देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर डालेगी कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि

Tuesday, Apr 17, 2018 - 03:30 AM (IST)

हाल ही में अमरीका व मित्र देशों द्वारा सीरिया पर मिसाइल हमले के बाद रूस और अमरीका के बीच बढ़ते विवाद के कारण विश्वयुद्ध की आशंका तथा तेल निर्यातक देशों के संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ  पैट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) व रूस  द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन घटाने के निर्णय पर अडिग रहने से कच्चे तेल की कीमतें और बढऩे की आशंका दिखाई दे रही है। 

यद्यपि 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित ऊर्जा क्षेत्र के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन इंटरनैशनल एनर्जी फोरम (आई.ई.एफ.) में  तेल उत्पादक देशों से कच्चे तेल की कीमतें तय करने में समझदारी दिखाने का आग्रह किया है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत, जो इस समय करीब 72 डॉलर प्रति बैरल (प्रति बैरल 159 लीटर) है, उसके निकट भविष्य में बढ़कर 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की आशंका है। 

गौरतलब है कि इन दिनों देश में पैट्रोल और डीजल की कीमतें पिछले 4 वर्ष के उच्चतम स्तर पर हैं। 16 अप्रैल को जहां राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में पैट्रोल की कीमत 74.20 रुपए प्रति लीटर तथा डीजल की कीमत 65.18 रुपए प्रति लीटर रही, वहीं मुंबई में पैट्रोल की कीमत 81.87 रुपए प्रति लीटर तथा डीजल की कीमत 69.41 रुपए प्रति लीटर रही। स्थिति यह है कि दक्षिण एशियाई देशों में भारत में पैट्रोल और डीजल की खुदरा कीमत सबसे अधिक है। भारत में पैट्रोल-डीजल की कीमत अधिक होने का खास कारण पैट्रोल और डीजल की कीमतों में करीब आधा हिस्सा केन्द्र के उत्पाद शुल्क एवं राज्य सरकारों के वैट के रूप में है।

गौरतलब है कि पैट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती हुई कीमतों से देश के कोने-कोने में करोड़ों लोग परेशान हैं। देश में पैट्रोल-डीजल की कीमतें वर्ष 2014-15 के बाद अब तक सबसे अधिक ऊंचाई पर हैं। ऐसे में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण देश के आम आदमी से लेकर पूरी अर्थव्यवस्था मुश्किलों का सामना करती दिखाई दे रही है। चूंकि भारत में पैट्रोल और डीजल की कीमतें अब वैश्विक बाजार की कीमतों के आधार पर निर्धारित होती हैं, अतएव पैट्रोल-डीजल की कीमत जहां छोटे तथा बड़े टू-व्हीलर, फोर-व्हीलर वाहन रखने वालों की जेब को रोजाना प्रभावित कर रही है, वहीं डीजल की बढ़ती कीमत महंगाई बढ़ाते हुए भी दिखाई दे रही है। देश में करीब 86 फीसदी माल की ढुलाई ट्रकों के जरिए की जाती है। ऐसे में ढुलाई महंगी होने के कारण विभिन्न वस्तुएं एवं सेवाएं महंगी होती दिखाई दे रही हैं। महंगाई बढऩे से औद्योगिक क्षेत्र की कम ब्याज दर पर कर्ज की मांग पूरी होना मुश्किल है।

वैश्विक स्तर पर काम करने वाली वित्तीय सेवा कम्पनी नोमुरा ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि चूंकि भारत अपने तेल की कुल जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है अतएव अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कहा गया है कि कच्चे तेल के भाव में प्रति बैरल 10 डॉलर की वृद्धि होने पर भारत का राजस्व घाटा भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के 0.4 प्रतिशत के बराबर बढ़ जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार, तेल की उच्च कीमतें झटके के समान हैं जो वृद्धि दर को कमजोर करती हैं। इस समय वैश्विक संस्था आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑप्रेशन एंड डिवैल्पमैंट (ओ.ई.सी.डी.) द्वारा कच्चे तेल की आसमान पर पहुंचने वाली कीमतों से संबंधित अध्ययन रिपोर्ट 2018 को गंभीरता से पढ़ा जा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमत वर्ष 2020 तक 270 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है। 

यकीनन पिछले 3 सालों तक कमजोर कच्चे तेल की कीमतों का जो लाभ भारत को मिला, वह अब समाप्त होता दिख रहा है। वर्ष 2014-15 में कच्चे तेल की औसत कीमत 84 डॉलर प्रति बैरल थी। यह कीमत उससे पिछले साल की तुलना में करीब 20 फीसदी कम थी। फिर वर्ष 2015-16 में यह कीमत घटकर 45 डॉलर प्रति बैरल हो गई। 2016-17 में इसमें कुछ बढ़ौतरी हुई और यह बढ़कर 48 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई। लेकिन वर्ष 2017-18 में औसत भाव में सुधार हुआ। अप्रैल 2018 में तेल का भाव 72 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया है। नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद संयोगवश वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने से भारतीय तेल क्षेत्र और सरकार दोनों इससे लाभान्वित होते रहे। कच्चे तेल की कीमतें घटने से तेल कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ता गया। लेकिन अब कच्चे  तेल की लगातार बढ़ती कीमतें सरकार और तेल कंपनियों के लिए आर्थिक मुश्किलों का कारण बन गई हैं। 

कच्चे तेल के कम मूल्यों से लाभान्वित होने का दौर वर्ष 2017-18 के आरंभ से ही बदलने लगा और पैट्रोल-डीजल की कीमतें तेजी से बढऩे लगीं। कीमतों में और ज्यादा बढ़ौतरी होती इससे पहले ही सरकार ने अक्तूबर 2017 में इसमें दखल दिया और पैट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क को कम किया। इसकी वजह से सालाना 26,000 करोड़ रुपए की राजस्व हानि हुई। स्थिति यह है कि नवंबर 2014 से अब तक पैट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क 9 बार बढ़ा, पर उत्पाद शुल्क में मात्र 2 रुपए की कटौती केवल एक बार की गई। 

इस समय जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में मौजूदा बढ़े हुए स्तर से गिरावट का कोई संकेत नहीं है, ऐसे में तेल की कीमतों में वृद्धि से होने वाली मुश्किलों के मद्देनजर तेल कीमतों पर नियंत्रण जरूरी है। बढ़ती तेल कीमतों का असर देश की विकास दर पर भी होगा, अतएव सेवा क्षेत्र, उद्योग क्षेत्र व कृषि क्षेत्र में विकास दर बढ़ाने के लिए तेल की कीमतों पर नियंत्रण जरूरी होगा। जरूरी है कि सरकार अपना पूरा ध्यान अपनी ऊर्जा नीति को नए सिरे से तैयार करने पर केंद्रित करे ताकि पैट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से होने वाली आर्थिक मुश्किलों को कम किया जा सके। चूंकि देश तेजी से विकास कर रहा है और 2030 तक आने वाले वर्षों के दौरान देश की ऊर्जा संबंधी मांग बहुत तेजी से बढ़ेगी। इस अवधि में यह मांग दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में तेज होगी। 

कच्चे तेल के आयात पर इसकी निर्भरता में भी इजाफा होगा। ऐसे में आवश्यकता इस बात की होगी कि सरकार एक एकीकृत ऊर्जा नीति तैयार करे। सरकार द्वारा बिजली से चलने वाले वाहनों पर काफी जोर देना होगा। इलैक्ट्रिक कारों को टैक्स कम करके बढ़ावा देना होगा। साथ ही सार्वजनिक परिवहन सुविधा को सरल और कारगर बनाना होगा। इस समय जरूरी है कि तेल कीमतों के ऊंचे स्तर पर बने रहने से पैदा होने वाले करोड़ों उपभोक्ताओं के असंतोष को दूर करने के लिए राजकोषीय बुद्धिमता को तिलांजलि देकर केन्द्र सरकार पैट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करे और राज्य सरकारें वैट कम करें। साथ ही जी.एस.टी. परिषद द्वारा शीघ्रतापूर्वक पैट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) में शामिल किया जाए। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 12 अप्रैल को दुनिया के 3 सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देशों में से 2 देश चीन और भारत ने पश्चिमी एशियाई देशों से वाजिब दाम पर कच्चा तेल आयात करने की जिस  संयुक्त रणनीति को अंतिम रूप दिया है, उसे शीघ्रतापूर्वक कारगर तरीके से लागू करने पर दोनों देश वाजिब दामों पर कच्चे तेल का आयात कर सकेंगे और लाभान्वित होंगे।-डा. जयंतीलाल भंडारी

Pardeep

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