कोरोना वायरस ने ‘हमारी भाषा को भी किया प्रभावित’

punjabkesari.in Sunday, Nov 29, 2020 - 04:37 AM (IST)

हम कोरोना वायरस के हमारी भाषा पर पड़े प्रभाव से परिचित हैं। इस दौरान न केवल नए शब्द गढ़े गए हैं बल्कि कुछ पुराने शब्दों के इस्तेमाल में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। शायद इसीलिए ऑक्सफोर्ड इंगलिश डिक्शनरी ने 2020 के लिए वर्ष के शब्द की पहचान नहीं की है। कम्पनी की हैड ऑफ प्रोडक्ट कैथरीन कॉनर मार्टिन कहती हैं, ‘‘2020 में परिवर्तन की अधिक संभावना व पैमाने ने टीम को भटका दिया।’’ 

शब्दकोश के लिए ‘कोविडियट्स’ (हम जानते हैं कि वे कौन हैं) जैसे नए शब्दों का उतना महत्व नहीं जितना इस बात का है कि किसी समय बहुत अज्ञात रहे सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े शब्द अब कितने ज्यादा प्रचलित हो गए हैं। हम सभी इस वाक्य को समझते हैं ‘‘लॉकडाऊन में हमने ‘सामाजिक दूरी’ का पालन किया और ‘वक्र को समतल’ करने का प्रयास  किया। 1968 में गढ़ा गया शब्द ‘कोरोना वायरस’ 2020 में सबसे प्रसिद्ध शब्दों में से एक बन गया। ‘पैंडेमिक’ (महामारी) शब्द का इस्तेमाल पिछले वर्ष के मुकाबले 57,000 से कहीं अधिक हुआ। 

प्रश्र यह है कि साहित्य इस बात को कब दर्शाएगा कि भाषा को क्या हुआ? मुझे लगा कि इसमें कुछ समय लगेगा। आखिरकार उपन्यासकारों को लिखने से पहले उस पर विचार करने की जरूरत है। लॉकडाऊन में फंसा हुआ, परिवार और दोस्तों से अलग और जीवन के बारे में चिंतित, यह कोई ऐसा श्रेष्ठ समय नहीं था कि इस वास्तविकता को कहानियों या उपन्यासों में ढाला जाता लेकिन मैं गलत था। उदयन मुखर्जी का लघु कहानी संग्रह संभवत: पहला ऐसा प्रयास है जिसमें हमारे जीवन पर पड़े कोरोना के प्रभाव को साहित्यिक कहानियों में दर्शाने का प्रयास किया गया। 

‘इसैंशियल आइटम्स’ नामक इस लघु कहानी संग्रह में 10 कहानियां हैं। इन कहानियों में लोगों के जीवन पर पड़े कोरोना के विभिन्न प्रयासों को बताया गया है। इसमें हिमालय में ट्रैकिंग करते ब्रिटिश कालेज के छात्रों, मुम्बई में अपने फ्लैटों में फंसे हुए वृद्ध पैंशनरों और घरों को लौट रहे आप्रवासी मजदूरों का चित्रण किया गया है। इन लोगों के जीवन के चित्रण में कोई विशेष बात नहीं है, इसकी उम्मीद तो आप कर ही सकते हैं लेकिन कहानी में मोड़ आखिर में आता है।  इसमें दिखाया गया है कि वायरस कैसे ऐसी परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है जहां गलतफहमियां हमारे महसूस करने के तरीके को बदल सकती हैं। 

मेरी पसंदीदा कहानी शीर्षक कहानी है। किताब के मध्य में दी गई यह कहानी मीरा और रोशन नामक बुजुर्ग दम्पति की है। यह दम्पति मुम्बई में अपने अपार्टमैंट को छोडऩे में असमर्थ है और डिलीवरी कम्पनियों पर निर्भर है जब तक कि प्रीति नामक एक युवा स्वयंसेवक उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आ जाती। वह भरोसेमंद, खुशमिजाज और समझदार है। मीरा उसे बहुत पसंद करती है। अब मैं पूरी कहानी नहीं सुनाना चाहता लेकिन कहानी में आए उस  मोड़ का यह संकेत करना चाहता हूं कि कैसे उदारता के एक कार्य को दूसरे नजरिए से देखने पर वह ङ्क्षचता का कारण बन गया। कैसे एक परिस्थिति के बारे में सीधे तौर पर प्रश्न पूछ कर स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण गलतफहमी को ही सत्य मान लिया। 

इस प्रकार एक फलती-फूलती दोस्ती शुरू में ही समाप्त हो गई। इस कहानी में, कम से कम, आपने यह तो अनुभव किया ही होगा कि वायरस जीत गया है। इसने किसी की जान नहीं ली लेकिन उन्हें प्रभावित किया है। क्या वे दोबारा कभी पहले जैसे होंगे? वैक्सीन बन जाने के बाद भी क्या हम वैसे लोग बन सकेंगे जैसे हम थे? हैरानीजनक बात यह भी है कि यह कहानी संग्रह एक ऐसे लेखक का है जो हाल ही में उपन्यासकार बना है। इससे पहले दो दशक तक वह एक बिजनैस चैनल के प्रबंध संपादक रहे और वह स्टॉक मार्कीट के अच्छे जानकार थे। ऐसे में उनका यह बदलाव काफी शानदार रहा। 

मैं जानता हूं कि शीघ्र ही वायरस पर काफी किताबें लिखी जाएंगी। इसमें हमारी कल्पना पर प्रभाव अभी जारी रहेगा। यह वायरस हमारे जीवन में विनाश अवश्य लाया है लेकिन यह हमारी रचनात्मकता में अवश्य वृद्धि करेगा। बाजार में नई किताबें आने के बावजूद उदयन के संग्रह में दर्शाई गई  कई कहानियां मेरे मानस पटल पर अंकित  रहेंगी। यह इस पुस्तक के पहली होने का लाभ है।-करण थापर
 


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