ग्वादर में सी.पी.ई.सी. का विरोध और तेज हुआ

punjabkesari.in Tuesday, Nov 30, 2021 - 04:46 AM (IST)

हाल ही में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सी.पी.ई.सी.) परियोजना के खिलाफ ग्वादर में अचानक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। पाकिस्तान के लोगों के लिए यह एक ‘उत्थान परियोजना’ की बजाय, चीनी विस्तारवाद की पहचान बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों के अधिकारों को कुचल दिया गया है जिन्होंने इसकी मेजबानी की। 

पाकिस्तान के कमजोर शासन तंत्र के कारण, एक कमजोर अर्थव्यवस्था भ्रष्टाचार से ग्रस्त है; स्थिति गंभीर हो गई है। प्रदर्शनकारियों को स्थानीय राजनीतिक समूहों और गैर-सरकारी संगठनों का समर्थन प्राप्त है, जिनके सी.पी.ई.सी. परियोजना के खिलाफ वास्तविक हित थे। 

‘ग्वादर को अधिकार दो’ रैली के मुखिया मौलाना हिदायत उर रहमान अक्सर ग्वादर के लोगों के अधिकारों पर बोलते रहे हैं। इसके अलावा, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में राष्ट्रीय पार्टी और बलूच छात्र संगठन की भूमिका को भी मान्यता देनी होगी। सी.पी.ई.सी. कमर्शियल कॉरिडोर रूट से बहुत आगे निकल गया है। इसका पाकिस्तानी समाज पर अधिक भेदक व गंभीर प्रभाव पड़ता है। 

सबसे पहले, सी.पी.ई.सी. परियोजना में ‘तटीय आनंद उद्योग’ की एक लंबी पट्टी है, जिसमें लग्जरी होटल, स्पा, थिएटर, गोल्फ कोर्स के साथ एक जीवंत नाइटलाइफ होगी। निस्संदेह, इस उद्देश्य के लिए जो तटीय भूमि विनियोजित की जाएगी, उसका पाकिस्तान के छोटे पैमाने के किसानों या मछुआरों से कोई लेना-देना नहीं है। इसकी बजाय ये सुविधाएं मछली पकडऩे के उद्योग की कीमत पर चीनी और पाकिस्तानी सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के लिए ‘मनोरंजन’ सुनिश्चित करेंगी, जिसकी इस्लामाबाद की अर्थव्यवस्था में 2 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। 

पाकिस्तान सरकार द्वारा मछली पकडऩे वाले चीनी ट्रॉलरों को लाइसैंस देने की खबरें काफी समय से हैं। यह महत्वपूर्ण स्पॉनिंग अवधि के दौरान भी चीन द्वारा अरब सागर में अवैध और अनियमित मछली पकडऩे के अलावा है। इन ट्रॉलरों के पास मछली पकडऩे, प्रसंस्करण और मत्स्य पालन को तुरंत स्टोर करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक है, जिससे स्थानीय मछुआरों के साथ प्रतिस्पर्धा असंयमित हो जाती है। ये विकास निश्चित रूप से बेरोजगारी और गरीबी के निशान पीछे छोड़ देंगे, जिसके परिणामस्वरूप लोग ड्रग्स और मानव तस्करी की ओर बढ़ रहे हैं।

दूसरा, सी.पी.ई.सी. ने किसानों की उपजाऊ कृषि भूमि के बड़े हिस्से को हथियाने का अपार अवसर दिया है। जैसा कि दुनिया जानती है, पाकिस्तान कुल मिलाकर एक प्रेटोरियन राज्य है, यानी, सरकार के अधिकांश फैसलों में सेना का हाथ होता है। सी.पी.ई.सी. का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में खाद्य उत्पादन और वितरण के सभी हिस्सों को कवर करना है, जिसमें बीज और उर्वरक निर्माण से लेकर भंडारण और परिवहन तक शामिल हैं। हालांकि, परियोजना को सेना की प्रत्यक्ष निगरानी में भूमि अधिग्रहण के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। ये अधिग्रहण उचित मुआवजे के बिना और कभी-कभी उनके सही मालिकों की सहमति के बिना भी हुए हैं। 

इसके अलावा, जब पाकिस्तान स्थित निजी उद्यम जमीन के मालिक होते हैं तो मालिक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी या सशस्त्र बलों के माध्यम से प्रभाव रखने वाला व्यक्ति बन जाता है। यही कारण है कि पाकिस्तान की न्यायपालिका द्वारा ही सेना द्वारा जमीन पर कब्जा करने की बात बार-बार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के ध्यान में लाई जाती रही है। अप्रैल 2021 में, लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद कासिम खान ने कहा था कि ‘‘सेना देश में सबसे बड़ी भूमि हड़पने वाली बन गई है और सेना की वर्दी सेवा के लिए है न कि राजा के रूप में शासन करने के लिए।’’ 

सी.पी.ई.सी. प्राधिकरण ने केवल एक प्रवेश और निकास बिंदू के साथ एक बाड़ वाली दीवार का निर्माण करने का निर्णय लिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवाजें दबाई जा सकें और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया मानवाधिकारों के मुद्दे को उजागर न कर पाए। शहर में चौबीसों घंटे ए.आई.-सक्षम सी.सी.टी.वी. कैमरों और अन्य उच्च तकनीकी उपकरणों के साथ पर्याप्त निगरानी रखी जाएगी। 

सूत्र बताते हैं कि यह दीवार 30 किलोमीटर लंबी और 10 फुट ऊंची है। इसके अलावा, पाकिस्तान ने सी.पी.ई.सी. की सुरक्षा के लिए अपनी 34वीं लाइट इन्फैंट्री डिवीजन, जिसे विशेष सुरक्षा डिवीजन (एस.एस.डी.) के रूप में भी जाना जाता है, की स्थापना की है। विकास ने बलूचिस्तान के लोगों के सामाजिक अलगाव को जन्म दिया है, विशेष रूप से ग्वादर, जो निस्संदेह एक पूर्ण हिंसक संघर्ष और अलगाव की मांग को जन्म देगा। 

प्रत्येक क्षेत्र में सेना का वर्चस्व है, सी.पी.ई.सी. केवल एक सैन्य अर्थव्यवस्था और भूमि हथियाने की लालसा को बढ़ाती है। आने वाले समय को देखते हुए, किसानों का अपनी ही जमीन पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा। पिछले साल, आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किया गया था, जो पाकिस्तान के सशस्त्र बलों या उसके सदस्यों को बदनाम करने पर प्रतिबंध लगाता है। बेशक, बढ़ते असंतोष और हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए इस विधेयक की भूमिका को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। 

इसके अलावा, सैन्य सरकार ने 2006 में अकबर खान बुगती की हत्या के साथ बलूच अलगाव को गहरा कर दिया, जो अपनी मृत्यु के समय 79 वर्ष के थे। 2018 में एक अन्य बलूच नेता मुफ्ती हिदायतुल्ला की हत्या ने भी बलूचिस्तान में सैन्य उपस्थिति के इरादे का पर्दाफाश किया। इस साल की शुरूआत में, पाकिस्तानी सेना के एक मेजर जनरल अयमान बिलाल ने बलूच आंदोलन को दबाने में चीन की भूमिका और बलूचिस्तान में ईरान की गतिविधियों के खिलाफ चीन-पाक इरादों की स्वीकारोक्ति की थी। 

आई.एस.आई. के प्रमुख लैफ्टिनैंट जनरल नदीम अंजुम की नियुक्ति, जो पहले ‘मोहसिन-ए-बलूचिस्तान’ पुरस्कार के विजेता थे, अफगान ‘भूमि हथियाने’ और बलूच और अफगान लोगों पर दमन बढ़ाने के एजैंडे के लिए है। ऐसा लगता है कि और अधिक गड़बड़ी इस क्षेत्र में प्रतीक्षारत है।-निष्ठा कौशिकी


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