जटिल होने के बावजूद उत्पादकता बढ़ाने वाला है ‘जी.एस.टी.’

Thursday, Jun 07, 2018 - 04:24 AM (IST)

प्रत्यक्ष टैक्स प्रणाली के व्यापक और आधारभूत सुधारों के लिए सरकार ने जो वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू किया था उसे जल्दी ही एक वर्ष हो जाएगा।आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक कारणों के चलते यह समाचार पत्र इस नए टैक्स की जोरदार वकालत करता रहा है। फिर भी यह अंतिम रूप में स्वीकार किए गए इसके जटिल टैक्स ढांचे का आलोचक रहा है।

हम अपने स्तम्भों में अक्तूबर 2016 में चेतावनी दे चुके हैं कि भारत एक ऐसे जी.एस.टी. की ओर बढ़ रहा है जो अफरातफरी से भर होगा और फलस्वरूप इसके आर्थिक लाभ सीमित होकर रह जाएंगे। जी.एस.टी. की टैक्स दरों को अंतिम रूप दिए जाने के बाद जून 2017 में एक अन्य सम्पादकीय में यह इंगित किया गया था कि आर्थिक विवेकशीलता पर राजनीतिक दिखावेबाजी हावी हो गई है। 

इसमें कोई संदेह नहीं कि दुनिया के सबसे बोझिल और जटिल प्रणालियों में से एक है भारत का जी.एस.टी.। विश्व बैंक ने मार्च में भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में प्रकाशित रिपोर्ट में कुछ लाभदायक तुलनाएं की हैं। भारत में शून्य से ऊपर जी.एस.टी. की चार दरें हैं-5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 26 प्रतिशत। दुनिया में केवल 4 ही अन्य देश ऐसे हैं जहां इस तरह का जटिल टैक्स ढांचा मौजूद है। ये देश हैं इटली, लक्समबर्ग, पाकिस्तान और घाना। इनमें से एक भी देश आर्थिक गुणों और नेकियों का पुतला नहीं है। दूसरी ओर लेखाकार फर्म एन्स्र्ट एंड यंग द्वारा प्रयुक्त एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 115 देशों में से 49 में केवल एक ही जी.एस.टी. दर है जबकि 28 अन्य देशों में 2 दरें हैं। इसके अलावा भारत में जी.एस.टी. दरें दुनिया में दूसरी सबसे उच्चतम दरें हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक ‘फाइनांस एंड डिवैल्पमैंट’ का जो अंक कुछ ही दिन पूर्व जारी किया गया था उसमें मुख्य आॢथक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यण ने कहा है कि जी.एस.टी. परिषद टैक्स ढांचे की जटिलता के तथ्य के प्रति परेशानी की हद तक सचेत है क्योंकि इसके संभावी आर्थिक लाभ कम हो  गए  हैं। जी.एस.टी. परिषद ने गत एक वर्ष दौरान प्रारंभिक ढांचे को विवेकपूर्ण बनाने का प्रयास किया था लेकिन इसे जोर-शोर से आगे नहीं बढ़ाया था। हमारा मानना है कि भारत को सर्वप्रथम तीन दरों वाले टैक्स ढांचे की दिशा में बढऩा चाहिए जिसमें से पहली दर विलासिता की वस्तुओं की बहुत छोटी संख्या के लिए हो और 12 प्रतिशत की एक मध्यम दर हो तथा जैसे ही मासिक और अधिक व्यापक टैक्स वसूली पर ज्यादा स्पष्टता बन जाए तो जी.एस.टी. की न्यून यानी कि तीसरी दर की ओर बढऩा संभव होगा। 

अंतिम दर के परिप्रेक्ष्य में सुब्रह्मण्यण ने यह भी कहा है कि वर्तमान जी.एस.टी. प्रणाली के एक अन्य नुक्स को भी शीघ्रातिशीघ्र दूर करना होगा : ‘‘मुझे बहुत आशा है कि बिजली, रियल एस्टेट को निश्चय ही किसी न किसी पड़ाव पर जी.एस.टी. के दायरे में लाया जाएगा लेकिन इससे पहले हम इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि पूरी जी.एस.टी. प्रणाली एक बार ठोस स्वरूप ग्रहण कर ले। हम इस बारे में बहुत अधिक सुनिश्चित नहीं हैं कि राजस्व में उछाल किस ढंग से आएगा लेकिन एक बात तय है कि एक बार जी.एस.टी. स्थायित्व ग्रहण कर लेता है तो सभी क्षेत्रों को इसके दायरे में लाया जा सकता है।’’ राजनीतिक जगत के कुछ कोनों से पहले ही यह स्वागतयोग्य मांग उठनी शुरू हो गई है कि पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. के अंतर्गत लाया जाए ताकि उपभोक्ता पर ऊंची कीमतों के दुष्प्रभाव में कमी आ सके।

नई टैक्स प्रणाली को अपने पैर जमाने में कुछ समय तो लगेगा ही। पहले दिन से ही यह सम्भावना थी कि नई व्यवस्था की ओर कायाकल्प आसान नहीं होगा। निर्यातकों को इनपुट क्रैडिट में विलंब होने जैसी समस्याएं अभी भी जारी हैं खासतौर पर ऐसे मौके पर जब ऊंची वैश्विक तेल कीमतों के कारण व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। मासिक टैक्स वसूलियां भी ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं दे रहीं कि कितनी राजस्व वसूली की उम्मीद की जा सकती है। आखिरकार तो इस नई प्रणाली के नट-बोल्ट कस ही लिए जाएंगे। वैसे ऐसे संकेत पहले ही मिलने शुरू हो गए थे कि कायाकल्प के प्रथम दौर में सप्लाई चेन को जो झटके सहन करने पड़े थे वे अब धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। 

सबसे गहरी समस्या है टैक्स ढांचे का डिजाइन तैयार करना। यह अत्यधिक जटिल है। इस जटिलता का कम से कम एक कारण तो यह है कि जी.एस.टी. पर अखिल भारतीय स्तर पर जो संघीय सौदेबाजी हुई है उसमें प्रोत्साहन भी जी.एस.टी. का अटूट अंग है। पहली बात तो यह है कि राज्यों को जी.एस.टी. को बढ़ावा देने में कोई ऐसा लाभ दिखाई नहीं देता था जो आर्थिक वृद्धि को मजबूती प्रदान कर सके, जबकि भारत सरकार ने वास्तव में यह आश्वासन दिया था कि यदि एक वर्ष दौरान किसी प्रदेश की टैक्स उगाही में 14 प्रतिशत से कम वृद्धि होती है तो केन्द्र सरकार उसके बजटीय वायदों को पूरा करने की गारंटी लेगी। दूसरा कारण यह नीति थी कि सभी निर्णय जी.एस.टी. परिषद में सर्वसम्मति के आधार पर लिए जाएंगे। इसका सीधा-सा तात्पर्य यह था कि एक राज्य भी रूठ कर पूरे खेल को खराब कर सकता था, चाहे वह बहुमत को सहमत न भी कर सके। 

तो अब क्या होगा? मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने हाल ही में घोषणा की कि वह अपने देश में जी.एस.टी. का बोरिया-बिस्तरा बांध देंगे और पुराने बिक्री कर को फिर से लागू करेंगे। भारत को निश्चय ही इस रास्ते का अनुसरण नहीं करना चाहिए। हमारे जी.एस.टी. में बेशक त्रुटियां ही क्यों न हों, यह पुरानी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से कई गुणा बेहतर है। भारतीय बाजारों को एक सूत्र में पिरो कर जी.एस.टी. उत्पादकता में वृद्धि करेगा। यह भारत में आर्थिक गतिविधियों को औपचारिक रूप देने में सहायक होगा। जी.एस.टी. परिषद एक संस्थागत आविष्कार है जो अपने-अपने हितों की ओर खींचने वाली राजनीति पर अंकुश सिद्ध होगा।

Pardeep

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