साम्प्रदायिक सद्भाव और अखंडता का ध्वजवाहक है पंजाब

Wednesday, Dec 07, 2016 - 01:27 AM (IST)

(डी.पी. चंदन): हम पंजाब वासी भाग्यशाली हैं कि आतंकवाद का दुर्भाग्यपूर्ण दौर भी पंजाब के साम्प्रदायिक सौहार्द को तोड़ नहीं सका। पंजाब सदा से सांझीवालता और देश की अखंडता का ध्वजवाहक रहा है। अनेक हमलावरों ने कई बार पंजाब की पवित्र भूमि को रौंदा। लेकिन इसी धरती पर महापुरुषों ने देश-धर्म की खातिर हंसते-हंसते आतताई शासकों की यातनाओं को बर्दाश्त किया।
 
आध्यात्मिकता के अथाह सागर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे नतमस्तक होने वाले पंजाबी कभी भी संकीर्ण मानसिकता वाले नहीं हो सकते। फिर क्या कारण है कि पंजाब में गैर-सामाजिक तत्व आए दिन ऐसी करतूतें करने की ताक में रहते हैं जिनसे भाईचारक सौहार्द को तार-तार किया जा सके। आए दिन पंजाब में धर्म ग्रंथों की बेअदबी के साथ-साथ आर.एस.एस. पर आधारहीन इल्जाम क्या पंजाब के वातावरण में जहर घोलने की साजिश तो नहीं? वे कौन-से तत्व हैं तो पंजाब की शांति में नफरत के बीज बोना चाहते हैं? 

एस.वाई.एल. नहर के जल बंटवारे के मुद्दे पर विपक्ष द्वारा गुमराहकुन बयानबाजी तथा 8 दिसम्बर को ‘सरबत खालसा’ बुलाने की जिद्द, नोटबंदी से पैदा हुई परिस्थितियों को लेकर घातक बयानबाजी, नाभा जेल में से आतंकियों और गैंगस्टरों की फरारी-क्या ये सब बातें विदेशों में बैठे मुठ्ठी भर अलगाववादियों की ही करतूत हैं, जो पाकिस्तान की शह पर एक बार फिर पंजाब के हालात खराब करने पर आमादा हैं? या ये सब कुछ पंजाब में आगामी विधानसभा के मद्देनजर हालात को खराब करने की चाल तो नहीं? 

प्रदेश में आतंकवाद के उभरने के लिए कुछ प्रमुख घटनाएं जिम्मेदार थीं, जिनका उल्लेख यहां करना असंगत नहीं होगा:

* 13 अप्रैल 1978 को अमृतसर में निरंकारी-अकाली टकराव में 13 लोगों की मृत्यु।

* अकाली दल 1973 में आनंदपुर प्रस्ताव को स्वीकृति दे चुका था जिसके अंतर्गत केन्द्र के पास रक्षा, संचार, करंसी और विदेश नीति के अलावा अन्य कोई कुछ नहीं होना चाहिए था और इसके साथ ही पंजाब के लिए स्वायत्तता की मांग स्वीकार करने को कहा गया था। 

* अकाली दल का जुलाई 1982 में भिंडरांवाला के समर्थन में सतलुज-यमुना ङ्क्षलक नहर के विरुद्ध मोर्चा खोलना।

* सितम्बर 1981 में पंजाब केसरी पत्र समूह के संस्थापक लाला जगत नारायण जी की कायराना हत्या होना और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय का आतंकित होना। 

* 1982 में भिंडरांवाले का श्री दरबार साहिब, अमृतसर में प्रविष्ट होना।
* 1982 में ही अकाली दल द्वारा धर्म युद्ध मोर्चा शुरू किया जाना। 
* 1983 में दिन-दिहाड़े डी.आई.जी. अवतार सिंह अटवाल की श्री दरबार साहिब के सामने हत्या होना। 
* 1984 में पंजाब केसरी पत्र समूह के सम्पादक श्री रमेश चंद्र जी की हत्या। 
* 6 जून 1984 को श्री दरबार साहिब में ‘आपे्रशन ब्ल्यू स्टार।’
* 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या।
* बड़े स्तर पर उग्रपंथियों को जनसमर्थन मिलना। 

ये कुछ प्रमुख घटनाएं हैं जिन्होंने पंजाब में आतंकवाद और अलगाववाद की लपटों को भड़काया। क्या आज भीवे कारण मौजूद हैं या फिर असुखद दौर के चलते फिर से इन कारणों की पुनरावृत्ति किसी गहरी साजिश का हिस्सा हैं?

वास्तव में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की प्रारम्भ से ही कोशिश रही है कि कश्मीर के साथ-साथ पंजाब में भी अलगाववादी तत्वों को शह देकर पंजाब का वातावरण खराब किया जाए ताकि इन दोनों राज्यों को देश की मुख्य धारा से अलग-थलग किया जा सके। पाकिस्तान की अब भी जोरदार कोशिश है कि वह पंजाब के युवाओं को गुमराह करके पंजाब के हालात खराब करे। परंतु इसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि पंजाब ने सदैव दुश्मनों के आक्रमणों को अपने सीने पर झेलकर देश की आन-शान को बरकरार रखा है। पंजाब देश की अखंडता का प्रतीक है और वह भारत माता के मुकुट कश्मीर की रक्षा के लिए चट्टान की तरह खड़ा है। 

कुछ समय पहले जगदीश गगनेजा पर हमला करके उन्हें शहीद करने और पंजाब के वातावरण को खराब करने के सपने देख रहे संकीर्ण मानसिकता वाले तत्वों को मुंह की खानी पड़ी है। क्योंकि ये तत्व न तो पंजाब की भाईचारक सांझ के बारे में जानते हैं और न ही संघ की विचारधारा को, इसीलिए वे इस प्रकार की घटिया चालें चल रहे हैं।

संघ (आर.एस.एस.) सदा से हिंदू-सिख भाईचारे का ध्वजवाहक रहा है और उसका दृढ़ विश्वास है कि भाईचारक स्तर पर हिंदू और सिख अलग-अलग नहीं हो सकते। जिन समुदायों के त्यौहार, जन्म-मरण के संस्कार, रीति-रिवाज मिलते-जुलते हों, जिनके आध्यात्मिक स्रोत एक हों, जिनके धर्म ग्रंथों का एकमात्र उद्देश्य ‘सरबत दा भला’ हो, वे भाईचारक तौर पर कभी अलग नहीं हो सकते।   

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