मिर्चपुर कांड पर निर्णय जातिवादी व साम्प्रदायिक भेदभाव के खिलाफ कड़ी चेतावनी

Thursday, Aug 30, 2018 - 03:09 AM (IST)

यह अत्यंत हास्यास्पद है कि जहां देश मानवयुक्त उड़ानें अंतरिक्ष में भेजने बारे बात कर रहा है और विश्व एक ऐसे देश पर नजर रखे हुए है, जो उच्चतम विकास दरों वाले देशों में से एक है, हमारे समाज का एक वर्ग समय में पीछे की ओर जा रहा है तथा अतीत से सबक सीखने से इंकार कर रहा है। 

हरियाणा में बदनाम मिर्चपुर जातिवादी घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय जातिवादी तथा साम्प्रदायिक भेदभाव के खिलाफ एक कड़ी चेतावनी है जो वर्तमान समय में भी अस्तित्व में है। देश के विभिन्न भागों से निरंतर आने वाली मीडिया रिपोटर््स, विशेषकर देश के उत्तरी भागों से, पर गौर करें तो साक्षरता दर में वृद्धि होने के बावजूद स्थितियां बद से बदतर हो रही हैं। हम में से बहुतों के लिए यह सोचना कठिन है कि लोगों की भीड़ गुस्से से इतनी उत्तेजित हो जाती है कि उसमें शामिल लोग एक बूढ़े व्यक्ति तथा उसकी दिव्यांग किशोर बेटी को आग लगाने से पहले बिल्कुल नहीं सोचेंगे। ऐसा ही मिर्चपुर में हुआ जब तथाकथित उच्च जातियों से संबंधित व्यक्तियों ने एक दलित बस्ती पर हमला कर दिया और गरीब निवासियों के घरों को जला दिया। 

हमले के लिए उकसाने का कारण भी अत्यंत बेहूदा था। तब की मीडिया रिपोर्ट्स तथा अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार बस्ती में रहने वाले एक व्यक्ति का कुत्ता उस क्षेत्र से गुजर रहे कुछ युवाओं पर भौंका। युवाओं को उकसाने के लिए यह कारण पर्याप्त था और उन्होंने अपने गुट के कई युवाओं को बुला लिया तथा उपद्रव करने लगे। प्रत्यक्ष तौर पर यह घटना एक परिवर्तनकारी बिन्दू था और यह कि युवाओं में नफरत तथा नाराजगी काफी लम्बे समय से भड़क रही थी, सम्भवत: उनके बचपन से ही क्योंकि उन्हें अवश्य यह सिखाया गया होगा या उन्होंने तथाकथित उच्च जातियों तथा तथाकथित निम्न जातियों के बीच नफरत तथा भेदभाव की बातें देखी-सुनी होंगी।

देश की स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भी ऐसी अफसोसनाक स्थिति के लिए किसे दोष दिया जाए? निश्चित तौर पर स्वतंत्रता सेनानियों तथा हमारे संविधान निर्माताओं ने इस स्थिति की परिकल्पना नहीं की होगी। यहां तक कि आरक्षण की व्यवस्था भी शुरू में केवल 10 वर्षों के लिए की गई थी और ऐसी आशा थी कि इससे समाज में उत्पन्न विभाजन समाप्त हो जाएगा। इसकी बजाय हम देख रहे हैं कि स्थिति और भी बदतर हो गई है। यहां तक कि पंजाब जैसे प्रगतिशील राज्य में भी बहुत से गांवों में तथाकथित उच्च जातियों तथा दलितों के लिए अलग पूजा स्थल हैं। जो लोग पंजाब में जातिवादी विभाजन से वाकिफ नहीं हैं उनके लिए यह बहुत बड़ा झटका होगा कि यहां पर समाज के दो वर्गों के लिए अलग अंतिम संस्कार समूह भी हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में होने वाली घटनाएं और भी बदतर हैं, जो पिछड़े तो हैं ही, यहां तक कि उनकी साक्षरता दर भी कम है। निश्चित तौर पर कुछ छोटे नगर तथा गांव ऐसे हैं जहां दलितों को तथाकथित उच्च जातियों के सदस्यों को सलाम तथा केवल चाकरी के काम करने पड़ते हैं। घृणित घटनाओं की संख्या में कमी आने की बजाय अब हम सार्वजनिक तौर पर अपमान तथा भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं भी देख रहे हैं। ये युवक घर पर क्या सीखते हैं, इसके अतिरिक्त वे उन स्कूलों, जिनमें वे पढ़ रहे अथवा पढ़ चुके होते हैं तथा अपने आसपास के माहौल से भी प्रभावित होते हैं। 

दुर्भाग्य से राजनीतिज्ञ सही अर्थों में शिक्षा तथा साक्षरता को बहुत कम सम्मान देते हैं। उनको समाज को आगे ले जाने की बजाय अपने खुद के हितों की रक्षा करनी होती है। अब समय है कि वरिष्ठ राजनीतिक नेतृत्व इसके प्रति चेताए तथा देश व इसके युवाओं को इस गड़बड़ी से बाहर निकालने के लिए जो कुछ उसके हाथ में है, करे। पहली चीज जिस पर ध्यान देने की जरूरत है वह है प्राथमिक शिक्षा में बड़े सुधार तथा ऐसे भेदभावपूर्ण व्यवहारों के खिलाफ मीडिया का आक्रामक होना। सुप्रीम कोर्ट ने मिर्चपुर घटना के दोषियों को सजा सुनाकर अच्छा काम किया मगर इसमें फिर भी 10 साल लग गए। इसे अपने अंतर्गत सभी अदालतों को ऐसे मामलों की शीघ्र सुनवाई करने तथा अन्यों को ऐसे अपराध करने से रोकने के लिए दोषियों को कड़े दंड देने का निर्देश देना चाहिए।-विपिन पब्बी
 

Pardeep

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