देश में मौत के आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता

punjabkesari.in Monday, May 10, 2021 - 03:51 AM (IST)

पूरी दुनिया इस समय अपने विश्व गुरु के बारे में चिंतित है क्योंकि कोरोना के विरुद्ध युद्ध का कुप्रबंधन एक वैश्विक कहानी बन चुका है। अमरीका का एक स्वतंत्र शोध केंद्र ‘इंस्टीच्यूट फॉर हैल्थ मैट्रिक्स  एंड इवैल्यूएशन’ ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष सित बर तक यानी कि 4 महीनों के बाद देश में 10 लाख भारतीयों की मौत हो जाएगी। यह आंकड़ा आधिकारिक गिनती पर आधारित है जिसे स्वीकार करना बेहद कठिन है क्योंकि श्मशानघाटों तथा समाचारपत्रों में दिए गए आंकड़े कुछ अलग ही दृश्य बयां करते हैं।  

गुजरात में एक समाचार पत्र ने 6 मई को खुलासा किया कि राज्य के 7 प्रमुख शहरों जैसे अहमदाबाद, गांधीनगर, बड़ौदा, सूरत, राजकोट, जामनगर तथा भाव नगर में कोविड प्रोटोकॉल के साथ 17822 शवों का दाह संस्कार या फिर उन्हें कब्रिस्तानों में दबाया गया मगर सरकार ने केवल 1745 मौतों को आधिकारिक रूप से स्वीकार किया है। यह गिनती 10 प्रतिशत बनती है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि गुजरात के इन शहरों में राज्य की कुल आबादी का तीसरा या इससे कम हिस्सा रहता है। गांवों में होने वाले टैस्ट तथा उपचारों की गिनती थोड़ी कम है। 

यह केवल गुजरात का हाल नहीं है। तीन मई को एक समाचार पत्र ने एक समाचार प्रकाशित किया कि भोपाल में कोविड से 104 मौतें हुईं जबकि श्मशानघाटों और कब्रिस्तानों से मिली रिपोर्ट के अनुसार 3811 कोविड मरीजों में से 2557 शवों का दाह संस्कार या फिर उन्हें दबाया गया। यह 1:25 की दर है। 4 मई को हरियाणा से मिली रिपोर्ट के अनुसार आधिकारिक मौतों के आंकड़ों और श्मशानघाटों के आंकड़े में फर्क नजर आता है। यह अनुपात 1:2 का है। पिछले माह बेंगलुरू के लिए भी कुछ इसी तरह के आंकड़े जारी हुए (आधिकारिक आंकड़े 1422 की तुलना में 3,104 मौतें कोविड प्रोटोकॉल के साथ हुईं)। 

उत्तर प्रदेश में मेरठ से आई रिपोर्ट में कहा गया कि वहां यह अनुपात 1:7 का रहा। यदि हम आंकड़ों को सही ढंग से देखें तो आधिकारिक रूप से प्राप्त गिनती 2 या शायद 3 गुणा ज्यादा दिखाई पड़ती है जोकि अनुचित है। यदि हम इस गिनती को ले लें तो हमारे पास आधिकारिक मौतें 2.3 लाख हैं जोकि विश्व में तीसरे न बर पर है।

वास्तव में यहां पर 5, 6 लाख या फिर 7 लाख से ज्यादा मौतें हैं जोकि विश्व में सबसे ज्यादा है। ये किसी को चमकाने वाली बात नहीं क्योंकि पूरे विश्व ने भारत से दिल दहलाने वाले और शर्मनाक दृश्य बर्दाश्त किए हैं। मुझे यह स्पष्ट करना चाहिए कि आंकड़ों के साथ हेरफेर सरकारी फ्रॉड के कारण नहीं। यह सब कुछ हिस्सों में हुआ क्योंकि ज्यादातर लोग घरों पर मर रहे हैं जिन्हें चिकित्सीय सहूलतों तक पहुंच बनाने में असमर्थता हो रही है। लोग चिकित्सीय सुविधाओं को पाने में सक्षम भी नहीं। 

एक व्यक्ति जो कोविड से संक्रमित है लेकिन उसे कोई अन्य बीमारी भी है, उसका वर्गीकरण भी कोविड मौत के तौर पर किया जा सकता है या नहीं। सरकार का तत्काल मंतव्य यह समझने को है कि आधिकारिक गिनती कम है क्योंकि यह दिखने से ज्यादा अक्षम और मजबूर है मगर आंकड़ों को छुपाना और तथ्यों को क्रियाशील होकर प्रोत्साहित न करने से चीजें हमारे लिए और भी खतरनाक हो चली हैं।

सरकार को स्पष्ट देखना चाहिए और कहना चाहिए कि इसके आंकड़े तथ्यों के अधीन हैं जोकि लोगों की सुरक्षा के लिए है। यदि रिकवरी रेट जैसी बातें लोगों को बताई जाएंगी तब लोग कम अलर्ट और ज्यादा लापरवाह हो जाएंगे। मास्क पहनने और सामाजिक दूरी की बात को लेकर लोग लापरवाह हो जाएंगे। 

यदि लोग यह जान जाएंगे कि ज्यादातर लोग संक्रमित होकर मर रहे हैं क्योंकि सरकार अस्पतालों का प्रबंधन नहीं कर सकती तब लोग नहीं मानेंगे कि वह निजी तौर पर सुरक्षित हैं। देश में इस समय ऑक्सीजन की किल्लत है। दिल्ली के बाद दो भाजपा शासित राज्यों गुजरात और कर्नाटक ने कहा है कि उन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन मोदी सरकार से नहीं मिल पा रही। केंद्र का कहना है कि उसके पास पर्याप्त ऑक्सीजन है मगर यह सत्य नहीं। हमारे पास इतनी ऑक्सीजन नहीं है। 

हमारा कार्य और भी कठिन हो जाएगा यदि हम निरंतर बातों को नकारते रहें। तीसरी बात विश्वसनीयता की है। विश्व इस समय खुलासा कर रहा है कि भारतीय आंकड़ों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसा सोचने के लिए विश्व पर आरोप मढऩा ठीक नहीं क्योंकि यह ऐसा सत्य है जो हमारे अपने मीडिया की रिपोर्टों पर आधारित है। भारत की साख को पहले से ही बहुत क्षति पहुंचाई जा चुकी है मगर यह महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण यह है कि ज्यादा से ज्यादा देश भारतीय यात्रियों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। यह सूची काफी बड़ी हो चुकी है। यह हमारे निजी हित में है कि हमें वास्तविक मौत  की दर को खोजने का प्रयास करना चाहिए और यही महामारी पर अंकुश लगाने का पहला कदम है।-आकार पटेल 


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