शानन जल विद्युत परियोजना, हिमाचल की धरती व पानी के बावजूद राज्य के लिए हुई पराया धन

punjabkesari.in Tuesday, Oct 15, 2019 - 01:18 AM (IST)

हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के जोगिन्द्रनगर उपमंडल में शानन जल विद्युत परियोजना पंजाब विद्युत बोर्ड के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो रही है। इसकी रोजाना आमदन 80 लाख रुपए से अधिक है, जबकि वार्षिक खर्चा केवल 40 लाख रुपए है। यह पावर हाऊस इन दिनों पंजाब विद्युत बोर्ड के आधिपत्य में संचालित है। इसको लेकर मार्च 1925 में तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्र सेन तथा सैक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके अनुसार आगामी 2025 तक यथास्थिति रहनी है और तदोपरांत इस परियोजना का हस्तांतरण हिमाचल सरकार को होना तय है। 

शुरूआत में इस विद्युत परियोजना पर 2,53,43,709 रुपए का खर्चा हुआ था। शानन पावर हाऊस के 1932 में तैयार हो जाने के बाद 10 मार्च 1933 को इसका उद्घाटन लाहौर में हुआ था। ऊहल नदी प्रौजेक्ट स्कीम में बनाए गए इस पावर हाऊस का सपना उस समय के पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बैटी ने संजोया था, जो उद्घाटन समारोह में शामिल होने जोगिन्द्रनगर आते हुए धारीवाल के पास एक दुर्घटना में मारे गए। वायसराय ने शालीमार रिसीविंग स्टेशन लाहौर से स्विच दबाकर इसके उद्घाटन की रस्म पूरी की थी। 

कर्नल बैटी ने न केवल शानन पावर प्रोजैक्ट बनाया, बल्कि उसके आगे की विस्तार की योजना की रूपरेखा भी उसी समय तय कर दी थी। इसी के साथ बस्सी व चूल्हा परियोजनाओं को भी ऊहल के पानी से चलाने की रूपरेखा प्रारंभिक स्तर पर सरकार को सौगात में दी थी। बस्सी विद्युत योजना आजकल हिमाचल सरकार द्वारा संचालित है और बड़ी आय का साधन है। 

पंजाब बिजली बोर्ड की मलकीयत
आज शानन जल विद्युत परियोजना, जो पंजाब राज्य बिजली बोर्ड की मलकीयत है, हिमाचल की धरती पर हिमाचल के पानी से हिमाचल के लिए ही पराया धन हो गई है। जहां इस शस्य श्यामला धरती पर यह परियोजना पर्यटन और चिताकर्षक स्वर्ग स्थान है, वहीं इस स्थान पर तैनाती को पंजाब का स्टाफ काला पानी की सजा भी मानता है। ऊहल नदी का उद्गम स्थान बरोट सैरगाह के रूप में बहुत लोकप्रिय है। बरोट का जालान रैस्ट हाऊस अपनी खूबसूरती और उल्लास के लिए विख्यात है। जो भी वहां ठहरता है, इस पर फिदा हो जाता है। बरोट तक आने-जाने का सम्पर्क सूत्र रोप-वे ट्राली एक नई तकनीक तहत दुनिया का एक अचम्भा है।

अब शानन परियोजना हिमाचल को हस्तांतरित करने में बहुत कम समय रह गया है। 1981 में इसे हस्तांतरित करने का भारत सरकार ने निर्देश दिया था, पर तब इसे टाल दिया गया था। परियोजना के हालात दयनीय हैं। मुरम्मत, रख-रखाव फटेहाल है। विकास योजनाओं की चाल धीमी व भ्रम पैदा करने वाली है। कमाई एक करोड़ प्रतिदिन, ट्राली लाइन बंद, मशीनें खराब, ट्राली मुरम्मत का काम कछुआ चाल से। 1925 में लाहौर में हस्ताक्षरित शर्तों का खुला उल्लघंन हो रहा है। न जाने हिमाचल सरकार इस पर मौन क्यों धारण किए है। शानन के हरनाला काम्पलैक्स में बड़ी कोठियां गिरने के कगार पर हैं। सिंहपुरा कालोनी भी खंडहर बन चुकी है। जहां पंजाब विद्युत बोर्ड का नकारात्मक रवैया स्थानीय पर्वों, त्यौहारों, सांंस्कृतिक जन-जीवन  में सहयोग न करने का है, वहीं इस परियोजना के तहत सभी व्यवस्थाओं के चरमराई हालत में हिमाचल को सौंपने की परिस्थितियां चिंताजनक हैं। 

पंजाब सरकार का ध्यान इस परियोजना के माध्यम से बिजली उत्पादन व कमाई से तो है, पर शानन परियोजना परिसर, जोगिन्द्रनगर, शानन व बरोट की भारी अनदेखी के साथ-साथ यहां नए कर्मचारियों की तैनाती, पुराने भवनों की अनदेखी, स्कूल, स्वास्थ्य केन्द्र बंद कर यहां के भवनों को किराएदारों को देना कहां तक न्यायोचित है। ट्राली लाइन का कुछ भाग उखाड़ देना क्या शानन की अनदेखी नहीं है? जोगिन्द्रनगर स्थित वैटरन पत्रकार रमेश बंटा तथा इस क्षेत्र से पूर्व मंत्री व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे ठाकुर गुलाब सिंह सहित सभी जनप्रतिनिधियों ने समय-समय पर इन सब मुद्दों को प्रभावी स्तर से उठाया है। क्या हिमाचल सरकार भी सजग रह इस दिशा में कुछ करेगी?-कंवर हरि सिंह 


 


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