अभी तक अप्रयुक्त है 2013 में बनाया गया ‘निर्भया कोष’

Thursday, Feb 23, 2017 - 12:15 AM (IST)

इस वर्ष के आम बजट में ‘निर्भया कोष’ में 90 प्रतिशत की भारी-भरकम वृद्धि हुई है। फिर भी महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से यह कोई उल्लेखनीय बात नहीं है क्योंकि 2013 में स्थापित किए जाने के समय से ही यह कोष  प्रयुक्त नहीं किया गया। 

महिलाओं की सुरक्षा को और भी अधिक पुख्ता बनाने के लिए सृजित किया गया यह कोष सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को आबंटित किया गया था लेकिन उचित और ठोस योजनाबंदी एवं निष्पादन की कमी के चलते यह अभी तक अछूता पड़ा है। 

हाल ही में जब न्यायपालिका और सरकार के उच्च स्तरों पर इस कोष की वर्तमान स्थिति को लेकर सवाल उठाए गए तो हर कोई परेशान हुआ। यहां तक कि उस 23 वर्षीय युवती के अभिभावक भी अभी तक निराश हैं जो 16 दिसम्बर 2012 को जघन्य दुष्कर्म की शिकार होने के बाद आखिर दम तोड़ गई थी। 

निर्भया के पिता ने एक समाचारपत्र को बताया, ‘‘पूर्व सरकार ने कम से कम एक कोष तो स्थापित कर दिया था लेकिन नई सरकार के मामले में तो लगता है कि इसमें न तो कोई इच्छा शक्ति है और न ही इस कोष को प्रयुक्त करने की मानसिकता।’’ महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कथित चुप्पी पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मोदी ने सत्तासीन होने के दिन से अपने भाषणों में हर मुद्दे का उल्लेख किया  है लेकिन वह कभी भी महिला सुरक्षा पर नहीं बोले। यह कोष स्थापित करने का क्या तुक यदि सरकार इसे खर्च करने का इरादा ही नहीं रखती?’’ 

नई सरकार के सत्तासीन होने के बाद इस कोष को वित्तीय समर्थन बंद कर दिया गया था और इस योजना को ‘विशिष्ट प्रोजैक्टों’  के साथ जोड़ दिया गया था। 7 फरवरी को सुप्रीमकोर्ट की वरिष्ठ वकील एवं ‘अदालत मित्र’ इंदिरा जयसिंह ने न्यायालय को बताया कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध  पहले से भी प्रचंड हो गए हैं जबकि इस काम के लिए स्थापित किया गया करोड़ों रुपए का फंड अभी तक प्रयुक्त ही नहीं किया गया। उन्होंने न्यायालय को सूचित किया कि विभिन्न राज्यों में केवल ‘आपदा केन्द्र’ ही स्थापित किए गए हैं। 

सरकारी वकील ने उनके दावे को यह कह कर झुठलाया कि गत वर्ष के आंकड़ों के अनुसार निर्भया कोष में 2195 करोड़ रुपए थे और इन्हें खर्च करने के लिए 2187 करोड़ रुपए के प्रस्ताव पहले ही भेज दिए गए हैं। फिर भी पुलिस और सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस पैसे को खर्च करने के वर्तमान प्रावधान और दिशा- निर्देश कुछ इस प्रकार के हैं कि कोष को प्रयुक्त करना लगभग अव्यावहारिक है। 

पुलिस सूत्रों के अनुसार कोष को ‘प्रोजैक्ट आधारित’ करार दिए जाने से पहले किसी भी वित्तीय वर्ष के लिए इसका आबंटन इतनी सुस्त रफ्तार से किया जाता था कि लगभग अगला वर्ष शुरू हो चुका होता था जिसके कारण इसे प्रयुक्त ही नहीं किया जा सकता था क्योंकि निविदाएं आमंत्रित करने की प्रक्रियाएं ही अत्यंत लम्बी और जटिल होती थीं। संबंधित कोष का आबंटन सितम्बर या अक्तूबर तक होने की बजाय जनवरी या फरवरी में होता था। इन महीनों में विज्ञापन देने के बावजूद कोई निविदाकत्र्ता आगे नहीं आता था क्योंकि कोई भी शेष दो महीनों की अवधि में अपना काम पूरा नहीं कर सकता था। 

एक अन्य सूत्र ने बताया कि दिल्ली सरकार ने विभिन्न प्रोजैक्टों के लिए  कोष में से आबंटन हासिल करने का प्रयास किया था लेकिन प्रक्रियाओं की जटिलता के चलते इसने अपनी योजनाएं त्याग दी थीं। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की सचिव कविता कृष्णन का कहना है कि कोष के आबंटन से संबंधित प्रक्रियाएं कभी न समाप्त होने वाला गोरखधंधा हैं। उन्होंने कहा कि यदि और कहीं नहीं तो इस कोष को कम से कम दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को बेहतर मैडीकल सुविधाएं तथा मुआवजा देने के लिए प्रयुक्त किया ही जा सकता था। 

उनका कहना है कि तत्काल एक सरकारी पैनल गठित किया जाना चाहिए जो यह आकलन करे कि इन दोनों मदों के लिए कोष का आबंटन प्रभावी और त्वरित ढंग से कैसे किया जा सकता है। उसके बाद इन अनुशंसाओं को सभी संबंधित विभागों और सरकारी निकायों के लिए अनिवार्य करार दे दिया जाए। 

सैंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी का कहना है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सभी सरकारेंन केवल संवेदनाशून्य हैं बल्कि उनके पास इस कार्य को अंजाम देने की कोई दृष्टि ही नहीं है। 

महिलाओं के विरुद्ध अपराध पहले से भी प्रचंड हो गए हैं जबकि इस काम के लिए स्थापित किया गया करोड़ों रुपए का फंड अभी तक प्रयुक्त ही नहीं किया गया। उन्होंने न्यायालय को सूचित किया कि विभिन्न राज्यों में केवल ‘आपदा केन्द्र’ ही स्थापित किए गए हैं। -इंदिरा जयसिंह

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