चीन से भागकर भारत आ रहीं यूरोप और अमरीका की कंपनियां

Friday, Jul 08, 2022 - 07:01 AM (IST)

हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट मीडिया में प्रकाशित हुई, जिसके अनुसार चीन जिस रणनीति पर काम कर रहा है, अगर वह कामयाब हो गई तो चीन दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति को किनारे कर वर्ष 2028 तक दुनिया की सबसे ताकतवर आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। हालांकि इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार चीन का यह सपना पूरा नहीं होने वाला। यह रिपोर्ट भले ही चीन के लिए विनाशकारी हो, लेकिन भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं, क्योंकि आर्थिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट यह बता रही है कि चीन से जितने निवेशक बाहर निकलेंगे, भारत का उतना अधिक लाभ होगा। 

चीन से बाहर निकलने वाले निवेशक और विदेशी कंपनियां खासकर यूरोपीय कंपनियां दूसरे एशियाई देशों का रुख कर रही हैं, जिनमें भारत सबसे पसंदीदा जगह बन गया है। इन अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट के अनुसार चीन का खजाना जितना छलकेगा भारत का खजाना उतना बढ़ेगा। यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है, जिससे भारत की आर्थिक गति को पंख लग जाएंगे। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट पर नजर डालें तो इस वर्ष 2022 में अब तक 23 फीसदी यूरोपीय कंपनियां चीन से बाहर निकल चुकी हैं। ये कंपनियां एशिया में वियतनाम, इंडोनेशिया और भारत आ रही हैं। लेकिन हाल के दिनों में यूरोपीय कंपनियों का भारत आने का सिलसिला बढऩे लगा है क्योंकि इनको भारत का बड़ा बाजार भी मिल रहा है, जहां पर इनके उत्पादों की खपत भारी मात्रा में होगी। 

आर्थिक मामलों के जानकार एक चौथाई यूरोपीय कंपनियों के चीन से बाहर निकलने को एक शुरूआत भर मान रहे हैं। वहीं अगर अमरीकी कंपनियों के चीन से बाहर निकल कर कोई दूसरा और बेहतर ठौर ढूंढने की बात की जाए तो इनकी संख्या लगभग 50 फीसदी है। इन अमरीकी कंपनियों को इस बात की भारी आशंका नजर आ रही है कि जब भविष्य में चीन और अमरीका के बीच संघर्ष और टकराव होगा, तब अमरीकी कंपनियों का चीन में उत्पादन करना और अपने उत्पादों को बेचना बहुत मुश्किल होगा। 

वहीं वॉशिंगटन इंस्टीच्यूट ऑफ इंटरनैशनल फाइनांस की रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष यानी 2022 में चीन से अमरीका की तरफ धन का आऊटफ्लो 300 अरब डॉलर का हुआ है जो वर्ष 2021 में महज 135 अरब डॉलर था, लगभग दोगुने से भी ज्यादा धन का चीन से बाहर निकलकर अमरीका की तरफ जाने का मतलब है कि चीन की अर्थव्यवस्था में अब वह ताकत और गति नहीं रही, जो विदेशी निवेश के कारण किसी समय में हुआ करती थी। 

चीन की अर्थव्यवस्था के उत्थान की असल वजह विदेशी कंपनियों का चीन में भारी मात्रा में निवेश करना ही थी, जो हाल के वर्षों में पलटता दिखाई दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण चीन का कोविड प्रतिबंधों से बाहर न निकलना बताया जा रहा है, जिसकी वजह से चीन की आर्थिक विकास दर 5 प्रतिशत रह गई है। वहीं बेरोजगारी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और आर्थिक गतिविधियों में सिकुडऩ दर्ज की गई है। चीन की इकोनॉमिक इंटैलीजैंस यूनिट के शोधकत्र्ताओं का मानना है कि देश की सख्त कोविड नीति विदेशी निवेशकों के साथ देसी निवेशकों को चीन में पैसा लगाने से रोकती है, सरकार द्वारा अचानक नियम बदलने से निवेशकों को अपना पैसा फंसने का डर हमेशा बना रहता है। 

पिछले साल चीन के रियल एस्टेट के औंधे मुंह गिरने से चीन की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा, क्योंकि चीन की आॢथक गति में रियल एस्टेट की बड़ी भूमिका होती थी, लेकिन वर्ष 2021 से रियल एस्टेट पर बैंकों का कर्ज बढ़ता चला गया। सबसे बड़ा उदाहरण एवरग्रांडे का है जो पिछले वर्ष दिवालिया हो गई। चीन का रियल एस्टेट संकट जल्दी खत्म होने वाला नहीं, जिसका उसकी अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा। विदेशी निवेशकों को इस बात का भी डर है कि रूस यूक्रेन युद्ध की तर्ज पर अगर शी जिनपिंग ने ताइवान पर हमला कर दिया, हांगकांग में चीन के खिलाफ विरोध को बलपूर्वक कुचलने की शुरूआत की और अपने पड़ोसियों के खिलाफ सैन्य अभियान की शुरूआत की तो ऐसे में उनके चीन में निवेश का भविष्य क्या होगा? विदेशी निवेशकों ने चीनी बांड्स बेचने शुरू कर दिए हैं। 

चीन के पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते तनाव को लेकर निवेशक आशंकित हैं। हाल ही में नॉर्वे की खेल का सामान बनाने वाली एक कंपनी ने चीन की लीङ्क्षनग कंपनी के शेयर खरीदने से मना कर दिया। वजह थी मानवाधिकारों के उल्लंघन का खतरा। वहीं चीन में तैयार सूती कपड़ों की बिक्री नहीं हो रही, क्योंकि इसमें शिनच्यांग प्रांत में उईगर मुसलमानों से जबरन मजदूरी करवाई जाती है। निजी कंपनियों पर लगने वाला प्रतिबंध, जिसमें जैक मा की कंपनी अलीबाबा और ऐंट ग्रुप को अरबों डॉलर का नुक्सान हुआ, इसका असर इस कंपनी के शेयरधारकों पर पड़ा जिन्हें बहुत नुक्सान उठाना पड़ा। 

आर्थिक मामलों के जानकारों को आशंका है कि अमरीका अगले 2 वर्षों में नैसडैक शेयर बाजार में चीनी निवेशकों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकता है। अमरीका में अभी हाल के दिनों में एक ऐसी घटना हुई, जिसने विदेशी निवेशकों को चीन में निवेश करने को लेकर और डरा दिया है। दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बर्कशार हैथवे, जिसके मालिक वॉरेन बफे हैं, के वाइस प्रैसिडैंट चार्ली मंगर ने चीन की बहुत बड़ी कंपनी अलीबाबा के शेयर भारी मात्रा में बेच दिए, जिससे बाजार में चीन के खिलाफ संदेश गया है। 

यह माहौल भारत के लिए सुनहरा मौका है। अगर यह इन सारी कंपनियों को अपने यहां निवेश करने के लिए मना लेता है तो भविष्य में भारत दुनिया की नई फैक्टरी बनेगा, जो चीन से बेहतर तरीके से काम करेगी। कोरोना काल में भी जब चीन से कंपनियां भाग रही थीं, तब भी भारत ने उन कंपनियों को यहां आमंत्रित कर निवेश करवाया था, जिससे भारत के निर्यात में बढ़ौतरी हुई।

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