों के लिए 125 अरब डालर से अधिक राशि की मांग की है। ट्रम्प प्रशासन ने प्रारम्भिक राहत कार्यों के लिए वित्त मंत्रालय से 7.85 बिलियन डालर की मांग की है। इसके विपरीत गत सप्ताह मुम्बई में बरसात की विनाशलीला के प्रति हमारी प्रतिक्रिया से यह सिद्ध हो गया कि 2005 में पूरे शहर में बाढ़ का कोप फैलने के बावजूद स्थिति में कोई फर्क नहीं आया है। बेशक मौसम विभाग ने पहले ही मुम्बई में भारी बरसात की चेतावनी जारी कर दी थी तो भी नगर प्रशासन ने प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं की। यहां तक कि इस स्थिति से निपटने के लिए पहले से कोई योजना तक नहीं बनाई गई। लोगों को आवाजाही की अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध करवाने या उन्हें चौकस करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। 

मुम्बई से संबंधित दोस्तों से मुझे पता चला कि ब्रैड, दूध और अंडों जैसी जरूरी वस्तुओं की मांग पूरी नहीं की गई। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि प्रशासन ने आपदा से निपटने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जिसके चलते मुम्बई पहले की तरह ही भारी बरसात के खतरों से जूझता आ रहा है, हालांकि जोखिम को कम करने के लिए सुपरिभाषित समाधान चिन्हित किए गए हैं। शहर की ड्रेनेज व्यवस्था 100 वर्ष से भी पुरानी है और हर वर्ष होने वाले भारी मानसून का बोझ बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रखते। 2005 की जल प्रलय ने 400 से भी अधिक लोगों की जान ली थी और इमारतों सहित आधारभूत ढांचे को भारी नुक्सान पहुंचाया था। तब एक विशेषज्ञ समिति ने ड्रेनेज प्रणाली के मुकम्मल ओवरहाल की सिफारिश की थी लेकिन इस दिशा में कोई अधिक काम नहीं किया गया। 

आंकड़ों के अनुसार भारत का 68 प्रतिशत क्षेत्र सूखे, 60 प्रतिशत क्षेत्र भूकम्पों, 12 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ और 8 प्रतिशत समुद्री तूफानों के खतरे में रहता है जिसके चलते भारत दुनिया के सबसे अधिक आपदा प्रभावित देशों में से एक है। ऐसे में प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध अपने रक्षा तंत्र को मजबूत करने की प्रत्येक जरूरत है।    

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