कांग्रेस ने अपने ‘ताबूत’ में एक और कील ठोकी

Sunday, Jul 19, 2020 - 03:15 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी ने अपने युवा योग्य नेताओं को खो दिया तथा अपने ताबूत में एक और कील ठोक दी। 5 वर्ष पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा सचिन पायलट को कांग्रेस का भविष्य समझा जाता था। ये नेता युवा, आकर्षक  प्रसिद्ध स्पष्ट  तथा पूर्ण तौर पर हिंदी और इंगलिश में बोलने में परिपक्व हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह बात है कि  कांग्रेस की युवा पीढ़ी का ये नेता हिस्सा थे जो व्यूह-रचना को घडऩे में माहिर थे। बेशक वे अकेले नहीं थे। 2014 में जब कांग्रेस पार्टी ने सत्ता को खो दिया तब इसके पास 30 से 40 वर्षीय युवा नेता थे। यदि इनके हाथों में बागडोर दे दी जाती तो ये लोग निश्चय ही कांग्रेस को फिर से सत्ता दिला देते। 

इसमें अब कोई शंका की गुंजाइश नहीं कि अन्य लोकतंत्र में राजनीतिक पाॢटयां किस तरह व्यवहार करती हैं। जब वह हार जाती हैं तो युवा पीढ़ी को अपने भाग्यों का पुनॢनर्माण करने के लिए कहती हैं। इस तरह 43 वर्षीय  टोनी ब्लेयर 18 वर्षों के जंगल के अस्तित्व के बाद ब्रिटेन में लेबर पार्टी को पुन: सत्ता में ले आए। 13 वर्ष बाद डेविड कैमरून ने कंजर्वेटिव पार्टी की किस्मत को फिर से जगा दिया। वह भी 43 वर्ष के ही थे। इसी तरह फ्रांस में मैकरॉन, अमरीका में किं्लटन, बुश तथा ओबामा के साथ घटा। फिनिश प्रधानमंत्री तो मात्र 34 वर्ष के हैं। इस तरह यह आशाएं की जाती हैं कि युवा पीढ़ी प्राकृतिक तथा राजनीतिक तौर पर भविष्य संभाल लेगी। 

वास्तव में ज्यादातर लोग इस देश में भूल गए कि ऐसा पहली बार नहीं है कि जब कांग्रेस पार्टी ने शीर्ष स्थानों पर युवा नेतृत्व को नहीं उठाया। इसने 1929 में ऐसा किया जब 40 वर्षीय जवाहर लाल नेहरू पार्टी के अध्यक्ष बने। इसके बाद 1966 में ऐसा ही हुआ जब 48 वर्षीय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री चुनी गईं। 18 वर्षों बाद इतिहास ने फिर से अपने आप को दोहराया जब राजीव गांधी 40 वर्ष की आयु में सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। वास्तव में यहां पर एक और मिसाल है। 2017 में 47 वर्षीय राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने। इस तरह 4 पीढिय़ों के लिए नेहरू-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने और 2 मौकों पर प्रधानमंत्री। कम से कम ऐसे 3 मौकों पर पीढ़ी ने जम्प लगाया। 1929 में जवाहर लाल नेहरू, राजीव गांधी 1984 में तथा राहुल गांधी 2017 में। इंदिरा गांधी के मामले में यद्यपि उन्होंने युवा आयु ग्रुप का प्रतिनिधित्व किया इसीलिए वह प्रधानमंत्री बनीं। वह कठपुतली होने का इरादा रखते, इसके विपरीत वह कठपुतली को चलाने वाली बन गईं। यह एक अन्य कहानी है। 

कम से कम तीनों ने अपनी पार्टी को बदल दिया तथा देश पर अपनी खास छवि छोड़ी। नेहरू ने यह यकीन दिलवाया कि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष, आधुनिक सोच तथा लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला है। इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को बुरे के लिए बदल डाला। उन्होंने अंदरुनी लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया और इसके स्थान पर एक हाईकमान का विकल्प तैयार किया। इंदिरा के साथ ही कांग्रेस पार्टी के ऊपर गांधी परिवार का बोलबाला शुरू हुआ। इंदिरा ने ही हमें हरित क्रांति, बंगलादेश को लेकर जीत दिलवाई तथा एक दुखद आपातकाल दिखाया। राजीव गांधी जैसा कि कुछ लोग आज मानते हैं कि उन्होंने कम्प्यूटर, घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय ट्रंक डायङ्क्षलग तथा कंधों के ऊपर शॉल की पहचान करवाई। वास्तव में यह कौन नकार सकता है कि राहुल गांधी ने भी कांग्रेस पर अपना एक बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ा है? मगर उसके बारे में कम कहा जाता है। 

इस तरह स्पष्ट रूप से युवा पीढ़ी को ऊपर उठा कर तथा उन्हें प्रोत्साहित कर यह बात स्थापित की जा सकती है कि वे पूरी तरह से स्थापित कांग्रेसी परम्परा की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें। नेहरू, गांधी, सिंधिया तथा पायलट के बारे में मैंने बताया। ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सिंधिया तथा पायलट राहुल गांधी की तरह ही उसी पीढ़ी के हैं। यहीं से दिक्कत शुरू होती है। एक शताब्दी से ज्यादा के लिए नेहरू-गांधी परिवार पर एक सिद्धांत लागू होता है जिसे हम टैनिसन की एक पंक्ति के द्वारा खुलासा कर सकते हैं। जिसमें कहा गया है कि ‘पुराने हुक्म नए स्थानों से बदल जाते हैं जो अन्यों पर लागू नहीं होते।’ इसी तरह से जॉर्ज और वैल ने भी कहा कि सभी युवा कांग्रेसी समान हैं मगर कुछ अन्यों से ज्यादा समान हैं।-करण थापर  
               

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