अवसाद एक ‘खामोश’ मौत है

Wednesday, Jun 17, 2020 - 03:28 AM (IST)

मेरे लिए इस लेख को लिखना एक दर्द भरा काम है। परिवार के किसी सदस्य को खो देना एक दुखद स्थिति है, फिर चाहे यह अमीर हो या फिर गरीब। विशेष तौर पर युवा फिल्म स्टार सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने एक बार फिर अवसाद की बहस को जन्म दे दिया है।

आजकल अवसाद बच्चों में, स्कूल में, घरेलू महिलाओं, व्यवसायी लोगों तथा सफल लोगों में भी पाया जा रहा है। अवसाद एक ‘खामोश’ मौत है। यह ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे इंसान को मारती है, यह बेहद घातक है। यह एक दीवार पर चढऩे वाली बेल की तरह है। कोरोना वायरस के चलते अवसाद भी तेजी से बढ़ रहा है।

प्रत्येक व्यक्ति चारों ओर से संकट से गुजर रहा है। समाचारपत्र को पढऩा या खबरें देखना आज मुश्किल है। यह सब आजकल बेहद अवसादग्रस्त हो चुके हैं। प्रत्येक स्कूल जाने वाला बच्चा कुछ वलगर वीडियो के वायरल होने के कारण आत्महत्या कर रहा है। उसके समाचार समाचारपत्रों में प्रकाशित होते हैं। एक पिता अपने परिवार की हत्या करने के बाद खुद भी आत्महत्या कर लेता है क्योंकि उसे कारोबार में घाटा हुआ है।

कुछ दबाव के चलते तो कुछ अकेलेपन की वजह से अवसाद को झेल रहे हैं। इसीलिए सभी परिवारों, दोस्तों तथा चिकित्सा मदद की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। डाक्टर के पास उपचार के लिए जाने वाले आधे मरीज मर जाते हैं। यह सब एक लांछन है, जो गलत है। 

ऐसी धारणा से कई भोले-भाले मृत्यु पा लेते हैं। जैसे ही कोई अकेलापन महसूस करता है, उसे मैडीकल उपचार की जरूरत होती है। आपको अपने दोस्तों या फिर पारिवारिक सदस्यों तक पहुंच बनानी चाहिए। यदि आप यह महसूस करते हैं कि आपको कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही तो आपको फौरन ही मैडीकल सहायता लेनी चाहिए।

आजकल तो बहुत से एन.जी.ओ. हैं, जो फोन पर ही नि:शुल्क सलाह-मशविरा देते हैं। आप गतिशीलता बनाए रखें और अपने आपको व्यस्त रखने की कोशिश करें। अफवाहें भड़काने वाले लोग गैर-जिम्मेदाराना बातें करते हैं। वह अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं। एक सुरक्षित व्यक्ति कभी भी अफवाहें नहीं फैलाता। कुछ लोग खबरों में रहने के लिए अफवाहें फैलाते हैं। 

एक प्रतिभाशाली अभिनेता और एक अच्छे इंसान सुशांत सिंह राजपूत का इस सप्ताह निधन हो गया। वह कथित तौर पर अवसाद से पीड़ित था और उसने अपनी जान ले ली। दुनिया के लिए यह एक अविश्वसनीय नुक्सान था। एक अच्छे व्यक्ति की मौत बहुत बातें कह जाती हैं। मैंने अपनी संस्कृति में देखा है कि बहुत बार ऐसा होता है कि लोग किसी को भी अवसाद या चिंता के मामूली मामले में किसी को पागल या दीवाना कहते हैं।

समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें बाहरी लोग स्वीकार्य नहीं। फिर चाहे वह कितने भी योग्य हों। क्योंकि मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो ऐसा करते हैं। यहां पर ऐसी बात करने का मौका नहीं। मैं इसे बदसूरत प्रवृत्ति का नाम दूंगी, जो हमारे साथी मनुष्यों के लिए अज्ञानता और असंवेदनशीलता से उपजी है। जीवन कठिन है और कुछ लोग दूसरों की तुलना में परीक्षणों और क्लेशों से अधिक प्रभावित होते हैं। 

हर कोई व्यक्ति सभी बातों को झेल नहीं पाता। जब आप जानते हैं कि कोई व्यक्ति संवेदनशील है या फिर वह जीवन में संघर्ष कर रहा है तो आप उसके लिए दयालु बनें तथा उसकी बात सुनें। केवल सुनने मात्र से ही आप उसके बोझ को कम करने में सहायक सिद्ध होते हैं। प्रेम सबसे दिव्य विशेषता है। प्यार करने का मतलब है समर्थन करना। किसी को तब महत्व दें जब वह आपके साथ हो क्योंकि जब वे चले गए तो समझो चले गए। कोई उन्हें वापस नहीं ला सकता। हमें संवेदनशील और दयालु होना चाहिए। घृणा बंद करे और लोगों का मनोबल बढ़ाए।

मेरे प्यारे दोस्त के एक पोस्ट ने मेरा दिल जीत लिया ‘‘मैं सुशांत राजपूत की मौत से बेहद दुखी हूं और ऐसे कई लोग हैं जो अपना जीवन समाप्त कर रहे हैं। मैं वास्तव में नहीं जानती कि लोगों को ऐसा करने के लिए कौन से विचार उकसाते हैं। हम यह अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं कि हम अपने आसपास दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं। हर कोई कभी भी वास्तविक कहानी जान नहीं सकता कि किसी के जीवन में क्या हो रहा है।?’’ 

उनका कहना है कि सुनना एक ऐसी कला है जिसमें काम, आत्मा अनुशासन और कौशल की आवश्यकता होती है। हम अक्सर दोस्तों से बात करते हैं। उसके बीच में ही बातचीत कई बार किसी जरूरी कार्य के चलते रोक दी जाती है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। कभी-कभार इसे पहचानने के बिना भी हम इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं। आज जीवन एक तेज ट्रैक पर दौड़ रहा है। हम सभी महत्वाकांक्षी हैं। हम सभी बहुआयामी कार्यों पर लगे हुए हैं। हम फोन पर किसी से बात करते समय 10 अन्य चीजें कर रहे होते हैं। जब हम यह तय करते हैं कि एक वक्ता जो बोल रहा है वह उबाऊ या बेकार है तो हम अक्सर सुनने का ढोंग करते हैं।

यदि आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके प्रति आप अधीर, नाराज या फिर कोई निर्णय लेने के लिए महसूस करते हैं तब आप उसके साथ सम्मान और दया का व्यवहार करें। किसी एक व्यक्ति को ज्यादा महत्व दें। जबकि आप उसकी कहानी को पूरी तरह से नहीं जानते। अपने आसपास के लोगों के लिए और भी अधिक करुणा दिखाने की कुंजी यह है कि आप इसे दैनिक अभ्यास का हिस्सा बनाएं। जैसा कि दलाईलामा ने कहा है, ‘‘यह मेरा सरल धर्म है, मंदिरों की कोई जरूरत नहीं, जटिल फिलॉस्फी की जरूरत नहीं। हमारा अपना मस्तिष्क, हमारा अपना हृदय, हमारा अपना मंदिर है। फिलॉस्फी दयालु जीवन देने वाली तथा उत्तरदायी है।’’ प्रेम से शुरू करो, प्रेम दिव्य है और सब उत्कृष्ट बनो।-देवी एम. चेरियन
 

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