संकट में न्यायपालिका और कार्यपालिका तालमेल बनाएं

Tuesday, May 18, 2021 - 03:53 AM (IST)

कोविड महामारी के बढ़ते संकटकाल के मध्य में देश में तीन तरह का गतिरोध देखने को मिल रहा है। पहला-कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच, दूसरा-केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच, तीसरा-प्रशासन तथा लोगों के बीच। जैसा कि विश्व प्रसिद्ध नेता जैसे थ्योडोर रुजवेल्ट तथा विंस्टन चॢचल ने महसूस किया कि महान प्रशासक की ज्यादा जि मेदारी होती है। प्रतिदिन निर्णय लेने के लिए एक नेता के कंधों पर बड़ी जि मेदारी होती है। कोविड नियंत्रण भी ऐसा ही एक मुद्दा है। 

महामारी को नियंत्रण करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या कुछ हो रहा है? पिछले वर्ष केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच एक बड़ा तालमेल था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल एक बार मु यमंत्रियों से विचार-विमर्श किया बल्कि हर समय उनका मार्गदर्शन भी किया। राष्ट्रीय लॉकडाऊन के बाद लोग अपने घरों के अंदर रहे। मगर जब 2021 आया और चार राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो राजनीति खुल कर सामने आ गई। 

प्रधानमंत्री ने निर्णय लेने के लिए राज्यों पर छोड़़ दिया कि राज्यस्तर पर कब लॉकडाऊन लागू करना है। इसके बाद राज्यों ने केन्द्र पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि उनके यहां वैक्सीन और ऑक्सीजन की कमी है। कोविड की दूसरी लहर जिसके लिए मार्च में आशा की गई थी, ने देश को अपनी गिर त में ले लिया और अफरा-तफरी मच गई। भारत इसके लिए तैयार नहीं था। 

देश में वैक्सीन, ऑक्सीजन और बिस्तरों की भारी किल्लत दिखी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो केन्द्र से ऑक्सीजन की और ज्यादा सप्लाई के लिए अदालत तक पहुंच गए। पश्चिम बंगाल की विजयी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी केन्द्र पर हमला कर दिया और दावा किया कि लोगों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जि मेदारी से सरकार बच रही है। अब केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य वैक्सीन की खरीद के लिए तय अलग-अलग कीमतों को लेकर भी झगड़ा उत्पन्न हो गया है। 

द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन ने ट्वीट कर  इसे भेदभावपूर्ण रवैया बताया। दूसरी लहर में बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र ने भी राज्य में वैक्सीन की किल्लत को खत्म करने के लिए योजना बनाई। केरल के मु यमंत्री पिनारई विजयन ने केन्द्र से आग्रह किया कि राज्य को नि:शुल्क वैक्सीन उपलब्ध करवाई जाए क्योंकि केरल पहले से ही वित्तीय संकट से दो-चार है। अपने निवारण के लिए राज्य सरकारों ने सर्वोच्च न्यायालय सहित अदालतों को भी शामिल कर लिया क्योंकि वह लोगों का गुस्सा झेलना नहीं चाहते। 

न्यायपालिका दृश्य में उस समय प्रवेश करती है जब कार्यपालिका असफल हो जाती है। 1990 के शुरूआती दौर में अदालतें प्रशासन से लेकर विधायिका के मामलों और राजनीति तथा योजना के मुद्दों को लेकर आगे आई थीं। इसलिए अदालतें प्रशासनिक अनुपालन को यकीनी बनाना चाहती हैं। अदालतें कार्यपालिका की स्थिरता को भी यकीनी बनाना चाहती हैं। राजनेताओं का तर्क है कि न्यायपालिका की दखलअंदाजी कार्यपालिका तथा विधायिका जैसी 2 शाखाओं की कारगुजारी को कमजोर करती है। 

महामारी के प्रसार को रोकने की जि मेदारी केन्द्र तथा राज्य सरकारों के साथ-साथ लोगों की भी बनती है। राज्य सरकारें फ्रंट लाइन पर हैं और कई राज्यों ने बड़ी तीव्रता से प्रतिक्रिया दी है। पंजाब तथा ओडिशा जैसे राज्य केन्द्र सरकार से अलग अपनी तैयारियों पर ही लगे हुए हैं जिसके चलते उन्हें लाभ हुआ है। जहां तक भारत के लोगों का सवाल है उन पर भी महामारी से निपटने की पूरी जि मेदारी है। उन्हें राज्य तथा केन्द्र सरकारों पर दोष नहीं मढऩा चाहिए। कई लोगों ने जनहित याचिकाएं भी दायर की हैं। संकट की इस घड़ी में राज्य तथा केन्द्र सरकार तालमेल बना कर रखें। इसके साथ-साथ न्यायपालिका, केन्द्र, प्रशासन तथा भारत के लोगों को भी एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। केन्द्र, राज्य, न्यायपालिका तथा भारत के सभी लोगों को निगरानी रखनी होगी।-कल्याणी शंकर

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