न्याय देने के लिए ही न्यायालयों की स्थापना की जाती है

punjabkesari.in Sunday, Apr 02, 2023 - 04:24 AM (IST)

कानून के अनुसार न्याय देने के लिए न्यायालयों की स्थापना की जाती है। कभी-कभी कानून लडख़ड़ा सकता है लेकिन भारत में वादी यथोचित्त उम्मीद कर सकते हैं कि यदि वे टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर जारी रखेंगे तो उन्हें अंतत: न्याय मिलेगा। उस प्रस्तावना के साथ मैं एक ऐसे मामले की व्याख्या करूंगा जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और राजनीतिक विभाजन के दोनों ओर भावनाओं को उत्तेजित किया है। 

23 मार्च, 2023 को गुजरात के एक मैजिस्ट्रेट ने राहुल गांधी को मानहानि के उपरांत (धारा 499, आई.पी.सी.) का दोषी ठहराया और 2 साल के कारावास की सजा सुनाई। सजा सुनाने के बाद मैजिस्ट्रेट ने सजा पर रोक लगा दी। बहरहाल 24 मार्च को राहुल गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया और लोकसभा में उनकी सीट खाली घोषित कर दी गई। 
यह वह रास्ता जिस पर मामला चला 

13.4.2019 : राहुल ने कर्नाटक के कोलार में चुनावी भाषण दिया।
16.4.2019 : भाजपा विधायक पूर्णेष मोदी ने गुजरात के सूरत में एक मैजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत दर्ज की कि राहुल गांधी ने पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया था। (7.3.2022)  शिकायतकत्र्ता ने एक स्टे प्राप्त किया।
7.2.2023 : अडानी समूह के मुद्दों पर लोकसभा में राहुल का भाषण।
16.2.2023 : शिकायतकत्र्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका वापस ले ली।
21.2.2023 : मैजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई फिर से शुरू हुई ।
17.3.2023 : सुनवाई पूरी और फैसला सुरक्षित।
23.3.2023 : मैजिस्ट्रेट ने 168 पन्नों का फैसला सुनाया और राहुल गांधी को दोषी पाया। उन्हें 2 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई। इसके तुरंत बाद मैजिस्ट्रेट ने सजा को निलंबित कर दिया। 
24.3.2023 : लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की अयोग्यता को अधिसूचित किया। 

एक नियमित मामला जो 3 साल तक घूमता रहा। उसने अचानक तात्कालिकता हासिल कर ली और 30 दिनों में मुकद्दमे की बहाली से लेकर सजा तक बिजली की रफ्तार से मामला आगे बढ़ा। पहेली यह है कि किस चीज ने आवश्यकता प्रदान की? शिकायतकत्र्ता ने अपनी ही शिकायत की सुनवाई पर स्थगन क्यों प्राप्त किया और राहुल के लोकसभा में बोलने के 9 दिन बाद उसने अपनी याचिका वापस क्यों ली और रुकी हुई सुनवाई को तत्काल फिर से शुरू करने की मांग की। 

किसकी हुई बदनामी : शिकायतकत्र्ता ने आरोप लगाया कि मोदी समुदाय/ जाति, जिससे यह मामला संबंधित था, को बदनाम किया गया। सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता कि ‘मोदी’ नाम की कोई कम्युनिटी है या ‘मोदी’ सरनेम वाले सभी लोग एक ही समुदाय और जाति के हैं। एक अंग्रेजी दैनिक ने 28 मार्च, 2023 को समझाया कि मोदी शब्द किसी विशिष्ट समुदाय या जाति को नहीं दर्शाता। गुजरात में मोदी उपनाम का उपयोग हिन्दू, मुस्लिम और पारसी भी करते हैं। वैष्णव (बनिया),पोरबंदर के खरवास (मछुआरे) और लुहाना (व्यापारियों का एक समुदाय) में मोदी सरनेम वाले लोग हैं। 

अखबार ने यह भी पाया कि ओ.बी.सी. की केंद्रीय सूची में ‘मोदी’ नाम से कोई समुदाय या जाति नहीं है। साथ ही बिहार या राजस्थान के लिए केंद्रीय सूची में कोई ‘मोदी’ नहीं है। 
गुजरात के लिए केंद्रीय सूची में ‘मोदी घांची’ हैं। मेरे लिए जिस ने 6 दशक पहले जाति को त्याग दिया था और जाति को मान्यता नहीं दी, एक समुदाय/जाति (कथित तौर पर 13 करोड़ मजबूत) को बदनाम करने का पूरा तर्क सिर घुमा देता है। 

सजा निलंबित : शिकायत के मुताबिक यह बदनामी का मामला था। आई.पी.सी. की धारा 500 के तहत सजा 2 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकती हैं। मुझे 1860 के बाद से (जब आई.पी.सी. लागू हुआ था)  किसी भी मामले की जानकारी नहीं है जहां बदनामी के मामले में अधिकतम 2 वर्ष की कैद की सजा दी गई हो। आमतौर पर जहां तीन साल या उससे कम कारावास की सजा सुनाई जाती है, अभियुक्त को जमानत दी जाएगी ताकि ये सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय से राहत पाने के लिए स्वतंत्र हो। हालांकि इस मामले में सजा सुनाए जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर मैजिस्ट्रेट ने खुद सजा को निलंबित कर दिया। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1991 की धारा 8 (3) यह प्रावधान करती है : 

* एक व्यक्ति किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और 2 साल से कम समय के लिए कारावास की सजा सुनाई गई है। ऐसी सजा की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा। 
* राहुल गांधी के मामले में एक दोष सिद्धि है लेकिन कोई भी वाक्य प्रभावी नहीं है। इसलिए क्या उन्हें 23 मार्च, 2023 को अयोग्य ठहराया गया, यह एक विचारणीय प्रश्न है। कई लोगों ने सवाल पूछा है और जवाब तलाश रहे हैं। हालांकि, जो शक्तियां थीं, उनमें कोई संदेह नहीं था। 24 घंटे के भीतर चाहे उन्होंने सवाल पूछा था या नहीं और उन्हें जवाब मिला था या नहीं, लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी को अयोग्य घोषित कर दिया। 

कौन अयोग्य घोषित कर सकता है : भारत के संविधान का अनुच्छेद 102 (2)(ई) प्रदान करता है कि एक व्यक्ति सदस्य होने के लिए अयोग्य घोषित किया जाएगा यदि वह संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून द्वारा या उसके तहत अयोग्य है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस्तेमाल किए गए शब्द अयोग्य नहीं होंगे लेकिन अयोग्य होंगे जिसका अर्थ यह है कि अयोग्यता का आदेश आवश्यक होगा। स्पष्ट प्रश्न पूछा गया है (दूसरों के बीच पी.डी.टी. आचार्य, लोकसभा के पूर्व महासचिव) अयोग्य घोषित करने का अधिकार किसके पास है? अनुच्छेद 103 में उत्तर हो सकता है। 

यह कहा जा सकता है कि यदि कोई प्रश्न उठता है तो प्रश्न राष्ट्रपति के निर्णय के लिए भेजा जाएगा जो चुनाव आयोग की राय प्राप्त करेगा और इस तरह की राय के बाद कार्य करेगा। राहुल गांधी के मामले में प्रश्न राष्ट्रपति को नहीं भेजा गया था और न ही चुनाव आयोग ने कोई राय दी तो निर्णय किसने लिया? यह माननीय अध्यक्ष थे या लोकसभा सचिवालय के नाम से जानी जाने वाली संस्था थी? कोई नहीं जानता।-पी. चिदम्बरम


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