कोविड वैक्सीन एक नवीनतम कूटनीतिक करंसी है

punjabkesari.in Tuesday, Mar 23, 2021 - 03:36 AM (IST)

भारत की वैक्सीन कूटनीति आगे बढ़ रही है और इसने कोविड महामारी का मुकाबला करने की गति निर्धारित की है। क्वाड नेताओं के सुरक्षा संवाद की बैठक के दौरान भारत के लिए यह बड़ी चुनौती थी। इस बैठक में अमरीका, जापान, आस्ट्रेलिया सहित भारतीय नेताओं ने एशिया भारत प्रशांत क्षेत्र में कम से कम एक बिलियन वैक्सीन की खुराकों का उत्पादन करने में आपसी सहयोग का फैसला किया। क्वाड का उद्देश्य विनिर्माण बैकलॉग, टीकाकरण की गति बढ़ाना और कोरोना वायरस को हराना था। इसकी फंङ्क्षडग अमरीका और जापान से होनी है जबकि लॉजिस्टिक मदद आस्ट्रेलिया से होगी। 

साऊथ ब्लॉक का दावा है कि कोविड-19 संकट से निपटने में भारत अब वैक्सीन महाशक्ति बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी की महत्वपूर्ण विदेश नीति ने भारत को एक वैश्विक हितधारक के रूप में उभारा है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के सम्पादकीय ने भारत की कोविड कूटनीति के लिए प्रशंसा की है। इसमें कहा गया है कि ‘‘भारत वैश्विक वैक्सीन कूटनीति दौड़ में आश्चर्यचकित करने वाले नेता के रूप में उभरा है।’’ 

भारत ने रोलआऊट को नुक्सान पहुंचाए बिना तीन गुणा अधिक खुराकों का निर्यात किया है। नई दिल्ली न केवल चीन की कोविड कूटनीति को विफल करने में सफल रही बल्कि इससे आगे भी निकल गई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत ने चीन की तुलना में अधिक वैक्सीन दान दी है। 

चीन की 7.3 मिलियन खुराकों के मुकाबले भारत ने 8 मिलियन से ज्यादा खुराकें दान में दी हैं। दोनों देशों ने अपनी विशाल आबादी के अलावा दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए वैक्सीन का निर्माण किया है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की महत्वाकांक्षी बैल्ट एंड रोड इनीशिएटिव हिस्से के तौर पर ‘हैल्थ सिल्क रोड’ को चीनी चिकित्सा आपूर्ति कहा है। 

चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार उनका देश 69 देशों को नि:शुल्क वैक्सीन उपलब्ध करवाएगा और 28 देशों में इसे बेचेगा। भारत ने भी अपनी कूटनीति के तहत वैक्सीन कूटनीति को अपनाया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले सप्ताह संसद में घोषणा की कि ‘वैक्सीन मैत्री’ (वैक्सीन फ्रैंडशिप) कार्यक्रम ने महान अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना को जन्म दिया है। 

जयशंकर ने कहा कि ‘‘वास्तव में हमने 150 देशों को वैक्सीन की आपूॢत की है। इनमें से 82 को भारत द्वारा ग्रांट के रूप में दी गई। क्योंकि हमारे अपने मास्क, पी.पी.ई. तथा डायग्नॉस्टिक किटों में वृद्धि हुई है इसलिए हमने दूसरे राष्ट्रों को इन वस्तुओं को उपलब्ध करवाया है। भारत की ओर से यह एक उदार दृष्टिकोण है। इसे वंदे भारत मिशन के लिए भी बढ़ाया गया। हमने अपनी देखभाल करते हुए वुहान से लेकर दूसरे देशों के नागरिकों को उनके घरों तक पहुंचाया।’’ 

‘एक्टिंग ईस्ट एंड एक्टिंग फास्ट’ दक्षिण ब्लॉक के लिए नया मंत्र है। मोदी सरकार की वैक्सीन पहल को बढ़ावा मिला है खासकर पड़ोसी देशों में। नेपाल, बंगलादेश, मालदीव और श्रीलंका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के समय पर भी वैक्सीन आपूर्ति में भारत ने सुधार किया है। श्रीलंका तथा डोमीनिका के नेताओं ने हवाई अड्डे पर व्यक्तिगत रूप से भारतीय निर्मित टीके प्राप्त किए और मंगोलियाई प्रधानमंत्री ने भी भारतीय वैक्सीन ली। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि भारत की विशालकाय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री विश्व की जैनरिक मैडीसिन का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा बनाती है और सभी वैश्विक वैक्सीन उत्पादन का 60 प्रतिशत से अधिक का निर्माण भारत करता है। 

भारत ने अपने कोविड प्रकोप को कैसे झेला? हालांकि कुछ गड़बडिय़ां थीं मगर भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा। 1.35 बिलियन आबादी के साथ भारत में 10 मिलियन से ज्यादा संक्रमित तथा 153 हजार मौतें हुईं। 15 मार्च तक भारत ने 29.74 मिलियन खुराकों का प्रबंध किया है। हालांकि महाराष्ट्र जैसे राज्य में कोविड की दूसरी लहर और संक्रमित लोगों की बढ़ती हुई संख्या चिंता का विषय है। 

भारत ने 3 जनवरी को आपातकालीन उपयोग के लिए दो टीकों को मंजूरी दे दी है। ऑक्सफोर्ड- एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड जो एस.आई.आई. द्वारा निर्मित है और भारत बायोटैक की कोवा वैक्सीन कोविड-19 के खिलाफ भारत की प्रथम घरेलू निर्मित वैक्सीन है। कुछ तिमाहियों में वैक्सीन कूटनीति के बारे में कुछ चिंताएं हैं। पहली यह कि क्या भारत मांग को पूरा करेगा? और दूसरी यह कि क्या वैक्सीन कूटनीति अपने लोगों की कीमत पर हो रही है? केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन को भरोसा है कि सरकार ने सही ढंग से कार्य किया है। 

कुल मिलाकर अब तक कोविड की कूटनीति ने भारत और कुछ नए दोस्तों के लिए सद्भावना पैदा की है। नए प्रयासों के लिए दक्षिण ब्लॉक को दोष नहीं दिया जा सकता। न्यूयार्क टाइम्स का कहना है कि ‘‘कोविड वैक्सीन एक नवीनतम कूटनीतिक करंसी है।’’-कल्याणी शंकर
 


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