हमारे चारों ओर लोकतंत्र भयानक आकार में दिखता है

Thursday, Jan 11, 2024 - 06:10 AM (IST)

बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश में 7 जनवरी को हुए चुनावों में लगातार पांचवीं बार सत्ता हासिल की। साथ ही उनकी आवामी लीग पार्टी ने 223 संसदीय सीटों पर भारी बहुमत से जीत हासिल की। यह और बात है कि इन पर किसी भी वास्तविक अर्थ में चुनाव नहीं लड़ा गया क्योंकि मुख्य विपक्षी बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बी.एन.पी.) ने चुनावों का बहिष्कार किया था। यह लगभग 40 प्रतिशत के निराशाजनक मतदान में परिलक्षित हुआ, जो 2018 के आंकड़े के आधे से भी कम है। बी.एन.पी. ने एक तटस्थ प्रशासन के तहत चुनाव करवाने की मांग की थी जिससे विश्वास पैदा हो सकता था लेेकिन विपक्षी दल को विरोध प्रदर्शनों पर कार्रवाई करने के बजाय मजबूत रणनीति का सामना करना पड़ा जिससे परिणाम बहुत पूर्वानुमानित हो गया। 

170 मिलियन की आबादी वाले बंगलादेश में कड़ी सुरक्षा के बावजूद हिंसा की कई घटनाएं हुईं जिसमें मतदान से कुछ घंटे पहले कम से कम एक दर्जन मतदान केंद्रों और कुछ स्कूलों में आग लगा दी गई। डेढ़ दशक तक प्रधानमंत्री के रूप में हसीना कथित तौर पर लोकप्रिय इच्छा को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र चुनाव का दिखावा जारी रखने के लिए उम्मीदवारों को मत पत्रों पर लाने की होड़ में थीं।  दक्षिणपंथी बी.एन.पी. की तुलना में आवामी लीग की राजनीति में इस्लामी रुझान नहीं रहा है और वह 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान से बंगलादेश की मुक्ति के बाद से नई दिल्ली के साथ मधुर संंबंध बनाए रखने के लिए उत्सुक रही हैं। 

हमारे सांझा अतीत को देखते हुए यह द्विपक्षीय संबंध समझ में आता है, और हसीना ने एक राजनीतिक संतुलन बनाया है जो इसकी स्थिरता के पक्ष में है। प्रधानमंत्री के रूप में उनकी नीतियों से बंगलादेश की अर्थव्यवस्था में भी अच्छा बदलाव आया है जिसे कभी अभाव के विकल्प के रूप में देखा जाता था। इसके अतिरिक्त गरीबी उन्मूलन, स्कूल नामांकन, सूक्ष्म वित्त और कल्याण प्रावधानों पर प्रभावशाली लाभ देखा गया है। यहां तक कि कपड़ा और परिधान निर्यात ने रोजगार पैदा करने और अपने प्रति व्यक्ति उत्पादन को भारत के प्रतिद्वंद्वी स्तर तक बढ़ाने के लिए प्रगति की है। हालांकि हसीना की उपलब्धियां सराहनीय हैं लेकिन राजनीतिक दमन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 

वैश्विक निगरानीकत्र्ताओं के बंगलादेश को नीचा दिखाने के कारण नागरिक स्वतंत्रता खतरे में है। कहा जाता है कि यहां तक कि ऑनलाइन आलोचकों को भी डिजिटल सुरक्षा कानून के कठोर अंत का सामना करना पड़ सकता है जो ढाका द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली छड़ी का आकार ले सकता है। उप-महाद्वीप में अगला चुनाव 8 फरवरी को होना है जब पाकिस्तान में नैशनल असैंबली चुनाव होने की उम्मीद है जिसकी वैधता पर संदेह है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी विभिन्न तरीकों से लडख़ड़ा रही है। खान को 2022 में एक असैंबली वोट में पी.एम. पद से हटा दिया गया था। इमरान ने आरोप लगाया था कि अमरीका के इशारे पर सैन्य प्रतिष्ठान ने उनके खिलाफ धांधली की थी। 

‘द इकोनॉमिस्ट’ में खान द्वारा लिखे वक्तव्य के अनुसार अमरीकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने वाशिंगटन में पाकिस्तानी राजदूत को एक ‘सिफर संदेश’ देने के लिए कहा, जिसका आशय था कि ‘अविश्वास मत के माध्यम से इमरान खान के प्रधानमंत्री पद पर रोक लगा दी जाए या अन्यथा’। सच्चाई जो भी हो यह एक नाटकीय आरोप है जो पाकिस्तान में सत्ता के इस्तेमाल पर खराब असर डालता है। विभिन्न आरोपों में सलाखों के पीछे से खान उचित रूप से चेतावनी दे सकते हैं कि उनका देश ‘चुनावी तमाशे’ की ओर बढ़ रहा है क्योंकि उनकी पार्टी को स्वतंत्र रूप से प्रचार करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। 

यह भारत के लिए भी अच्छा नहीं है। विश्वसनीय संबंध बनाने के लिए हमें साथ काम करने हेतु वास्तविक प्रतिनिधियों की जरूरत है और इसके लिए हमें अपने चारों ओर लोकतंत्र के पुुनरुद्धार की जरूरत है। 
बंगलादेश में शेख हसीना की जीत खोखली थी क्योंकि वह विपक्ष मुक्त थी जबकि पाकिस्तान का चुनाव इमरान खान की पार्टी के बेडिय़ों में जकड़े होने के कारण एक मजाक की ओर जा सकता है, यह बात भारत के लिए अच्छी नहीं है।     

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