कर्ज माफी ही काफी नहीं किसानों के लिए

Wednesday, Dec 26, 2018 - 04:20 AM (IST)

देश के तीन राज्यों में किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा से उनकी आॢथक स्थिति में सुधार होगा, इस बात की सम्भावनाओं पर कई प्रश्नचिन्ह हैं। विगत 7 दशकों में भारत के विकास की सबसे बड़ी कमी यही रही है कि देश का सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय कृषि सबसे अधिक उपेक्षित रहा है। स्वतंत्रता के बाद के 67 वर्षों में देश में 2 लाख 70 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं कीं। इससे अधिक दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान उपेक्षित और त्रस्त हों। 

कर्ज माफ करने की राजनीति ने विपक्ष की कांग्रेस पार्टी को यद्यपि कुछ राज्यों में संजीवनी प्रदान की है लेकिन किसानों की समस्या के समाधान के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है। खेती का व्यवसाय न लाभप्रद है और न आकर्षक। इसीलिए युवा पीढ़ी इस व्यवसाय से किनारा कर रही है। अब कृषि का कार्य केवल वही कर रहा है जिसे जीवनयापन का और कोई साधन नहीं मिलता। 

सीधी आय सहायता
परन्तु कृषि के बिना जीवन असंभव है इसलिए विश्व के अधिकतर देशों में  किसानों को खेत पर लगाए रखने के लिए सीधी आय सहायता दी जाती है। अमरीका में कुल 21 लाख  किसान हैं, इनके बड़े-बड़े कृषि फार्म हैं और 2012 में इन किसानों को 2565 करोड़ रुपए की सीधी आय सहायता प्रदान की गई थी। यानी प्रत्येक किसान को 73 लाख रुपए वाॢषक की सहायता भारत के लिए हैरानी की बात है। 

चीन में खाद अनुदान के रूप में प्रति वर्ष सरकार 17 बिलियन डॉलर खर्च करती है। अब वहां यह पूरा धन सीधे किसानों को नकद सहायता के रूप में दिया जाता है। उत्पादन में कभी चीन भारत से पीछे था, अब चीन में प्रति एकड़ उत्पादन भारत से दोगुना हो गया है। खाद अनुदान के लिए भारत सरकार प्रतिवर्ष 70 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है जिसका अधिकांश लाभ बड़ी-बड़ी खाद कम्पनियों को ही मिलता है, आम गरीब किसानों को नहीं। 

भारतीय खाद्य निगम के पुनर्नवीकरण के लिए मेरी अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति ने वर्ष 2015 में सिफारिश की थी कि ये 70 हजार करोड़ रुपए 9 करोड़ किसानों को इनपुट सबसिडी के रूप में 7 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर प्रति किसान के हिसाब से सीधे उनके खाते में दिए जाएं। गरीबी और कर्जे के दबाव में सिसक रहे बहुत से किसानों के लिए यह अनुदान एक वरदान सिद्ध होगा। बहुत-सी आत्महत्याएं रुक सकती हैं और किसान अपनी इच्छा से आवश्यकतानुसार खाद का उपयोग करेगा और जैविक खेती की ओर भी प्रोत्साहित होगा। मुझे प्रसन्नता है कि तेलंगाना सरकार ने अपने राज्य के किसानों को प्रति हैक्टेयर 8000 रुपए नकद सहायता देकर समिति के निर्णय को लागू किया जबकि केंद्र सरकार अभी इस समिति के सुझावों को पूरी तरह से लागू करने में कठिनाई महसूस कर रही है। तेलंगाना सरकार के इस सराहनीय निर्णय पर मैंने राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिख बधाई दी थी। 

मौसम की अनिश्चितता
वास्तव में हमारे देश में मौसम की अनिश्चितता के कारण किसानों को भारी मार सहनी पड़ती है। इस समस्या के निदान के लिए भारत में फसल बीमा योजना अति शीघ्र प्रत्येक किसान तक पहुंचाना बड़ा जरूरी है। इतना ही नहीं, आम गरीब छोटा किसान बीमे की पूरी किस्त नहीं दे सकता। इसलिए 80 प्रतिशत बीमा की किस्त केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जानी चाहिए। फसल बीमा योजना के लिए धनराशि गैर-योजना व्यय में बचत कर जुटाई जा सकती है। कृषि और किसान की भलाई के लिए अधिक से अधिक धन जुटाया जाना चाहिए। अटल जी की सरकार के समय पैट्रोल पदार्थों पर कर लगाकर लगभग 14 हजार करोड़ रुपए इकट्ठे हुए थे और उससे प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना चलाई गई थी। यह कर किसी को महसूस नहीं हुआ क्योंकि यह बहुत अच्छे काम के लिए लगाया गया था। 

विशेष कर लगाए जा सकते हैं
किसान व कृषि के लिए कुछ और विशेष टैक्स लगाए जा सकते हैं। अधिक आय वाली कम्पनियों पर ऐसा कर लगाया जाए और उसका उपयोग कृषि और सिंचाई के लिए ही किया जाए। इससे किसानों को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। किसानों की फसलों की सरकारी खरीद पर समर्थन मूल्य नीति में भी आमूल परिवर्तन किया जाए। इन कुछेक पगों से किसानों की वर्तमान दशा में सुधार किया जा सकता है अन्यथा किसानों का कर्ज लेकर कृषि कार्य करने का यह दुष्चक्र जारी रहेगा और कर्ज माफी के इन निर्णयों से देश की आर्थिकी अस्त-व्यस्त होगी।-शांता कुमार

Pardeep

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