गुजरात में कड़ी टक्कर दे रही है कांग्रेस

Wednesday, Nov 22, 2017 - 03:38 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी इस बात से बहुत उत्साहित है कि सत्ता खोने के 2 दशक से भी अधिक समय बाद वह गुजरात चुनाव में जबरदस्त चुनावी टक्कर दे रही है। गुजरात के मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी किसी भी सीमा तक जा रही है।

एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने दावा किया ‘‘अब की बार अलग बात यह है कि जमीनी स्थिति हमारे पक्ष में है।’’ भाजपा को जबरदस्त एंटी-इन्कम्बैंसी का सामना करना पड़ रहा है और ऊपर से आर्थिक मंदी तथा ओ.बी.सी., पाटीदार एवं दलित समुदायों में असंतोष के साथ-साथ नोटबंदी एवं जी.एस.टी. से छोटे व्यापारियों एवं मध्य वर्ग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात भाजपा में कोई कद्दावर स्थानीय नेता नहीं उभर पाया। कांग्रेस इन सब बातों पर बहुत अधिक उम्मीदें लगाए हुए है। गत तीनों विधानसभा चुनावों दौरान दोनों पाॢटयों के वोट का अंतर लगभग 11 प्रतिशत के आसपास ही रहा है। लेकिन भाजपा कांग्रेस की तुलना में दोगुने से अधिक विधायक जिताने में सफल होती रही है। 

कांग्रेस को दूसरा लाभ यह है कि राहुल गांधी के चुनावी अभियान को उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिल रही है।  वैसे इस अभियान दौरान वह मतदाताओं के साथ अधिक व्यक्तिगत समीपता से आदान-प्रदान कर रहे हैं और बड़ी-बड़ी रैलियां करने की बजाय सड़कों के किनारे लोगों से बातें करते हैं। राहुल गांधी ने 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में 52 विधायक भेजने वाले सौराष्ट्र इलाके में अच्छा-खासा प्रभाव जमाया है। उल्लेखनीय है कि यही क्षेत्र भाजपा का गढ़ है। ऐसे में पाटीदार समुदाय के नेता हाॢदक पटेल से गठबंधन बनाकर कांग्रेस ने बहुत ही चालाकी भरा कदम उठाया है। गुजरात में कांग्रेस का चुनावी अभियान पूरी तरह राहुल गांधी का शो बन गया है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने पूरी कमान उन्हें सौंप रखी है। सितम्बर में अमरीका से लौटने के बाद वैसे भी राहुल अपना अधिकतर समय गुजरात में बिता रहे हैं और चुनावी अभियान पर बहुत करीब से नजर रखे हुए हैं। 

कांग्रेस ने जाति, मजहब, विकास और सोशल मीडिया के पत्ते प्रयुक्त करते हुए गुजरात चुनाव लडऩे के लिए बहुआयामी रणनीति गढ़ी है। यह चुनाव को मोदी बनाम राहुल टकराव नहीं बनाना चाहती। सबसे पहला कदम इसने उठाया है कि केवल उन लोगों को टिकट दी जाए जो जीत सकते हों। वैसे यह घोषणा चुनावों में अक्सर ही होती है लेकिन इस पर पहले कभी अमल नहीं किया गया। अब की बार भी यह देखना होगा कि अंतिम टिकट वितरण के बाद कितने बागी उम्मीदवार कुकरमुतों की तरह पैदा हो जाएंगे। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस पर भाजपा द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि यह मुस्लिमों का तुष्टीकरण करने वाली पार्टी और हिन्दुओं की विरोधी है। इस आरोप का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने ‘उदार हिन्दुत्व’ की नीति अपनाई है। कांग्रेस के एक वर्ग का यह भी मानना है कि इसे अपनी हिन्दू विरोधी छवि से हर हालत में पिंड छुड़ाना होगा। 

कांग्रेस ने यह नीति राजीव गांधी के दौर में भी आजमाई थी जब राजीव गांधी ने शाहबानो के बारे में सुप्रीमकोर्ट के फैसले को संसद के माध्यम से उलटा घुमा दिया था और साथ ही बाबरी मस्जिद के ताले भी खोल दिए थे। इस प्रकार उन्होंने दोनों समुदायों का तुष्टीकरण करने की चाल चली थी लेकिन इसका अंजाम यह हुआ कि दोनों ही समुदाय उनसे दूर हट गए। कांग्रेस ने यही नीति 2002 के गुजरात चुनाव में अपनाई थी ताकि समस्त हिन्दू वोट समेटने की भाजपा की रणनीति को निष्प्रभावी कर सके। इसके बावजूद कांग्रेस दोनों ही समुदायों के लिए बेगानी हो गई। नेहरू-गांधी परिवार के युवराज राहुल आजकल गुजरात में मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं तो इस पर कई भौंहें तन रही हैं। 

सितम्बर में द्वारकाधीश मंदिर से गुजरात के चुनावी अभियान का श्रीगणेश करने के बाद उन्होंने प्रसिद्ध अंबाजी मंदिर में पूजा-अर्चना की, देवी चामुंडा का आशीर्वाद हासिल करने के लिए वह 100 सीढिय़ां चढ़कर चोटिला मंदिर में नतमस्तक हुए। इसके अलावा उन्होंने पाटन में वीर मेघमाया, वराणा में खुडिय़ार मां तथा मेहसाणा जिला में बेचाराजी के स्थान पर मां बहुचार के मंदिरों में भी माथा टेका। जब भाजपा ने राहुल की मंदिर यात्राओं की आलोचना की तो उन्होंने दावा किया : ‘‘मैं भगवान शिव का भक्त हूं। भाजपा वाले जो चाहे कहें, सत्य मेरे साथ है।’’ 

धर्म के पत्ते के साथ-साथ कांग्रेस जाति का पत्ता भी प्रयुक्त कर रही है। कांग्रेस के पास अब वैसा जनाधार नहीं रह गया जैसा 80 के दशक में था। क्षत्रीय +हरिजन +आदिवासी +मुस्लिम यानी के.एच.ए.एम. (खाम) का जो दाव इसने 80 के दशक में खेला था वह दो दशकों दौरान छू मंतर हो गया है। अब की बार पार्टी पाटीदार, दलित और ओ.बी.सी. पर आधारित गठबंधन बनाने का प्रयास कर रही है। हाॢदक पटेल (पाटीदार), जिग्नेश मेवाणी (दलित) पर डोरे डालने के साथ-साथ पिछड़े समुदाय के नेता अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में लाने की नीति इसी प्रयास का हिस्सा है। वैसे यह स्पष्ट नहीं कि इनके प्रभाव को वोटों में किस हद तक बदला जा सकेगा क्योंकि इन तीनों नेताओं में केवल एक ही बात सांझी है कि तीनों का भाजपा से मोह भंग हुआ है। 

इसके अलावा कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान का फोकस जातिगत पहचान से दूर रखने की चालाकी प्रयुक्त की है ताकि चुनावी विमर्श मुस्लिमों पर केन्द्रित न हो जाए। एक मुस्लिम कांग्रेस नेता का दावा है : ‘‘फिलहाल हमें सक्रिय नहीं होना चाहिए।’’ राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत ने दिखा दिया है कि जब भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में होता है तो भाजपा ध्रुवीकरण करने का प्रयास करती है। मुस्लिम जानते हैं कि उन्हें कहां वोट देना है। कांग्रेस चुन-चुन कर भाजपा के बहुत संवेदनशील क्षेत्रों पर फोकस बना रही है। राहुल गांधी ने हाल ही में कहा था : ‘‘नरेन्द्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दो तोपें चलाई हैं। पहली तोप के गोलों से तो अर्थव्यवस्था बर्बाद नहीं हो पाई लेकिन दूसरी तोप ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद करके डुबो दिया है। पहली तोप थी नोटबंदी और दूसरी थी जी.एस.टी. का घटिया कार्यान्वयन।’’ 

इसके अलावा पार्टी ने अपनी संचार रणनीति को भी नया रूप देते हुए सोशल मीडिया पर अधिक फोकस बनाया है क्योंकि नए सिरे से यदि कांग्रेस राजनीतिक रूप में दिखाई देने लगी है तो इसके पीछे सोशल मीडिया की ही भूमिका है। हाल ही में जिस प्रकार राहुल मीडिया में हर जगह छाए हुए मिलते हैं उससे कांग्रेस स्वयं आश्चर्यचकित है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि दोनों ही पक्ष नकारात्मक अभियान से बाज नहीं आते। कांग्रेस को यह याद रखना होगा कि केवल मोदी पर ही लक्ष्य साधने से वोट नहीं मिलेंगे बल्कि इसे नया मुहावरा और साथ ही नया एवं आकर्षक कार्यक्रम अपनाने की जरूरत है। 

गुजरात चुनाव जहां कांग्रेस के लिए जीवन-मौत का सवाल हैं वहीं मोदी और उनके पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी ये इतने ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दोनों का ही गृह राज्य गुजरात है। हाल ही में टाइम नाऊ-वी.एम.आर. तथा इंडिया टुडे तथा ‘एक्सिस माई इंडिया’ द्वारा करवाए गए सर्वेक्षणों में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए काफी आसान जीत की भविष्यवाणी की गई है। ऐसे में राहुल गांधी क्या पूरे गुजरात प्रांत में अपने पक्ष में हवा चलवाने में सफल हो सकेंगे या फिर मोदी का जादू ही बरकरार रहेगा?-कल्याणी शंकर

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