दिल्ली चुनाव : मुस्लिमों की तुलना में प्रमुख हिस्सेदारी न मिलने से सिख नाराज

Thursday, Nov 24, 2022 - 07:15 AM (IST)

दिल्ली नगर निगम के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक दी है। भारतीय जनता पार्टी अपनी सत्ता बचाने के लिए संघर्ष कर रही है तो दिल्ली का सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी भाजपा को सत्ता से बेदखल करने एवं खुद को सत्ता पर काबिज करने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहा है। उधर कांग्रेस बिना किसी शोर-शराबे के पार्टी को जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रही है। इन सबके बीच दिल्ली का सिख वोटर इस बार अपने को ठगा महसूस कर रहा है। यही कारण है कि सिख बहुल इलाकों में भी चुनाव जैसा माहौल नजर नहीं आ रहा। चुनाव में सिखों को अच्छी हिस्सेदारी और भागीदारी न मिलना भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। 

इसके अलावा सिखों का एक बड़ा वर्ग बंदी सिखों की रिहाई को लेकर भी सियासी दलों से नाराज है। इसे लेकर महीनों से जन जागरण अभियान चला रखा है, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल की ओर से उन्हें न तो समर्थन मिला और न ही सहयोग।  भाजपा के अपने घटक दल भाजपा सिख प्रकोष्ठ से जुड़े लोगों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला। सिख प्रकोष्ठ की ओर से 9 नेताओं की दावेदारी थी, जिनमें से 5 बहुत मजबूत माने जा रहे थे लेकिन पार्टी ने एक भी नेता को टिकट नहीं दिया। इसके अलावा कई दिग्गज नेता एवं युवा सिख चेहरे टिकट की अपेक्षा रखते थे, जिन्हें निराशा हाथ लगी। 

अगर हम बात करें सिखों के प्रतिनिधित्व की तो कुल 250 वार्डों में से कांग्रेस के 5, ‘आप’ के 6 और भाजपा ने 8 सिखों को मैदान में उतारा है। इसमें ज्यादातर वही पुराने चेहरे ही हैं जो या तो मेयर रह चुके हैं या पार्षद। इसके अलावा कुछ के परिवारों को सफलता मिली है। नए एवं युवा चेहरों को सीधे तौर पर नजरअंदाज कर दिया गया। इसके उलट मुस्लिम समाज की बात करें तो 250 वार्डों में से 26 में कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के नेताओं को टिकट दिया है। इस तरह कांग्रेस ने 10 प्रतिशत से अधिक टिकट मुस्लिम नेताओं को दिए हैं। जबकि आम आदमी पार्टी ने 13 मुस्लिमों को एवं भारतीय जनता पार्टी ने महज 4 वार्डों में ही मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। खास बात यह है कि भाजपा ने जिन चार वार्डों में मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया है उनमें कांग्रेस व आप ने भी मुस्लिम समुदाय के नेताओं को अपना उम्मीदवार बनाया है। 

सिख समाज से जुड़े लोगों को इस बात का इल्म है कि उन्हें राजनीतिक दलों की ओर से निगम चुनाव में मुस्लिम समुदाय से भी बदतर समझा गया है। लिहाजा अब वे अपने मत के जरिए सबक सिखाने को तैयार हैं। भाजपा एवं ‘आप’ से जुड़े सक्रिय कार्यकत्र्ता एवं नेता भले ही मैदान में प्रचार करते हुए आप को दिख जाएंगे, लेकिन एक बड़े वर्ग ने चुनाव प्रचार एवं सियासी दलों से अपने को अलग कर रखा है। लिहाजा, अब देखना होगा कि 4 दिसम्बर को होने वाले मतदान में सिखों की नाराजगी खुलकर दिखती है या फिर वे नोटा का इस्तेमाल कर करारा जवाब देते हैं। 

गुरुद्वारा कमेटी ने दिल और खजाना दोनों खोले : दिल्ली नगर निगम का चुनाव लड़ रहे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से जुड़े कुछ नेताओं की सुविधा के लिए कमेटी ने दिल और खजाना दोनों खोल दिए हैं। कमेटी ने प्रचार अभियान संभालने, व्यवस्था देखने, सोशल मीडिया, रैली सहित हर कामों के लिए अपने खुद के कर्मचारी तैनात कर दिए हैं। वैसे कमेटी कर्मचारियों की तैनाती का सिलसिला कोई नया नहीं है। पहले भी विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव, यहां के कर्मचारियों को तैनात किया जाता रहा है। इस बार तो सीधे तौर पर कमेटी से जुड़े 2 लोगों को ही टिकट मिला है, लिहाजा उनके लिए 50 से अधिक कमेटी एवं कमेटी से जुड़े शैक्षणिक संस्थाओं के मुलाजिमों को तैनात किया गया है। कर्मचारी ही नहीं, कमेटी प्रबंधन से जुड़े पदाधिकारी भी खुलकर एक राजनीतिक दल के बैनर तले झंडा उठाए हुए हैं। 

तख्त श्री पटना साहिब में सब कुछ ठीक नहीं : तख्त श्री हरमंदिर पटना साहिब के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी रंजीत सिंह गौहर-ए-मस्कीन की पूर्ण बहाली का मामला तूल पकड़ गया है। बीते दिनों तख्त श्री पटना साहिब के तत्कालीन अध्यक्ष अवतार सिंह हित ने जत्थेदार को नौकरी से हटा दिया था। उसके पीछे किसी संगत के द्वारा तख्त श्री पटना साहिब पर भेंट किए गए कीमती सामान के वजन और मात्रा में हेर-फेर का मामला था। इसी मामले को लेकर तख्त श्री पटना साहिब के पांच प्यारों ने ज्ञानी रंजीत सिंह को तनखाइया करार दे दिया था। 

लेकिन बीते शुक्रवार को तख्त साहिब बोर्ड के महासचिव ने चुपचाप ज्ञानी रंजीत सिंह की पूर्ण बहाली कर दी थी। इसके बाद स्थानीय संगत और कर्मचारियों ने जमकर विरोध किया। विरोध बढ़ता देख दो दिन बाद ज्ञानी रंजीत सिंह को फिर से सेवा से हटा दिया गया है। केंद्र सरकार से वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त ज्ञानी रंजीत सिंह भाजपा हाईकमान के नजदीकी माने जाते हैं। लेकिन स्थानीय संगत किसी भी कीमत पर तनख्वाइया जत्थेदार की बहाली को तैयार नहीं है। यही कारण है कि विरोध अब भी जारी है। विरोधी धड़े भी अपनी रोटी सेंकने के लिए खेला कर रहे हैं। धरना प्रदर्शन भी चल रहा है।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 

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