क्या शराबबंदी का मुद्दा देश की राजनीति को हिला सकता है

Monday, Apr 10, 2017 - 10:46 PM (IST)

सुप्रीम कोर्ट के हाई -वे पर शराब की दुकानें बंद कराने के आदेश के बाद केन्द्र और राज्य सरकारें रास्ते निकालने की कोशिशें कर रही हैं। उधर उत्तर भारत के कई राज्यों में महिलाएं शराब के ठेके खोलने का विरोध कर रही हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने चुनावी वायदे में कहीं भी शराबबंदी की बात नहीं कही थी लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद महिलाओं को लगने लगा है कि वह यू.पी. में शराबबंदी करवा देंगे। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने यहां शराबबंदी करने के बाद यह मानकर चल रहे हैं कि उनकी ही शराब के खिलाफ   मुहिम रंग ला रही है। इसी बूते वह 2019 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री पद का विपक्ष का सांझा उम्मीदवार बनने का सपना देख रहे हैं। वैसे देखा जाए तो 2-4 राज्यों के दर्जन भर जिलों में तीन-चार दर्जन महिलाओं ने दर्जन-दो दर्जन शराब की दुकानों के आगे कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक ही धरना दिया है। इसका प्रसारण कुछ चैनलों और अखबारों में ही हुआ है लेकिन इससे पूरे देश के तमाम राजनीतिक दल सकते में हैं। शराबबंदी का मुद्दा क्या पूरे देश की राजनीति को हिलाकर और बदलकर रख सकता है?
शराबबंदी के पक्ष में जो महिलाएं सामने आ रही हैं वे संभ्रांत घराने की नहीं हैं। 

वे सब गरीब, दलित, वंचित, उपेक्षित, मुस्लिम और आदिवासी महिलाएं हैं। ये वे महिलाएं हैं जो शराबी पति से पिटती हैं। शराब के लिए पैसे मांगने पर इंकार करने पर पति पीटता है तो कभी शराब पीकर आया पति गर्म खाने की मांग न पूरी होने पर पीटता है। ये वे औरतें हैं जो शराबी पति से अपने बच्चों की हिफाजत करती हैं खासतौर पर जवान हो रही बेटी की। ये वे औरतें हैं जो छुपाकर रखे पैसों की हिफाजत इसलिए करती हैं कि पति को उसका पता न चल जाए। ये वे औरतें हैं जिनके लिए शराब की दुकान किसी अभिशाप से कम नहीं है। ये वे औरतें हैं जो रोज रात ईश्वर से यही प्रार्थना करती हैं कि शराबी पति सही सलामत बिना किसी से झगड़े घर वापस आ जाए। ये वे औरतें हैं जो रोज दुआ मांगती हैं कि शराबी पति की कहीं नौकरी न चली जाए। ये वे औरतें हैं जो शराबी पति की देर रात तबीयत खराब होने पर बुरी तरह से कांपने लगती हैं। ये वे  औरतें हैं जो  चाहती हैं कि बेरोजगार बेटे को कहीं शराब की लत न लग जाए। 

इस संदर्भ में एक बात मोदी सरकार को समझ लेनी चाहिए। सुना है कि सरकार भोजन की गारंटी के तहत दिए जा रहे अनाज की जगह ऐसे परिवारों के बैंक खातों में अनाज का पैसा सीधे जमा कराने की सोच रही है। जब शराबी पति घर के किसी कोने में पड़े किसी डिब्बे के नीचे दबे 100-50 के नोट को नहीं छोड़ता है तब वह कैसे बैंक में जमा हुए उस पैसे को छोड़ देगा जिससे उसके परिवार का महीने भर पेट पलना है। अगर सरकार ने टी.वी. चैनलों पर शराबी पतियों की पत्नियों की दर्द भरी कहानियां सुनी होंगी तो वह अनाज की जगह सबसिडी का पैसा सीधे बैंक खातों में जमा करवाने से जरूर परहेज करेगी । 

सरकार को चाहिए कि वह राशन की व्यवस्था को सुधारे। बिचौलियों को बाहर का रास्ता दिखाए। अनाज की कालाबाजारी पर रोक लगाए और भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजे। आप ऐसा कर नहीं पाते हो और अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अनाज की जगह पैसा जमा कराने का आसान रास्ता निकालने की सोचते हो, ऐसे में आप शराबी पति वाले घरों पर बिजलियां ही गिरा रहे हो। भ्रष्ट व्यवस्था और शराबी शख्स का खमियाजा छोटे बच्चों, बूढ़े मां-बाप और संघर्ष करती पत्नी को क्यों उठाना चाहिए? 

ऐसी औरतें जब शराब का ठेका बंद करने के लिए रात-दिन पहरा देती हैं, शराब के ठेकेदारों से उलझती हैं, पुलिस से पिटती हैं और राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकत्र्ताओं के प्रलोभनों से बचती हैं तो ऐसी औरतों का सम्मान होना चाहिए। सरकार का फर्ज बनता है कि जहां-जहां भी शराब ठेकों का विरोध हो वहां-वहां शराब के ठेके तत्काल प्रभाव से बंद कर दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि हाई-वे के दोनों तरफ 500 मीटर की परिधि में शराब की दुकान नहीं खोलने का उसका आदेश रिहायशी इलाकों की गरीब दलित महिलाओं पर भारी पड़ सकता है। 

यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो सीधे-सीधे पिछली अखिलेश सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से शराब ठेकेदारों को बचाने के लिए अखिलेश सरकार ने एक अप्रैल से खुलने वाले नए ठेकों को रिहायशी इलाकों में जगह दे दी, इसी वजह से बवाल खड़ा हो गया है। जहां शराब का ठेका खुलता है वहीं पान, गुटखा, सिगरेट की दुकान खुल जाती है, वहीं नमकीन से लेकर आमलेट बनाने के ठेले लग जाते हैं। शाम को शराबियों के जुटने के साथ ही वहां गाली-गलौच और झगड़े की गुंजाइश बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। उस जगह से बहन-बेटियों का निकलना मुहाल हो जाता है। 

सत्तारूढ़ दलों को शराब की दुकान का विरोध कर रही महिलाओं से इसलिए भी डरना चाहिए क्योंकि ये महिलाएं अगर एक साथ हो गईं तो किसी को चुनाव में हरवा देने का माद्दा रखती हैं। बिहार में हमने देखा ही था कि कैसे शराबबंदी का चुनावी वायदा नीतीश कुमार को महिलाओं के वोट दिलवा गया। तमिलनाडु में जयललिता की कड़ी टक्कर वाले चुनाव में जीत के पीछे महिला वोट बैंक रहा है। हालांकि चुनाव जीतने के बाद वह नीतीश कुमार जैसी वायदे पर खरी तो नहीं उतरीं लेकिन शराब की दुकानों की संख्या में कमी करके महिलाओं के वोट का मान रखने की कोशिश जरूर की। 

राजस्थान में 2 गांवों की महिलाओं ने कानून का सहारा लिया और अपने गांव में शराब का ठेका बंद करवाने में कामयाब रहीं। वहां का कानून कहता है कि अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं शराब ठेके के खिलाफ  प्रशासन को लिखकर देती हैं तो वहां इस मुद्दे  पर प्रशासन वोटिंग करवाएगा और अगर 60 फीसदी से ज्यादा लोग वोटिंग में शराबबंदी का समर्थन करते हैं तो ठेका बंद करवा दिया जाएगा। दो गांवों में महिलाओं ने ऐसा कर दिखाया है। इनमें से एक गांव आदिवासी पिछड़े राजसमंद जिले में था। वहां एक अन्य गांव की महिलाएं भी नया ठेका खुलने नहीं दे रही हैं। पंचायत ने भी नए शराब ठेकेदार को जमीन देने वाले पर 5 लाख का दंड लगा दिया है । जिस प्रदेश की मुख्यमंत्री खुद महिला हो वहां तो सरकार को तत्काल प्रभाव से उस गांव में नया ठेका खोलने का फैसला निरस्त कर देना चाहिए। 

बड़ा सवाल उठता है कि शराबबंदी को लेकर महिलाओं का छोटा-मोटा विरोध क्या त्वरित गुस्सा है जो यहां-वहां ठेका बंद होने के साथ या ठेका बंद करने के सरकारी आश्वासन के बाद खत्म हो जाएगा? जाहिर है कि सत्तारूढ़ सरकारें तो चाहेंगी कि ऐसा ही हो, लेकिन क्या विपक्षी दल भी ऐसा ही चाहेंगे या इस मुद्दे को अपनी तरफ  से विधानसभा चुनाव तक हवा देंगे? क्या नीतीश कुमार इसमें अपने को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करने की संभावना तलाशेंगे? क्या उन्हें बिहार से बाहर भी इस मुद्दे पर समर्थन मिल सकेगा? क्या हम मान कर चलें कि आगे जहां भी विधानसभा चुनाव होंगे वहां शराबबंदी बड़ा चुनावी मुद्दा रहेगा। इन सवालों के जवाब उन महिलाओं के पास छुपे हैं जो या तो शराबबंदी का खुलकर विरोध कर रही हैं या फिर विरोध करने का इरादा रखती हैं।
 

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