सरकारें बनाने व गिराने में कर्मचारियों का योगदान

Saturday, Nov 13, 2021 - 05:42 AM (IST)

कर्मचारियों का समाज में एक विशेष स्थान होता है क्योंकि यह समझा जाता है कि यह सभी लोग बुद्धिजीवी होते हैं तथा अपने काम का एक विशेष अनुभव लिए होते हैं। आम जनता इन लोगों के दिए हुए सुझावों का अनुसरण करती है तथा इस तरह ये सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष या विपक्ष में जनमत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान अदा करते हैं। 

कर्मचारियों को राजनीतिज्ञों की हर नब्ज का पता होता है। वे जानते हैं कि राजनीतिज्ञों को नीतियों व नियमों का कोई ज्यादा ज्ञान नहीं होता क्योंकि उनको पता है कि प्रजातांत्रिक प्रणाली में ऐसे लोगों का शिक्षा का स्तर कोई इतना ज्यादा नहीं होता। एेसे व्यक्ति को जिसे कृषि, बागवानी, स्वास्थ्य, साइंस, कानून व शिक्षा का मंत्री बना दिया जाए तो वह नौकरशाहों की दी हुई सलाह को ही मानेगा। नौकरशाह ही कानून बनाते हैं तथा कई बार बनाए गए कानून आम जनता को मान्य नहीं होते तथा इन नियमों का इतना विरोध हो जाता है कि सत्तारूढ़ दल को पराजय का मुंह भी देखना पड़ जाता है।

आज प्रत्येक घर में विशेषत: हिमाचल जैसे विकसित राज्य में हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी सेवा क्षेत्र में तैनात है। भले ही सत्ता को चलाने में उनका सकारात्मक योगदान ज्यादा है मगर फिर भी कहीं न कहीं उनके नकारात्मक कृत्यों से जनता दुखी हो ही जाती है। कुछ कर्मचारी अपने कार्यों का निष्पादन उचित ढंग से नहीं करते तथा छोटे-छोटे कार्यों के लिए घूस लेने की मांग करते हैं। ऐसे में लोगों में सरकार के विरुद्ध ङ्क्षचगारी सुलगने लग जाती है जो आगे चल कर आग का रूप धारण कर लेती है। स्थिति उस समय और भी संवेदनशील हो जाती है जब भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को अहम पदों पर तैनाती दे दी जाती है तथा जो सरकारी धन का दुरुपयोग करते हुए अपनी व राजनीतिज्ञों की जेबें भरने लगते हैं।

कुछ कर्मचारी व अधिकारी जातीय आधार पर भी लोगों का पक्षपात से काम करना आरंभ कर देते हैं। यह भी देखा जाता है कि राजनीतिज्ञ भी अपनी ही जाति के लोगों को ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसा करने से दूसरी जाति के लोगों में वैमनस्य उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। इसी तरह कुछ एेसे मुलाजिम भी होते हैं जिन्हें राजनीतिज्ञों का अत्यधिक संरक्षण प्राप्त होता है । मगर यह भी देखा जाता है कि कर्मचारियों के पक्षपात रवैये के कारण गरीब लोग इन सुविधाआें से वंचित रह जाते हैं तथा पात्र लोगों में सरकार के विरुद्ध रोष उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। 

कर्मचारियों व अधिकारियों की अपने काम के प्रति उदासीनता या फिर अत्यधिक सख्ती भी लोगों को सरकार के विरुद्ध लामबद्ध होने के लिए मजबूर करती रहती है। सरकार ने विभिन्न विभागों विशेषतय: पुलिस, आबकारी, खनन, सड़क परिवहन व राजस्व जैसे विभागों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए शक्तियां प्रदान की होती हैं मगर इन विभागों द्वारा कभी-कभी अतिक्रमण करना भी आरंभ हो जाता है। 

उदाहरणत: मोटर वाहन के नियमों को बनाए रखने के लिए व बिगड़ैल चालकों पर शिकंजा कसने के लिए पुलिस को सख्ती से काम करना पड़ता है। सरकार ने मोटर वाहन नियमों की अवहेलना के लिए बहुत बड़े जुर्माने का प्रावधान कर रखा है ताकि दुर्घटनाआें पर नियंत्रण रखा जा सके परंतु जब गरीब व्यक्ति या कोई एेसी महिला या व्यक्ति जो स्थानीय काम से अपने वाहन को सड़क पर ले आता है और उसका चालान हो जाता है तब उसके महीने की कमाई जुर्माने के रूप में ही निकल जाती है तथा अपनी गाड़ी को छुड़वाने के लिए कोर्ट-कचहरियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।  

सत्तारूढ़  दल अपनी साख को बचाने के लिए कई बार हजारों मुलाजिमों को दैनिक भत्तों के आधार पर या फिर आऊटसोर्स नीति के आधार पर भर्ती कर लेता है। मगर कुछ ही वर्षों में ऐसे कर्मचारियों में रोष पनपने लग जाता है तथा वे हड़तालों व बंद जैसे हथकंडों को अपनाने लग जाते हैं तथा सरकार के विरुद्ध जनमत को तैयार करना आरंभ कर देते हैं। हिमाचल में यदि हम पुलिस जवानों की भर्ती की बात करें तो उन्हें 8 वर्षों तक अनियमित तौर पर रखा जाता है तथा उनके इस लंबे समय के लिए वेतनमान में भी कोई विशेष वृद्धि नहीं की जाती। 

पुलिस कर्मी जो दिन-रात काम करते हैं, जब इस बात को देखते हैं कि अन्य विभागों के कर्मचारियों को तो तीन वर्ष के बाद ही नियमित कर लिया  जाता है तब उनमें रोष उत्पन्न होना स्वाभाविक हो जाता है। विपक्षी दल तो एेसी अनियमितताओं को अपने घोषणा पत्र में अहम स्थान देते हैं तथा जो काम सत्तारूढ़ दल नहीं कर पाया, उसे कर देने का वायदा कर देते हैं। 


इसी तरह सरकार कई बार अपने मुलाजिमों को देय भत्तों का समय रहते वितरण नहीं करती जबकि केन्द्र सरकार ने अपने मुलाजिमों को यह सब कुछ काफी समय पहले ही कर दिया होता है। महंगाई के बढ़ते दौर में, विधायकों व संसद सदस्यों के भत्तों में तो वृद्धि कर ली जाती है तथा उन्हें हर प्रकार से पैंशनधारक भी बना दिया जाता है मगर जब यह भेदभाव मुलाजिमों के साथ किया जाता है तो वे निश्चित तौर पर सरकार के विरुद्ध लामबद्ध हो जाते हैं। 

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सत्तारूढ़ दलों को कर्मचारियों/ अधिकारियों के साथ भेदभाव की नीति को त्यागना होगा तथा साथ में बिगड़ैल व बिना वजह से फुदकते हुए व भ्रष्ट मुलाजिमों पर नकेल कसनी होगी अन्यथा फुदकते हुए व प्रताडि़त दोनों प्रकार के घोड़े किसी भी समय सवार को नीचे गिराकर किसी और के अस्तबल में दस्तक दे सकते हैं।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 

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