झारखंड में हेमंत सोरेन के सिर पर ‘कांटों का ताज’

punjabkesari.in Thursday, Dec 26, 2019 - 02:35 AM (IST)

झारखंड एक छोटा राज्य है, फिर भी महागठबंधन की शानदार जीत ने एक शक्तिशाली राजनीतिक संदेश दिया है। पिछले 6 माह के दौरान महाराष्ट्र के बाद भाजपा ने दूसरा राज्य अपने हाथों से गंवा दिया है। मोदी-शाह की जोड़ी को अब एक कदम पीछे खींचना पड़ गया है क्योंकि देश में गैर-भाजपा सरकारें देश की 65 प्रतिशत आबादी को नियंत्रित कर रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी का जादू फीका पड़ रहा है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में जोरदार जीत के बाद मोदी सशक्त होकर उभरे थे।

सोरेन परिवार के लिए यह जीत महत्वपूर्ण
झारखंड में झामुमो पांचवीं बार राज्य की बागडोर सम्भालेगी। शिबू सोरेन परिवार के लिए भी यह जीत महत्वपूर्ण है। हालांकि शिबू अपने बड़े बेटे दुर्गा को राजनीति के दावपेंच सिखा रहे थे मगर 2009 में उनके देहांत के बाद छोटे बेटे हेमंत सोरेन दूसरी पसंद थे। जुलाई 2013 से लेकर दिसम्बर 2014 तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले हेमंत सबसे युवा थे। पिछले 2 वर्षों में हेमंत के पास दर्जनों ऐसे पेशेवर लोग थे, जिन्होंने उनको साधारण, लोगों तक पहुंच बनाने वाले नेता के रूप में स्वयं को प्रकट करने के लिए सलाह दी। सोशल मीडिया पर हेमंत ने अपने ऐसे चित्र पोस्ट किए जिनमें वह मोटरसाइकिल पर बैठे तथा अपने आदिवासी पहरावे में झोंपड़ी के पास खड़े नजर आ रहे थे। 2009 से 2010 तक वह राज्यसभा सदस्य रहे तथा अर्जुन मुंडा नीत एन.डी.ए. सरकार (2010-2013) में उपमुख्यमंत्री के पद पर रहे इसलिए सरकार चलाना उनके लिए कोई नई बात नहीं। 

आज झारखंड के इतिहास में एक नया पन्ना जुड़ चुका है तथा भविष्य में यह मील का पत्थर साबित होगा। हेमंत ने जीत के फौरन बाद कहा था कि आज समय आ गया है कि उन वायदों को पूरा किया जाए जिसके लिए झारखंड की स्थापना की गई थी। हालांकि उनको कई चुनौतियों का सामना करना होगा। महागठबंधन का नेतृत्व करना कोई आसान कार्य नहीं होगा क्योंकि हेमंत ने अपने सिर पर कांटों का ताज सजाया है। ऐसी कोई विचारधारा नहीं है जिसने गठबंधन सहयोगियों को एक मुट्ठी में बांधा है। 

झारखंड का इतिहास रहा है कि यहां पर रघुवर दास को छोड़ कर कभी भी कोई स्थायी सरकार नहीं रही। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने 5 वर्ष पूरे किए थे। इस कारण हेमंत को अपनी कुर्सी बचा कर रखनी होगी। उनको अपने झुंड  पर भी पकड़ बनाए रखनी होगी। छोटे से राज्य में कुछ विधायक सरकार को अस्थिर कर सकते हैं। यदि अस्थिरता के चिन्ह नजर आए तो घायल भाजपा सरकार बनाने के लिए ऐसा कोई मौका नहीं गंवाएगी। आया राम-गया राम के दिनों में भाजपा को सिरे से नहीं नकारा जा सकता। महागठबंधन के विधायकों को हेमंत को संतुष्ट करना पड़ेगा। दल-बदलू नेता ही हेमंत के लिए खतरा हैं। 

कैबिनेट के गठन के लिए आसान फार्मूला बनाएं
हेमंत के पास तत्कालीन अगली चुनौती अपने मंत्रिमंडल को बनाने की है। 12 कैबिनेट मंत्रियों में जगह पाने के लिए राज्य में गठबंधन सरकार के कई भावी विधायक हैं। इसलिए कैबिनेट के गठन को लेकर हेमंत को कोई आसान फार्मूला अपनाना होगा। यहां पर मंत्रियों के विभागों को बांटने में हेमंत को काफी सतर्कता बरतनी होगी। गठबंधन धर्म को निभाने की भी उनको एक नई चुनौती पेश आएगी। अभी तक तो गठबंधन सहयोगी उनकी पूरी पीठ ठोंक रहे हैं। महाराष्ट्र की तरह उन्हें कॉमन मिनिमम प्रोग्राम अपनाना होगा। इसी के चलते महागठबंधन की दुश्वारियों से पार पाया जा सकता है। अंतिम और महत्वपूर्ण बात यह होगी कि झारखंड सरकार को राज्य के विकास को आगे बढ़ाना तथा पार्टी के घोषणा पत्र को पूरा करना होगा। जहां तक भाजपा का सवाल है पार्टी ने चुनावी मुहिम के दौरान आर्टीकल 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून इत्यादि जैसे मुद्दों पर जोर दिया था, वहीं झामुमो ने स्थानीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी, जल की कमी तथा जल-जंगल जमीन को बचाने पर जोर दिया था। 

सुंदर राज्य परंतु विकास परियोजनाओं की जरूरत
झारखंड देश का बेहद सुंदर राज्य है। इसलिए यहां पर विकास परियोजनाओं की बहुत बड़ी जरूरत है। राज्य को और ज्यादा एयरपोर्ट, सड़कों को आपस में जोडऩा, रेल ट्रांसपोर्ट तथा अन्य मूलभूत परियोजनाओं को पूरा करना होगा। इसके लिए पैसों की जरूरत पड़ेगी। हेमंत को इसके लिए सरकारी तथा प्राइवेट भागीदारी खोजनी होगी। झारखंड खनिजों तथा प्राकृतिक स्रोतों से भरा पड़ा है इसलिए लोगों को इसका लाभ देने के लिए इन सबका इस्तेमाल करना होगा। चुनावों से पहले हेमंत ने आदिवासी समॢथत पट्टेदारी कानून में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ मुद्दा छेड़ा था। उन्होंने ‘ब्रैड एंड बटर’, भूमि अधिग्रहण तथा बेरोजगारी के मुद्दों पर चुनाव लड़ा था। उन्होंने सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का वायदा भी किया था। महिलाएं मतदाताओं का एक दुर्जेय प्रतिशत बनती हैं। एक महत्वपूर्ण वायदा जो हेमंत ने किया था वह था नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देना। इस बात से वह युवाओं से जुड़ गए थे क्योंकि चुनावों के दौरान बेरोजगारी महत्वपूर्ण मामला बन कर उभरी थी।

अच्छा प्रशासन देना भी हेमंत सोरेन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। उन्हें भ्रष्टाचार मुक्त तथा स्वच्छ सरकार देनी होगी। झारखंड अपने भ्रष्टाचारी नेताओं के लिए जाना जाता है। इसलिए नए मुख्यमंत्री के तौर पर यह बेहद कठिन कार्य होगा। हेमंत को केन्द्र के साथ भी अच्छे संबंध बनाने होंगे और इसके लिए नई राहें तलाशनी होंगी। प्रत्येक गैर-भाजपा मुख्यमंत्री के लिए ये सभी चुनौतियां होती हैं। अब देखना होगा कि इन चुनौतियों से हेमंत कैसे निपटते हैं?-कल्याणी शंकर
 


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