एक समान नागरिक संहिता मुस्लिम समुदाय के अंदर से उठनी चाहिए सुधारों की आवाज

Thursday, Oct 20, 2016 - 01:58 AM (IST)

सुप्रीमकोर्ट के समक्ष मुुस्लिम समुदाय में प्रचलित तिहरे तलाक और बहुपत्नी विवाह की प्रथा के विरुद्ध राजग सरकार के स्टैंड ने एक समान नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) के विषय पर एक नई बहस छेड़ दी है। बेशक सरकार के हलफनामे में सिविल कोड का उल्लेख नहीं किया गया तो भी विधि आयोग ने ‘यूनिफार्म सिविल कोड  की व्यावहारिकता  तक’ के विषय पर जनता की राय मांग कर सरकार की असली मंशा जाहिर कर दी है।

यह कहते हुए कि ङ्क्षलग आधारित समानता भारत के संविधान के आधारभूत ढांचे का अंग है, सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को बताया कि इस विषय में किसी प्रकार की सौदेबाजी नहीं की जा सकती। यह पहला मौका था कि किसी सरकार ने तिहरे तलाक के रिवाज के विरोध में आधिकारिक रूप में स्टैंड लिया है, हालांकि इस प्रकार की मांग मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में बराबरी और सुधारों की कामना करने वाले व्यक्तियों तथा महिला समूहों की ओर से पहले भी उठती रही है। 

सरकार के स्टैंड का अखिल भारतीय मुस्लिम व्यक्तिगत कानून बोर्ड द्वारा विरोध तो होना ही था लेकिन जितना जोरदार विरोध किया जा रहा है वह सचमुच हैरानी की बात है। बोर्ड ने सरकार पर एक समान सिविल कोड के पर्दे तले लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के बहाने सुप्रीमकोर्ट के समक्ष तिहरे तलाक का विरोध करने के प्रयासों का आरोप लगाया है और दलील दी है कि सुधारों के नाम पर मुस्लिम व्यक्तिगत कानून को नए सिरे से कलमबद्ध नहीं किया जा सकता। 

एक समान नागरिक संहिता के विषय पर बहस कोई नई नहीं बल्कि संविधान सभा के समय में भी यह मुद्दा उठा था और उस समय भी इस पर तीखे मतभेद पैदा हुए थे। संविधान सभा के कुछ मुस्लिम सदस्यों के अपने व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने का किसी समुदाय का अधिकार मूलभूत अधिकार समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस स्थिति को बदलने के किसी भी प्रयास का तात्पर्य यह होगा कि उन लोगों की जीवन शैली में सरकार दखल दे रही है जो युगों से अपने परम्परागत व्यक्तिगत कानूनों का पालन करते आ रहे हैं। 

लंबी बहस के बाद यह फैसला किया गया कि इस विषय को राजसत्ता की नीति के निर्देशित सिद्धांतों के अंतर्गत रखना चाहिए क्योंकि इसको भी कानून के माध्यम से थोपा नहीं जा सकता। निर्देशिक सिद्धांतों की धारा 44 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था कि राजसत्ता भारत के पूरे इलाके में नागरिकों के लिए एक समान सिविल कोड यकीनी बनाने का प्रयास करेगी। 

तिहरे तलाक पर पाबंदी का समर्थन करने वाले लोगों के पक्षधर इस तथ्य की ओर इंगित करते हैं कि पाकिस्तान सहित अधिकतर मुस्लिम देशों में तो यह प्रथा पहले से ही प्रतिबंधित है। विधि विशेषज्ञों द्वारा इस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया जाता है कि पाकिस्तान की सुप्रीमकोर्ट ने तो मुस्लिम पारिवारिक कानून अध्यादेश, 1961 के द्वारा तिहरे तलाक की समाप्ति की पुष्टि कर दी थी और तब से वहां यही स्थिति कायम है। यह अलग बात है कि वर्तमान परिस्थितियों में जब पाकिस्तान में मूलवादियों की तूती बोल रही है तो इस प्रकार का कोई अन्य कानून पेश करना मुश्किल हो गया है। 

सच्चाई यह है कि भाजपा नीत सरकार द्वारा तिहरे तलाक के विरुद्ध स्टैंड लिए जाने और वह भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से ऐन पहले, से सरकार की मंशा के संबंध में आशंकाएं पैदा होनी स्वाभाविक थीं। बेशक वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली ने एक समान नागरिक संहिता और तिहरे तलाक के मुद्दे पर सरकार के पैंतरों में फर्क होने की बात को रेखांकित किया है तो भी कई मुस्लिम संगठनों की राय है कि इस मुद्दे पर स्टैंड लेने का मामला अवश्य ही मुस्लिम समुदाय के नेताओं की मर्जी पर छोड़ दिया जाना चाहिए। 

जहां तक राजसत्ता की नीति के निर्देशिक सिद्धांतों के अंतर्गत इस मामले के उल्लेख का संबंध है, इन संगठनों का कहना है कि सरकार को जो चीज अपने हित में लगती है वह उसी को तूल देती है। उन्होंने कहा कि और भी कई विषयों का निर्देशिक सिद्धांतों के अंतर्गत उल्लेख लिया गया है जैसे कि शराबबंदी तथा सभी के लिए शानदार गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना इत्यादि, लेकिन फिर भी केवल तिहरे तलाक और एक समान नागरिक संहिता को लेकर ही हंगामा मचाया जा रहा है।

मुस्लिम समुदाय के बहुत विशाल हिस्से में सरकार की मंशा को लेकर गहरा संदेह है, खासतौर पर भाजपा नीत सरकार की मंशा को लेकर। जब किसी समुदाय के विशाल वर्गों में यह भावना व्याप्त हो कि उन्हें नाजायज ढंगों से परेशान किया जा रहा है तो जबरदस्ती किसी समुदाय पर सुधारात्मक कानून थोपना उचित नहीं। मुस्लिम समुदाय का बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा के प्रत्येक कदम को गहरे संदेह की दृष्टि से देख रहा है। ऐसे जुनूनी ग्रुप तो हमेशा ही मौजूद होते हैं जो साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने की ताक में रहते हैं।  संवेदनशील मुद्दों को खुद समुदाय के विवेक पर छोड़ देना ही बेहतर होगा। 

वास्तव में मुस्लिम समुदाय के बहुत विशाल प्रगतिशील वर्ग, खासतौर पर जिन्हें शिक्षा हासिल करने का मौका मिला है और जो महिला समानता के लिए लड़ते आ रहे हैं, तिहरे तलाक को समाप्त करने तथा अन्य मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों में सुधार करने के पक्षधर हैं। मुस्लिम समुदाय में सुधारों के पक्ष में आवाज उठाने वाले लोगों की संख्या और उनकी जागरूकता का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है इसलिए सरकार को हर हाल में सभी को बेहतर शिक्षा और अन्य आधारभूत सुविधाएं हासिल करवानी चाहिएं- खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के विशाल वंचित वर्गों को। सुधारों की आवाज मुस्लिम समुदाय के अंदर से उठनी चाहिए। ऐसा होने पर कोई भी इन सुधारों को रोक नहीं पाएगा।    

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