एक तरफ मौत, दूसरी तरफ कारोबार

punjabkesari.in Tuesday, May 31, 2022 - 04:55 AM (IST)

हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को तंबाकू के स्वास्थ्य के लिए खतरों और दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, तंबाकू से हर साल औसतन 80 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें से 70 लाख मौतें सीधे तौर पर तंबाकू के सेवन से होती हैं, जबकि जान गंवाने वाले 12 लाख ऐसे लोग हैं जो इसका सेवन नहीं करते, वे धूम्रपान करने वाले लोगों और उसके धुएं के संपर्क में आते हैं। भारत में पान मसाले का कारोबार करीब 42,000 करोड़ रुपए का है, जिसके 2027 में 53,000 करोड़ रुपए के पार जाने की उम्मीद है। 

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में 27 करोड़ से ज्यादा लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। देश में हर साल 10.5 लाख मौतें तंबाकू पदार्थों के सेवन से होती हैं। 90 प्रतिशत फेफड़े का कैंसर, 50 प्रतिशत ब्रोन्काइटस एवं 25 प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है। तंबाकू का सेवन सामाजिक, आर्थिक दुष्परिणामों के साथ पर्यावरण के लिए भी खतरा बन चुका है। विश्व में हर साल तंबाकू उगाने के लिए लगभग 3.5 मिलियन हैक्टेयर भूमि नष्ट हो जाती है। 84 मैगा टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के बराबर ग्रीनहाऊस गैस इसकी देन है। यही नहीं, इसके उत्पादों से हर साल 10 हजार टन कचरा निकलता है। अनुमान है कि सिगरेट के टुकड़ों और बट से हर साल करीब 76.6 करोड़ किलोग्राम हानिकारक कचरा पैदा हो रहा है। 

तंबाकू की खेती में करीब 2 करोड़ खेतिहर मजदूर लगे हुए हैं, जिनमें से 40 लाख लोग तंबाकू की पत्तियां तोडऩे वाले और 85 लाख कर्मचारी इसके प्रसंस्करण, उत्पादन, निर्यात कारोबार में काम कर रहे हैं। लगभग 72 लाख लोग तंबाकू के खुदरा कारोबार में लगे हुए हैं। भारत दुनिया के 100 से ज्यादा देशों को अग्रणी तंबाकू निर्यातक है, जिसे इस कारोबार से सालाना 6000 करोड़ रुपए की विदेशी कमाई हो रही है। 

तंबाकू पत्तियों का कुल वैश्विक निर्यात कारोबार 12 अरब डॉलर का है, जिसमें भारत की 5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। फरवरी 2020 में तंबाकू के फैक्ट्री आऊटपुट में साढ़े 5 प्रतिशत की बढ़त पाई गई। अकेले तंबाकू उद्योग की वृद्धि कुल औद्योगिक उत्पादन की साढ़े 4 प्रतिशत की ग्रोथ से अधिक है। भारत आज दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक और निर्यातक देश है। 

निस्संदेह, किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन सेहत के लिए नुक्सानदायक है, लेकिन चेतावनियों के बावजूद यह कम नहीं हुआ। दरअसल, तंबाकू सेवन समाज का एक ऐसा स्याह पहलू है जो आधुनिक समय में हमारी युवा पीढ़ी को खोखला करता जा रहा है। तंबाकू की इस गिरफ्त में केवल युवा ही नहीं, अपितु हर उम्र, लिंग, धर्म-जाति के लोग फंस चुके हैं। तंबाकू के कारण केवल व्यक्ति की ही मौत नहीं होती, उसका घर-परिवार ही बर्बाद नहीं होता, बल्कि देश की सभ्यता और संस्कृति भी नष्ट हो जाती है। 

चिंताजनक है कि गुटखा या खैनी जैसे तंबाकू उत्पादों की लत 52 प्रतिशत मामलों में 10 साल की कच्ची उम्र में ही लग रही है। एक और खतरनाक सच्चाई यह है कि आज भी हमारे देश में 13 से 15 साल तक के 20 फीसदी बच्चे किसी न किसी तंबाकू उत्पाद का सेवन कर चुके होते हैं। सरकार की ओर से 97,000 से ज्यादा स्कूली बच्चों पर किए गए इस सर्वे में यह बात सामने आई है। 29 फीसदी से ज्यादा छात्र सैकेंड-हैंड स्मोकिंग यानी दूसरों के धूम्रपान के धुएं के शिकार होते हैं। 11.2 फीसदी बच्चों को तो अपने घर में ही किसी परिजन के धूम्रपान का जहर फेफड़ों में लेना पड़ता है। सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध के बावजूद 23 फीसदी बच्चों को उन्हीं जगहों पर अप्रत्यक्ष धूम्रपान का शिकार होना पड़ता है। 

बच्चों में जिस तरह नशा करने की लत आम होती जा रही है उसी तरह उनमें अवसाद, चिंता, आत्मविश्वास की कमी, भावनात्मक कमजोरी, घबराहट और आक्रामक स्वभाव जैसी मानसिक समस्याएं आम होती जा रही हैं। पिछले कई सालों में बच्चों में डिप्रैशन और एंग्जायटी के मामले भी बढ़े हैं। सबसे बड़ी समस्या है सरकारी तंत्र में तंबाकू पर रोक को लेकर अंतविरोध। कृषि मंत्रालय के पास तंबाकू किसानों के लिए अन्य फसल या वैकल्पिक जीवनयापन की योजनाएं हैं और तंबाकू के अवैध कारोबार पर राजस्व विभाग नियंत्रण रखता है। वहीं वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले तंबाकू बोर्ड का लाइन ऑफ एक्शन अलग है। 

परस्पर विरोधी प्राथमिकताओं को देखते हुए सरकार को इसका कोई सर्वमान्य हल निकालना होगा। हर समाधान और हर समझौते के केंद्र में तंबाकू किसानों, मजदूरों, छोटे कर्मचारियों और उनके परिवारों का मुकम्मल पुनर्वास हर कीमत पर शामिल होना चाहिए। यही नहीं, तंबाकू के मरीजों और मृतकों के परिजनों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।-देवेन्द्रराज सुथार 
 


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