दीपावली : सामाजिक सरोकारों में श्रीराम

punjabkesari.in Thursday, Oct 31, 2024 - 05:43 AM (IST)

सभी पाठकों को दीपावली की असीम बधाई। हिंदू मान्यता के अनुसार, जिस समय माता लक्ष्मी जी का प्राकट्य हुआ था, उसी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी अयोध्या लौटे थे। इसलिए दीपावली पर दुनिया भर में ङ्क्षहदू दीपक प्रज्वलित और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, जिससे उनकी कृपा बनी रहे। यह पहली बार है, जब लगभग 500 वर्ष के संघर्ष के बाद रामलला अपने भव्य मंदिर में दीपावली मना रहे हैं। करोड़ों आस्थावान ङ्क्षहदुओं के लिए श्रीराम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार के साथ राष्ट्रपुरुष के रूप में भी स्थापित हैं। उनका पूरा जीवन ही भारतीय जीवन मूल्यों का मापदंड है। इसलिए जहां सत्कारयोग्य गुरु ग्रंथ साहिब जी में हरि सहित अन्य आराध्यों के साथ प्रभु श्रीराम के नाम का उल्लेख अढ़ाई हजार से अधिक बार है, वहीं  गांधी का सच्चा लोकतंत्र, सुराज और सुशासन मुखर तौर पर रामराज्य से प्रेरित रहा। 

स्वामी विवेकानंदजी भी राम-सीता को भारतीय राष्ट्र का आदर्श मानते थे। यह इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि रामकथा उन सभी जीवनमूल्यों का मिश्रण है, जो मानव, समाज और विश्व को सुखी और संतुष्ट रहने का रास्ता दिखाता है। श्रीराम सामाजिक समरसता का आईना हैं। अपने जीवन के सबसे पीड़ादायक दौर में श्रीराम ने सहयोगी और सलाहकार वनवासियों को ही बनाया, जिसमें केवट निषाद, कोल, भील, किरट और भालू शामिल रहे। अगर श्रीराम चाहते, तो अयोध्या या जनकपुर से सहायता ले सकते थे। लेकिन उनके साथी वे लोग बने, जिन्हें आज आदिवासी, दलित, पिछड़ा या अति-पिछड़ा कहा जाता है। इन सभी को श्रीराम ने ‘सखा’ कहकर संबोधित किया, तो वनवासी हनुमान को लक्ष्मण से अधिक प्रिय बताया है। भील समुदाय की शबरी माता का पिछड़ापन दोहरा है क्योंकि वे गैर-कुलीन वर्ग की स्त्री हैं। श्रीराम शबरी के झूठे बेर सप्रेम ग्रहण करते हैं। 

मां सीता की रक्षा में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले मांसाहारी गिद्धराज जटायु, जोकि वर्तमान में एक निकृष्ट पक्षी है उन्हें श्रीराम कर्मों से देखते हैं और एक पितातुल्य बोध के साथ उसका अंतिम-संस्कार करते हैं। यह सूचक है कि श्रीराम के लिए केवल कर्म की प्रधानता है, शेष निरर्थक। रावण कौन था? वह पुलस्त्य कुल में जन्मा ब्राह्मण, प्रकांड पंडित, सर्वशक्तिशाली, महान शिवभक्त, सोने की लंका का स्वामी था। परंतु वह आचरण से दुष्ट, कामुक और भ्रष्ट था। इसलिए हनुमानजी ने अधर्म के प्रतीक लंका का दहन, तो श्रीराम ने रावण का वध किया। इससे यह रेखांकित होता है कि आध्यात्मिक मूल्यों और सामाजिक व्यवस्था की रक्षा हेतु सभ्य समाज को पद-कद-वर्ग आदि की चिंता किए बिना इन जीवन मूल्यों के शत्रुओं को दंडित करना चाहिए। यदि मौजूदा हालात में इस मूल्य को पुनस्र्थापित किया जाए, तो हम स्वस्थ समाज की रचना कर सकते हैं।

एक मनुष्य को प्रत्येक स्थिति में कैसा आचरण करना चाहिए, उसके लिए भी श्रीराम आदर्श हैं। पिनाक (शिवधनुष) टूटने पर जब लक्ष्मण के तानों से महान शिवभक्त परशुरामजी क्रुद्ध हो उठते हैं और दोनों के बीच भीषण टकराव की संभावना बन जाती है, तब श्रीराम अपने विन्रम व्यवहार और मधुर-वाणी से स्थिति को संभालते हैं और क्रोधित परशुरामजी शांत होकर हिमालय चले जाते हैं। सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी एक व्यक्ति को कैसे व्यवहार करना चाहिए, उसका श्रीराम प्रतिरूप हैं। एक शत्रु के प्रति हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? जब विभीषण अपने भाई रावण के किए पर शॄमदा होकर उसकी देह का अंतिम संस्कार करने में संकोच करते हैं तब श्रीराम कहते हैं, ‘‘मरणान्तानि वैराणि निर्वृत्तं न: प्रयोजनम। क्रियतामस्य संस्कारो ममाप्येष यथा तव।।’’ अर्थात- बैर जीवन काल तक ही रहता है। मरने के बाद उस बैर का अंत हो जाता है। 

भारतीय वांग्मयों की माक्र्स-मैकॉले मानसपुत्रों ने अपने कुटिल एजैंडे के अनुरूप गोस्वामी तुलसीदासजी कृत रामायण की चौपाई: ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताडऩा के अधिकारी ।।  की शरारतपूर्ण विवेचना की है। श्रीरामचरितमानस को तुलसीदासजी ने अपने शब्दों में पिरोया है। इसमें विभिन्न पात्रों की बातचीत भी है। उसमें शब्द न ही श्रीराम के हैं और न ही रामायण के ऐसे चरित्र के, जिन्हें हिंदू आराध्य मानते हो। सच तो यह है कि श्रीरामचरितमानस में अन्य नारियों के साथ माता शबरी, केवट, निषादराज और गिद्धराज जटायु को जिस श्रेष्ठ भाव से काव्यग्रंथ में चित्रित किया गया है, वह भारतीय समाज के सभी वर्गों (दलित-वंचित सहित) को जोडऩे वाला और सम्मान देने वाला है। परंतु माक्र्स-मैकॉले समूह का मुख्य मकसद समाज से किसी कुरीति को मिटाना नहीं, बल्कि उनका अपने एजैंडे के लिए इस्तेमाल करके ‘असंतोष’ का निर्माण करना है। श्रीराम का जन्म किसी की हत्या करने हेतु नहीं हुआ। उनका अवतार रावण रूपी अन्याय, दुराचार और घमंड को समाप्त करने हेतु था। श्रीराम की जीवनयात्रा का ईमानदार विवेचनात्मक अध्ययन, बहुत से स्थापित मिथकों को ध्वस्त करता है।-बलबीर पुंज
 


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