सभी जन आंदोलनों की जननी है कांग्रेस

punjabkesari.in Friday, Feb 03, 2023 - 06:02 AM (IST)

जैसा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 5 महीने के बाद समाप्त हो गई है तो हर कोई सोच रहा है कि कांग्रेस पार्टी की घटती राजनीतिक किस्मत पर क्या फर्क पड़ेगा। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब देना अब बहुत मुश्किल नहीं है। यात्रा ने कांग्रेस पार्टी को अपने मौजूदा कोर मतदाताओं को एकजुट करने में मदद की है जो महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी को अपना जनाधार खोने का भी खतरा है। वहीं, यात्रा किसी भी ‘स्विंग वोटर’ को भाजपा से कांग्रेस में बदलने में नाकाम रही है। यहां तक कि यात्रा की सराहना करने वाले कांग्रेस के समर्थक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि पार्टी के चुनावी पतन को पलटने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। दूसरे शब्दों में यह आधा भरा और आधा खाली गिलास दिखने का मामला है। यहां जानिए इस यात्रा से राहुल गांधी को कौन-सी पांच चीजें सही लगीं और 5 गलतियां हुईं : 

1. राहुल गांधी पर फोकस : 2019 के आम चुनावों से पहले राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने  भ्रष्टाचार विरोधी ‘राफेल अभियान’ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे मजबूत सम्पत्ति उनकी छवि पर हमला किया था। चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद राहुल ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और लम्बे समय तक लोगों की नजरों से ओझल रहे। भारत जोड़ो यात्रा के साथ उन्होंने अंतत: अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करने पर नहीं बल्कि अपनी खुद की छवि बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है। मतदाताओं को उनके लिए मतदान करने का कारण देने की कोशिश की है न कि मोदी के खिलाफ। यह सही दिशा में राहुल का कदम है। हालांकि उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए कई और यात्राएं करनी हैं। 

2. निरंतरता और प्रतिबद्धता दिखाए : भारत जोड़ो यात्रा के साथ लोगों ने राहुल गांधी को कम से कम 5 महीने तक कड़ी मेहनत और लगातार ऐसा करते देखा। कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर काम एक दिन के होते हैं। 5 महीने के अभियान से पता चलता है कि पार्टी किस चीज के बारे में सुसंगत रहने को तैयार है और निरंतरता से विश्वास पैदा होता है। 
अभी तक यह समझना अक्सर मुश्किल होता था कि राहुल क्या कर रहे हैं? वे महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों के दिन भी छुट्टियां मनाने के लिए यूरोप में गायब हो जाते थे। राहुल केवल रैलियों में लहर चलाने के लिए मतदान से कुछ दिन पहले ही लौटते थे। वहीं, मतदाता राजनेताओं को कड़ी मेहनत करते हुए देखना पसंद करते हैं। 

‘वंशवाद’ का टैग हटाने का एक ही तरीका है कि 24&7&365 कड़ी मेहनत की जाए। राहुल गांधी के समर्थक हमें यह बताते नहीं थक रहे कि वे सुबह 6 बजे से रोजाना 20 किलोमीटर कैसे चले। लेकिन वही समर्थक उनकी बार-बार की छुट्टियों को काम-जीवन संतुलन के लिए भारत जोड़ो यात्रा के बीच में लंदन जाने के लिए नहीं कहा। 

3. अंतत: एक जन आंदोलन किया : यह देखते हुए कि कांग्रेस पार्टी गिरावट में रही है। यह कुछ समय के लिए स्पष्ट हो गया है कि उसे खुद को पुनर्जीवित करने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है। जबकि कांग्रेस पार्टी सभी जन आंदोलन की जननी है और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से पैदा हुई थी। वह सत्ता में रहने की इतनी आदी हो चुकी है कि वह जनआंदोलनों की कला को ही भूल गई है। जिन लोगों ने वर्षों से कांग्रेस के वोटों को छीन लिया है वे सभी जन आंदोलनों से उठे हैं। विशेष रूप से भाजपा का राम मंदिर आंदोलन। 

4. राष्ट्रवाद को पुन: प्राप्त करने का प्रयास : 2013 में मोदी अभियान की शुरूआत के बाद से यह देखना अविश्वसनीय रहा है कि भाजपा ने राष्ट्रवाद के आख्यान को कैसे अपनाया है। राष्ट्रवाद के बिना लगभग कुछ भी सफल नहीं होता है। भाजपा और ङ्क्षहदुत्व की राजनीति ने वर्षों से भारतीय राष्ट्रवाद को मुख्यधारा में लाने के लिए इस्तेमाल किया है। आम आदमी पार्टी (आप) लोकपाल आंदोलन से निकली जिसने  अरब सिं्प्रग प्रदर्शन की शैली में भारतीय ध्वज का इस्तेमाल किया। कांग्रेस ने अपनी राष्ट्रवादी साख को छोड़ दिया। राहुल गांधी ने श्रीनगर के लाल चौक में जिस तरह से भारतीय ध्वज फहराया वह इस बात की याद दिलाता है कि भारतीय ध्वज और उसके रंग (कांग्रेस पार्टी के रंग भी) यात्रा के दृश्यों पर कितना हावी हैं। 

5. राज्य की राजनीति से ऊपर हट कर राष्ट्र पर ध्यान केंद्रित : इस बात की बहुत आलोचना हुई है कि राहुल की यात्रा राज्य विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात  और हिमाचल प्रदेश में नहीं गई थी। वास्तव में राज्य के चुनावों का जुनून कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के किसी भी सुसंगत राष्ट्रीय अभियान को चलाने में सक्षम होने के रास्ते में आ गया है। 

चुनावी गलतियां : यहां पर कुछ गलतियां भी हुईं। यात्रा का कोई ठोस विषय नहीं था। राहुल ने पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए यात्रा का इस्तेमाल नहीं किया। राहुल गांधी की वाक्कला अस्त-व्यस्त बनी हुई है। यात्रा ज्यादातर राजमार्गों के माध्यम से यात्रा करती थी जबकि अगर यह घने कस्बों और गांवों से यात्रा कर रही होती तो इसका प्रभाव अधिक हो सकता था और राहुल गांधी की जर्जर दाढ़ी ट्रिम के साथ चल सकती थी। लेकिन फिर भी यह एक अच्छी शुरूआत है। क्या राहुल अब एक लम्बा ब्रेक लेंगे या अपनी शारीरिक फिटनैस को चुनावी फिटनैस में बदलना शुरू करेंगे?-शिवम विज
 


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